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दिल्ली :: धर्म की शरण में रहे मानव : आचार्य महाश्रमण

दिल्ली | मार्च  | 10, 2022 ::

धर्म की शरण में रहे मानव : आचार्य महाश्रमण

*-अध्यात्म साधना केन्द्र से आध्यात्मिक गुरु का आध्यात्मिक संबोधन

*-शासनमाता की निरामयता के लिए आचार्यश्री ने कराया जप का प्रयोग

* 10.03.2022, गुरुवार, अध्यात्म साधना केन्द्र, छत्तरपुर (दिल्ली)
निर्बल आदमी त्राण और शरण की अपेक्षा रखता है। हालांकि निर्बल और सबल दोनों स्थितियां सापेक्ष हैं। किसी स्थिति में स्वयं को सबल समझने वाला आदमी किसी स्थिति में स्वयं को निर्बल भी महसूस करता है। सांसारिक अवस्था में भले स्वजन, परिजन, मित्रजन आदि से कोई सहयोग मिल जाए, कहीं किसी स्थिति में शरण मिल जाए, किसी को त्राण मिल सकता है। किसी प्रकार की आर्थिक स्थिति से कमजोर को अपने स्वजनों और परिजनों से कुछ त्राण मिल सकता है। सरकार आदि द्वारा भी किसी संकट में फंसे अपने नागरिकों के लिए शरण और त्राण बनती है। किसी विपदा में सरकार और अन्य संस्थाएं लोगों का सहयोग भी करती हैं। जैसे भारत सरकार ने यूक्रेन में फंसे नागरिकों को भारत सरकार ने संकट से निकाला, उन्हें शरण दी। यह सब कुछ व्यवहार नय की दृष्टि से ठीक है, किन्तु निश्चय नय में देंखे तो आदमी अशरण है। अब अरबपति आदमी है और उसे कोई गंभीर बीमारी हो गई हो उसके पास पैसा है, स्वजन, परिजन, बन्धुजन सभी उपस्थित हैं, डॉक्टरों की पूरी टीम मौजूद हो, सारी अत्याधुनिक व्यवस्थाएं भी हो, लेकिन एक स्थिति में कोई उस आदमी को त्राण देने वाला नहीं बन पाता। आखिर मृत्यु से बचाने में रुपए, परिजन, सुविधाएं भला क्या काम आ सकती हैं। बीमारी, बुढ़ापा और मृत्यु में अनाथता होती है। आदमी को मृत्यु से कोई बचा नहीं सकता। इसलिए आदमी को धर्म की शरण में जाना चाहिए। उक्त आध्यात्मिक पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अध्यात्म साधना केन्द्र परिसर में बने वर्धमान समवसरण में उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ को प्रदान की।

आचार्यश्री ने आगे कहा कि आदमी को परम त्राण और शरण देने वाला धर्म और अध्यात्म है। सबसे बड़ा त्राण धर्म है। आदमी को धर्म की शरण में जाने का प्रयास करना चाहिए। धर्म और अध्यात्म के माध्यम से आदमी भले बीमारी, बुढ़ापा और मृत्यु से न बचे, किन्तु उसे आत्मिक बल, आध्यात्मिक संबल और अपनी गति सुधारने का सुअवसर प्राप्त होता है। लोग मंगलपाठ सुनते हैं उसमें भी धर्म की शरण में जाने की बात बताई गई है। इसलिए आदमी को धर्म और अध्यात्म की शरण में रहते हुए स्वयं को मृत्यु की परंपरा से मुक्ति के लिए मोक्ष प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।

मुख्य प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने शासनमाता साध्वीप्रमुखाजी के चित्त समाधि के लिए चतुर्विध धर्मसंघ ‘आरोग्गबोहिलाभं समाहिवर मुत्तम् दिन्तु’ का जप कराया। दिल्ली से संबद्ध साध्वीवृंद ने गीत का संगान किया। मुनि अमनकुमारजी ने भी अपने गीत के माध्यम से अपने आराध्य का अभिनंदन किया। साध्वीप्रमुखाजी द्वारा रचित एक गीत की पेनड्राइव अमृतवाणी द्वारा पूज्यचरणों में लोकार्पित की गई।

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