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महिलाओं को दी जाने वाली शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा का लाभ उनके परिवारों और समुदायों को मिलता है : एंटोनियो गुटेरेस ( स्ंायुक्त राष्ट्र के महासचिव )

राँची , झारखण्ड । मार्च | 08, 2018 :: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है। इस वर्ष के अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का थीम है – ‘‘टाइम इज नाउः रूरल एंड अरबन एक्टिविस्टस ट्रांसफार्मिंग विमेंस लाइव्स’’, जो कि महिलाओं के लिए अधिकार, समानता और न्यायपर आधारित है। महिलाओं के खिलाफ यौन शोषण, हिंसा और भेदभाव ने सुर्खियां बटोरी है और यह लोगों के बीच चर्चा का विषय भी बना है, जो कि महिलाओं की स्थिति में बदलाव के लिए बढ़ रही आकांक्षा को दर्शाता है।

 

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2018, सभी महिलाओं को चाहे वह ग्रामीण क्षेत्र की हों या शहरी क्षेत्र की, उन्हें सशक्त बनाकर इस बदलाव को गति देकर कार्यरूप प्रदान करने का एक अवसर है। यह उन कार्यकर्ताओं की सराहना करता है, जो बिना थके लगातार महिलाओं के सशक्तिकरण और उनके अधिकारों के लिए काम कर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हम महिलाओं एवं लड़कियों के खिलाफ दुनिया भर में हो रही हिंसा तथा हिंसा पीड़िता द्वारा झेली जाने वाली सामाजिक भेदभाव और सहायता सेवा बारे में सूचना की कमी की ओर ध्यान खींचना चाहते हैं। लड़कियों एवं महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक व्यापक सामाजिक समस्या है, जो उन सामाजिक नियमों और व्यवहारों से परिचालित होती हैं, जो महिलाओं के खिलाफ हिंसा को सही ठहराता हैै। इसके अतिरिक्त, सामाजिक-आर्थिक विषमता और अक्षम संरक्षण कानून और व्यवस्था बच्चे एवं महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बल देता है। हिंसा का बच्चे के भावनात्मक, बौद्धिक और शारीरिक विकास पर काफी दुष्प्रभाव पड़ता है। संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौता के तहत बच्चों को हिंसा से सरंक्षण प्राप्त करना उनका मूल अधिकार बताया गया है।

झारखंड यूनिसेफ की प्रमुख, डा. मधुलिका जोनाथन कहती हैं, ‘‘पोक्सो एक्ट 2012 में बच्चों को यौन हिंसा से सुरक्षा प्रदान करने पर खासा जोर दिया गया है। इसके अलावा, हिंसा के शिकार बच्चों को बाल हितैषी वातावरण उपलब्ध कराने पर भी बल दिया गया है। झारखंड में पोक्सो एक्ट के तहत 2014 से 2017 के बीच 1,818 मामले दर्ज किए गए हैं। एक माॅडल स्पेशल कोर्ट, एक स्वास्थ्य परीक्षण केंद्र और सहायता काॅडर बनाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही महत्वपूर्ण लोगों, जैसे कि स्पेशल कोर्ट के न्यायाधीश, डाॅक्टर, विशेष लोक अभियोजक, बाल कल्याण समिति, जिला बाल संरक्षण इकाई तथाा विशेष किशोर पुलिस इकाई के सदस्यों का नियमित रूप से समय-समय पर उन्मुखीकरण करना, इन दिशा-निर्देशों/नीतियों/नियमों को अभ्यास में बदलने में मदद करेगा। महिला एवं बाल कल्याण विभाग द्वार रांची, जमशेदपुर एवं धनबाद में पीड़ित महिलाओं को एक छत के नीचे सभी आवश्यक सरकारी सेवा उपलब्घ कराने हेतु केंद्र खोले गए हैं।

महत्वपूर्ण संदेषः
दुनिया भर में लाखों लड़कियां और महिलाएं यौन हिंसा से जुझ रही हैं। डर, सामाजिक कलंक, या संसाधनों की कमी, अधिकांश लड़कियों को अपनी पीड़ा किसी अन्य से साझा करने से रोकती हैं। कुछ देशों में, 1 प्रतिशत से भी कम पीड़िताओं को पेशेवर सहायता मिलती है। यह वास्तविकता स्वीकार करने योग्य नहीं है।

