in history today :: birth of mother teresa [ 26th of august 1910 ]
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इतिहास में आज :: दया की देवी, मदर टेरेसा का जन्म [ 26 अगस्त 1910 ]

in history today :: birth of mother teresa [ 26th of august 1910 ]

अगस्त | 26, 2017 :: दया की देवी, दीन हीनों की मां तथा मानवता की साक्षात मूर्ति थी वह महिला! बात हो रही उस मदर टेरेसा की, जो एक ऐसी सन्त महिला थीं, जिनके माध्यम से दुनिया के दीन-हीन ईश्वरीय प्रकाश को देख सकते थे। उन्होंने अपना जीवन तिरस्कृत, असहाय, पीड़ित, निर्धन तथा कमजोर लोगों की सेवा में बिता दिया था ।
वह संगठन जो उन्होंने वर्षों पहले अपने सहयोगी भाई बहनों की सहायता से गरीबों की भलाई के लिए नि: शुल्क शुरू किया था। आज एक विश्वव्यापी संगठन बन चुका है । नोबल प्राइज फाउन्डेशन ने 1979 में मदर टेरेसा को विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार नोबल पुरस्कार से पुरस्कृत किया था । यह पुरस्कार शान्ति के लिए उनकी प्रवीणता के लिए दिया गया था।
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को अग्नेसे गोंकशे बोजशियु के नाम से एक अल्बेनीयाई परिवार में उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (आज का सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ था। मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिनके पास भारतीय नागरिकता थी। उन्होंने 1950में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की। 45 सालों तक गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए इन्होंने लोगों की मदद की और साथ ही चेरिटी के मिशनरीज के प्रसार का भी मार्ग प्रशस्त किया।
1970 तक वे ग़रीबों और असहायों के लिए अपने मानवीय कार्यों के लिए प्रसिद्व हो गयीं, माल्कोम मुगेरिज के कई वृत्तचित्र और पुस्तक जैसे समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गोड में इसका उल्लेख किया गया। उन्होंने 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया। मदर टेरेसा के जीवनकाल में मिशनरीज़ ऑफ चेरिटी का कार्य लगातार विस्तृत होता रहा और उनकी मृत्यु के समय तक यह 123 देशों में 610 मिशन नियंत्रित कर रही थी। इसमें एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं/ घर शामिल थे और साथ ही सूप रसोई, बच्चों और परिवार के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय भी थे। मदर टेरसा की मृत्यु के बाद उन्हें पोप जॉन पॉल द्वितीय ने धन्य घोषित किया और उन्हें कोलकाता की धन्य की उपाधि प्रदान की।
1981 ई में आगवेश ने अपना नाम बदलकर टेरेसा रख लिया और उन्होने आजीवन सेवा का संकल्प अपना लिया। उन्होने स्वयं लिखा है “वह 10 सितम्बर 1940 का दिन था, जब मैं अपने वार्शिक अवकाश पर दार्जिलिंग जा रही थी। उसी समय मेरी अन्तरात्मा से आवाज़ उठी थी कि “मुझे सब कुछ त्याग कर देना चाहिए और अपना जीवन इश्वर एवं दरिद्र नारायण की सेवा कर के क्ंगाल तन को समर्पित कर देना चाहिए।”
मदर टेरेसा दलितों एवं पीडितों की सेवा में किसी प्रकार की पक्षपाती नहीं है। उन्होनें सद्भाव बढाने के लिए संसार का दौरा किया है। उनकी मान्यता है कि ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बडी है।’ उनके मिशन से प्रेरणा लेकर संसार के विभिन्न भागों से स्वय्ं-सेवक भारत आये तन, मन, धन से गरीबों की सेवा में लग गये। मदर टेरेसा क कहना है कि सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है और इसके लिए पूर्ण समर्थन की आवश्यकता है। वही लोग इस कार्य को संपन्न कर सकते हैं जो प्यार एवं सांत्वना की वर्षा करें – भूखों को खिलायें, बेघर वालों को शरण दें, दम तोडने वाले बेबसों को प्यार से सहलायें, अपाहिजों को हर समय ह्रदय से लगाने के लिए तैयार रहें।
मदर टेरेसा को उनकी सेवाओं के लिये विविध पुरस्कारों एवं सम्मानों से विभूषित किय गया है।

* रामन मैगसेस पुरस्कार (1962)
* पोप जॉन XXIII शांति पुरस्कार (1971)
* जवाहरलाल नेहरू अवार्ड फॉर इंटरनॅशनल पीस (1972)
* नोबेल शांति पुरस्कार (1979)
* भारत रत्न (1980)
* ऑर्डर ऑफ़ मैरिट (1983)
* राजीव गांधी सदभावना पुरस्कार (1993) से विभूषित होने वाली दीन-हीनों की मां की हार्ट अटैक के कारण 5 सितंबर 1997 के दिन मृत्यु हो गयी।

 

आलेख: कयूम खान, लोहरदगा।

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