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अनित्य जीवन में करें नित्य की साधना : संयम साधक आचार्य महाश्रमण

अनित्य जीवन में करें नित्य की साधना: संयम साधक आचार्य महाश्रमण

-अध्यात्म साधना केन्द्र स्थित वर्धमान समवसरण से वर्धमान प्रतिनिधि का मंगल उद्बोधन

शासनमाता की चित्त समाधि के लिए आचार्यश्री ने किया आगमवाणी का समुच्चारण

09.03.2022, बुधवार, अध्यात्म साधना केन्द्र, छत्तरपुर (दिल्ली)
14 नवम्बर 2014 को दिल्ली की लालकिले से मानवता के कल्याण के लिए सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के जनकल्याणकारी संकल्पों के साथ अहिंसा यात्रा लेकर गतिमान हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी नेपाल, भूटान सहित भारत के उत्तरी, पूर्वी, पूर्वोत्तर, दक्षिण, मध्य और पश्चिम भागों को अपने चरणों से पावन करते हुए और अपनी अमृतवाणी से लोगों के मानस को अभिसिंचित करते हुए पुनः देश की राजधानी दिल्ली में पावन प्रवास कर रहे हैं।

शासनमाता को दर्शन देने व प्रतिदिन उपासना व सेवा रूपी आध्यात्मिक सान्निध्य प्रदान कर रहे हैं। दिल्ली के छत्तरपुर स्थित अध्यात्म साधना केन्द्र का वातावरण वर्तमान में आध्यात्मिकता से सराबोर बना हुआ है। बुधवार को प्रातः ही आचार्यश्री शासनमाता साध्वीप्रमुखाजी के प्रवास स्थल अनुकंपा भवन में पधारे और वहां घंटों विराजमान होने के पश्चात मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के लिए सीधे अध्यात्म साधना केन्द्र परिसर में बने वर्धमान समवसरण में पधारे तो उपस्थित जनमेदिनी ने बुलंद जयघोष के साथ अपने आध्यात्मिक गुरु का अभिनंदन किया।

वर्धमान के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने वर्धमान समवसरण में उपस्थित जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में अनेक प्रकार के साहित्य उपलब्ध हैं। जैन धर्म के संदर्भ में भी काफी साहित्य हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में 32 आगम महत्त्वपूर्ण हैं। उनमें एक आगम है उत्तराध्ययन। इसमें तत्त्वज्ञान और जीवन व्यवहार से संबंधित कितना ज्ञान भरा गया है। इसके दसवें अध्याय में गौतम को संबोधित करते हुए सभी प्राणियों को जागरूक रहने का संदेश दिया गया है। बताया गया है कि मनुष्य क्षण मात्र भी प्रमाद न करे। जिस प्रकार वृक्ष का पका हुआ पत्ता गिर जाता है, उसी प्रकार प्राणियों का जीवन भी एक दिन अवसान को प्राप्त हो जाता है। इसलिए बताया गया कि पाप से बचने का प्रयास करना चाहिए और समय मात्र भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। यह जीवन अनित्य है।

अध्यात्म साधना केन्द्र भी साधना और प्रेक्षाध्यान से जुड़ा हुआ है। प्रेक्षाध्यान में शरीर की अनित्यता का चिन्तन कराया जाता है। जीवन अनित्यता का चिंतन करते हुए आदमी को पाप कर्मों से बचने और अपने आगे के जीवन को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी वर्तमान में जो सुख भोग रहा है, वह उसके पूर्वार्जित पुण्य कर्मों का फल है तो वर्तमान में भी आदमी ऐसा कार्य करे कि उसे आगे भी कठिनाई न झेलनी पड़े। आदमी पाप से ही पुण्य कर्मों से भी कभी मुक्ति पाए और उसे मोक्ष की प्राप्’ित हो ऐसा प्रयास करना चाहिए। सन्मार्ग पर चलते हुए सुगति को प्राप्त करने का प्रयास करें। इस प्रकार आदमी को अनित्य जीवन के माध्यम से नित्य की साधना का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के पश्चात कहा कि साध्वीप्रमुखाजी भी यहां विराज रहे हैं। उनकी चित्त समाधि और शांति के लिए आचार्यश्री ने ‘आरोग्गबोहिलाभं समाहिवर मुत्तम् दिन्तु’ का कुछ समय जप किया। वर्धमान समवसरण में उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ ने भी अपने आराध्य के साथ शासनमाता के लिए उक्त आगमवाणी का उच्चारण किया।

 

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