ऽ बहुत सी लड़कियां जो कि यौन हिंसा का शिकार होती हैं, वे अपने साथ हुए दुव्र्यवहार के बारे में मुंह बंद रखती हैं और कभी सहायता की मांग नहीं करती। इसके बारे में बोलें और यौन हिंसा के बारे में चुप्पी और कलंक को समाप्त करने में हमारी मदद करें।
ऽ इस वास्तविकता को दूर करने की जरूरत है। दुनिया भर में लोग बिना थके हिंसा को समाप्त करने के लिए काम कर रहे हैं।
ऽ हिंसा को समाप्त करने के लिए सभी के पास अपनी एक भूमिका है। महिलाओं एवं लड़कियों के खिलाफ होने वाली हिंसा और उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाएं।
ऽ बहुत सारे जगहों में, लड़कियां यह नहीं जानती कि उन्हें कहां से पेशेवर सहायता मिलेंगी या सेवाएं प्राप्त होंगी।
ऽ यौन हिंसा को रोकने तथा यौन हिंसा और उत्पीड़न के शिकार पीड़ितों को सहायता सेवाएं उपलब्ध कराने पर ध्यान केंद्रित किया जाए।

लैंगिक समानता और महिलाओं एवं लड़कियों का सशक्तिकरण सतत विकास लक्ष्य 2030 के एजेंडा के मुख्य केंद्र में है, जिसे संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने 25 सितंबर 2015 को अपना अनुमोदन प्रदान किया है। इस एजेंडे के तहत बीजिंग प्लेटफार्म फाॅर एक्शन को सतत विकास के लिए एक आधारभूत ढांचा के रूप में मान्यता प्रदान किया गया है, जिसके तहत सरकारों ने वादा किया है कि वे लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए निवेश में वृद्धि करेंगे, सभी स्तरों पर लैंगिक समानता संस्थानों को मजबूती प्रदान करने हेतु सहायता प्रदान करेंगे तथा एजेंडा के कार्यान्वयन में लैंगिक दृष्टिकोण को व्यवस्थित रूप से मुख्यधारा से जोड़ेंगे।

स्ंायुक्त राष्ट्र के महासचिव, एंटोनियो गुटेरेस कहते हैं, ‘‘महिलाओं को दी जाने वाली शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा का लाभ उनके परिवारों और समुदायों को मिलता है, जिसका लाभ आखिरकार भविष्य की पीढ़ियों को भी होता है। स्कूल की एक साल की अतिरिक्त शिक्षा,भविष्य में लड़कियों की आमदनी में 25 प्रतिशत की वृद्धि कर सकता है। जब महिलाएं श्रम कार्य में भागीदारी करती हैं, तो यह एक अवसरों का निर्माण करता है, जिससे आर्थिक उन्नति होती है। एक अनुमान के मुताबिक, रोजगार में लैंगिक अंतर को समाप्त करने से 2025 तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 12 ट्रिलियन डाॅलर की बढ़ोतरी दर्ज की जा सकती है। सार्वजनिक संस्थानों में महिला अनुपात की बढ़ोतरी संस्थान को अधिक समावेशी, नवोन्मेषी और निर्णय निर्माण में सक्षम बनाता है, जिसका लाभ अंततः पूरे समाज को मिलता है।’’

उन्होंने कहा कि, ’’लैंगिक समानता सतत विकास लक्ष्य -2030 के एजेंडे के केंद्र में है। सतत विकास लक्ष्य 5, विशेषतः लैंगिक समानता और सभी महिलाओं और लड़कियों के सशक्तिकरण का आह्वान करता है और यह संपूूर्ण 17 सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के केंद्र में है।’’

यूनिसेफ मजबूती से यह विश्वास करता है कि महिलाओं का सशक्तिरण मानवीय, सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। पिछले 10-12 सालों में झारखंड में महिलाओं और लड़कियों के अस्तित्व और विकास से संबंधित अधिकांश संकेतकों में पर्याप्त प्रगति हुई है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है।

