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युवा कवि, लेखिका जसिंता केरकेट्टा जाएंगी इंग्लैंड

राची, झारखण्ड  | अक्टूबर  | 07, 2022 :: झारखंड की युवा कवि, लेखिका, स्वतंत्र पत्रकार जसिंता केरकेट्टा इंग्लैंड जायेंगी. इस वर्ष यूनाइटेड नेशन आर्टस एंड ह्यूमैनिटीज रिसर्च कौंसिल, नोटिंघम ट्रेंट युनिवर्सिटी पोस्टकोलोनियल स्टडीज सेंटर और यूनिवर्सिटी पॉल वैलेरी मोंटपेलर, फ्रांस के संयुक्त सहयोग से अक्टूबर से दिसंबर तक इंग्लैंड और भारत में “सेलिब्रेटिंग द आदिवासी एंड दलित आर्ट एंड लिट्रेचर” के तहत कई कार्यक्रम होंगे. इसी के तहत जसिंता 14 और 15 अक्टूबर को नॉटिंघम, इंग्लैंड में न्यू आर्ट एक्सचेंज ऑर्गनाइजेशन द्वारा कविता पर केंद्रित कार्यक्रम में हिस्सा लेंगी. नॉटिंघम में पहली बार दलित स्वर के कवि और कलाकारों के साथ आदिवासी पृष्ठभूमि की युवा कवि को आमंत्रित किया गया है. वे नॉटिंघम में अपनी कविताओं के साथ आदिवासी समाज, उनके संघर्ष और अपनी साहित्यिक यात्रा के अनुभव साझा करेंगी. साथ ही राउंड टेबल डिस्कसन में भी हिस्सा लेंगी. नॉटिंघम के कार्यक्रम में उनके अलावा बैंगलोर से कन्नड भाषा के चर्चित दलित स्वर, लेखक, कवि मुकुनाडू चिन्नास्वामी, हैदराबाद से उर्दू भाषा की कवि जमीला निशात, कोलकाता से दलित स्वर, कवि कल्याणी ठाकुर चराल और केरल से लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता सरस्वती डी मौजूद रहेंगी.

नॉटिंघम के बाद जसिंता केरकेट्टा सेसेक्स यूनिवर्सिटी में भी कविता के साथ वर्तमान झारखंड की स्थिति पर अपनी बात रखेंगी. वे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में कुछ साथियों से मुलाकात करेंगी जो लैटिन अमेरिका में इंडिजिनस लोगों की शिक्षा व्यवस्था पर अध्ययन कर रहे हैं. इसके बाद वे वेल्स के गांव में भी लोगों के बीच कविताओं का पाठ करेंगी और भारत में आदिवासियों के जीवन उनके संघर्ष पर बातचीत करेंगी. लंदन में सोआस यूनिवर्सिटी और वारविक यूनिवर्सिटी में भी युवाओं से संवाद की योजना है.

जसिंता केरकेट्टा का तीसरा कविता संग्रह ” ईश्वर और बाज़ार” इस वर्ष राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ है. इससे पहले दो कविता संग्रह ” अंगोर” और “जड़ों की ज़मीन” प्रकाशित हो चुका है. उनकी कविताओं का अनुवाद देशी-विदेशी कई भाषाओं में हो चुका है. उन्हें 2014 में एशिया इंडिजिनस पीपुल पीपुल्स पैक्ट, थाइलैंड की ओर से वॉयस ऑफ एशिया का रिकॉग्निशन अवार्ड मिल चुका है. उन्होंने कम समय में अपने लेखन से अंतरष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है. वे कविताओं के साथ कई देशों में आदिवासी जीवन दर्शन, उनके संघर्ष और पर्यावरण के मामले में उनकी समझ को लोगों के बीच ले जाने का काम कर रही हैं.

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