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विश्व जनसंख्या दिवस :: 11 जुलाई 

जुलाई | 11, 2017 :: मानव बिरादरी की बड़ी गलती को सुलझाने के साथ ही साल दर साल इस जनसंख्या विस्फोट के कारण को जानने और एक मंच पर लोगों को बुलाने के लिये पूरे विश्व में विश्व जनसंख्या दिवस के रुप में एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का जागरुकता अभियान मनाया जाता है। इस समस्या का सामना करने में मदद करने और उस पर पूरा ध्यान दिलाने के लिये सभी गहराई से सोए हुए लोगों की नींद को तोड़ने के साथ ही वैश्विक तौर पर एक जनसंख्या क्रांति को लाने के लिये इस महान जागरुकता अभियान को लाया गया।

पहली बार यह कार्यक्रम 11 जुलाई को 1987 में मनाया गया था। यह तारीख इतिहास में विशेष स्थान रखती है क्योंकि इसी दिन दुनिया की जनसंख्या ने 500 करोड़ के आँकड़े को छुआ था। सन् 1950 में दुनिया की आबादी 250 करोड़ थी जो मात्र 37 सालों में दो गुनी हो गई। सन् 1987 में मनाए विश्व जनसंख्या दिवस का फोकस आपात परिस्थितियों से पीड़ित जनसंख्या था। संयुक्त राष्ट्रसंघ के अनुमानों के अनुसार दुनिया की कुल आबादी 702.3 करोड़ के आँकड़े को पार कर चुकी है। इस आबादी का 60 प्रतिशत एशिया महाद्वीप में निवास करता है। चीन और भारत की संयुक्त आबादी विश्व की आबादी का लगभग 37 प्रतिशत है। आबादी का सबसे अधिक दबाव चीन और भारत पर है। तीसरी दुनिया की बढ़ती आबादी के सामने अनेक गम्भीर चुनौतियाँ हैं। मौजूदा समय में 200 से अधिक देश, छोटे परिवार तथा सेहतमन्द जीवन के लिये लोगों को जागरूक कर रहे हैं। विश्व जनसंख्या दिवस का प्रमुख सन्देश है- परिवार नियोजन का महत्त्व, पुरुष महिला प्रसूताओं की सेहत और मानव अधिकार। गौरतलब है तीसरी दुनिया में उपर्युक्त चुनौतियों को पर्यावरण, पानी और सेहत सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। इस कारण विश्व जनसंख्या दिवस के सन्देश को लोगों तक पहुँचाने के लिये अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। भारत में भी उसे मनाया जाता है। जनगणना के आँकड़े हमारे लिये रिपोर्ट कार्ड की तरह होते हैं। वे हमारी प्रज्ञा के प्रहरी और उपलब्धियों की हकीकत होते हैं। इसलिये भारत जैसे देश में जहाँ 10.69 करोड़ लोगों के सामने दो जून की रोटी जुटाने की समस्या हो, विश्व जनसंख्या दिवस का सन्देश बेहद महत्त्वपूर्ण है। जनगणना रिपोर्ट 2011 के आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत में नगरीय तथा ग्रामीण परिवारों की कुल संख्या 24.39 करोड़ हैं। इनमें से 17.91 करोड़ परिवार ग्रामों में निवास करते हैं। उनमें से 10.69 करोड़ अति गरीब की श्रेणी में हैं। लगभग 54 प्रतिशत के पास एक या दो कमरे का मकान और 13.25 प्रतिशत के पास केवल एक कमरे का मकान है। लगभग 5.37 करोड़ ग्रामीण भूमिहीन आबादी मेहनत -मजदूरी पर निर्भर है। इन आँकडों की मदद से गरीब तथा अति गरीब परिवारों की सुविधाओं, जीवनस्तर तथा जीवन के अधिकार की हकीक़त का अन्दाजा लगाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त नगरों में यदि एक ओर बढ़ती नागरिक सुविधाएँ हैं तो दूसरी ओर तेजी से पैर पसारते स्लम हैं। प्रदूषित गटर और नाले हैं जिनके किनारे बसे लोग लोग अभिशप्त नारकीय जीवन जीने के लिये मजबूर हैं। प्रदूषित होती नदियाँ और खाद्यान्न हैं तथा हड़बड़ी में किये अविवेकी विकास के साइड इफेक्ट से उपजी वह गरीब तथा अल्पशिक्षित आबादी है जो सही पुर्नवास के अभाव में बरसों से विस्थापन का दंश भोग रही हैं। विश्व जनसंख्या दिवस हमें याद दिलाता है कि भारत के सुविधा विहीन गरीब परिवारों की राह में नागरिक सुविधाओं की गम्भीर कमी है। इस आबादी को पीने का साफ पानी, जल जनित एवं पर्यावरण जनित बीमारियों, सेनेटरी सुविधाओं, खुले में शौच की समस्याओं, इलाज की सुविधा, आजीविका के सामने अनेक चुनौतियाँ हैं। यह अवसर है असली चुनौती को आईना दिखाने का।

आलेख: कयूम खान, लोहरदगा।

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