लैंगिक अनुपातः राज्य में लिंगानुपात की स्थिति बेहतर हुई है। 2001 में जहां प्रति 1000 पुरूषों पर 941 महिलाएं थी, 2015-16 में प्रति 1000 पुरूषों पर 1002 महिलाओं का अनुपात हो गया (एनएफएचएस -4)। हालांकि शिशु लिंगानुपात (0-6 वर्ष) में इसी अवधि में गिरावट भी दर्ज की गई। पहले जहां यह प्रति 1000 लड़कों पर 965 लड़कियों का था, घटकर प्रति 1000 लड़कों पर 919 लड़कियों का हो गया। झारखंड के ग्रामीण इलाकों में लिंगानुपात वर्ष 2001 में 973 से घटकर 2016 में 926 हो गया। जबकि शहरी क्षेत्रों में लिंग अनुपात में थोड़ा सा सुधार दर्ज किया गया। वर्ष 2001 में यह 870 था, जो कि 2016 में 893 पर पहुंच गया (एनएफएचएस – 4)।

साक्षरताः हालांकि, झारखंड में महिला साक्षरता वर्ष 2001 में 39 प्रतिशत से बढ़कर 2015 में 59.9 प्रतिशत पर पहुंच गया है (एनएसएस 71 वां राउंड), लेकिन अभी भी यह राष्ट्रीय औसत -67.1 प्रतिशत से कम है। झारखंड के ग्रामीण इलाकों में यह 55.2 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय ग्रामीण स्तर पर इसका औसत 61.3 प्रतिशत है। वहीं झारखंड के शहरी क्षेत्र में इसका प्रतिशत 77.5 है, जबकि राष्ट्रीय शहरी औसत 80.8 प्रतिशत है।

लड़कियों की शिक्षाः कक्षा 1-8 में पढ़ने वाली लड़कियों के स्कूल में नामांकन में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। राज्य में प्रायः सभी लड़कियां कक्षा 1-8 में नामांकित है। माध्यमिक स्तर पर लड़कियों का कुल नामांकन औसत 51.32 प्रतिशत है, जो कि राष्ट्रीय औसत से थोड़ा सा कम है।

लड़कियों की शिशु मृत्युः पिछले 12 सालों में झारखंड में लड़कियों की शिशु मृत्यु की दर में आधी से अधिक गिरावट आयी है। यह वर्ष 2000 में प्रति 1000 जीवित जन्मे बच्चों में 79 से घटकर 2016 में 31 पर पहुंच गया है (एसआरएस बुलेटिन), झारखंड के ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की शिशु मृत्यु दर 34 है, जबकि शहरी क्षेत्रों में प्रति 1000 जीवित जन्म में 20 है।

कुपोषणः कुपोषण के सभी घटकों -कम वजन, नाटापन और सूखापन में सुधार हुआ है। 2005 और 2015 के बीच नाटापन में 4.5 प्रतिशत की गिरावट आई है (एनएफएचएस – 4), जबकि सूखापन में 3.3 प्रतिशत की गिरावट आई है, इसके अलावा, गंभीर सूखापन में भी 0.4 प्रतिशत की गिरावट आई है (एनएफएचएस -4)। झारखंड में 2005 और 2015 के बीच के बीच कम वजन के मामले में काफी सुधार हुआ है और इसमें 8.7 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है (एनएफएचएस – 4)।
मातृ मृत्युः मातृ मृत्यु दर को कम करके राज्य ने महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की है। यह 2004-05 में प्रति 1 लाख जीवित जन्म में 312 से घटकर 2012-13 में ें घटकर 208 तक पहुंच गया (एसआरएस), जो कि अभी भी राष्ट्रीय औसत 167 की तुलना में काफी अधिक है।

बाल विवाहः राज्य में बाल विवाह की दर में गिरावट आयी है, लेकिन गिरावट की दर काफी धीमी है। 2005-06 में यह 63 प्रतिशत था, जो कि 2007-08 में 56 प्रतिशत पर पहुंच गया। 2015-16 में यह 38 प्रतिशत दर्ज किया गया। (एनएफएचएस – 4)।

महिलाओं के खिलाफ हिंसाः झारखंड में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले में 100 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, खासकर जघन्य अपराध के मामलों में।

 

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