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विकसित भारत और महिलाओं का योगदान : गुड़िया झा

विकसित भारत और महिलाओं का योगदान : गुड़िया झा

भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्त्व दिया गया है। महिलायें परिवार और समाज का एक अहम हिस्सा हैं। महिलाओं के जीवन में सुधार लाने, उनमें जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व में महिला दिवस मनाया जाता है। संस्कृत में एक श्लोक है- ‘ यस्य पूज्यन्ते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवताः।’ अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।
आज महिलायें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। इतना ही नहीं घर और परिवार की जिम्मेदारियों को बेहतर तरीके से निभाते हुए आगे बढ़ रही हैं। एक शिक्षित और जागरूक महिला उस दीपक की तरह होती है जो अंधेरे में एक बहुत बड़ी रौशनी की तरह कार्य करती है। हमारे थोड़े से प्रोत्साहन और सम्मान देने से महिलायें आने वाले समय में और भी अच्छा कर सकती हैं। क्योंकि प्रत्येक महिला वो सम्मान चाहती है जिसे हमारा समाज अभी भी अपनी रूढ़िवादी विचारधाराओं के कारण किसी महिला के बारे में अपना मूल्यांकन करता है।

1, स्वतंत्रता का अधिकार।
शिक्षा का क्षेत्र हो या कार्य स्थल सभी जगहों पर भी महिलाएं पूर्ण रूप से स्वतंत्र रहकर आगे बढ़ रही हैं और समाज तथा देश का नाम रौशन कर रही हैं। आज पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर सभी क्षेत्रों में वे अपना योगदान दे रही हैं। शिक्षा और जागरूकता की ये लौ शहरी क्षेत्रों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों के हर मोहल्ले और कस्बों तक पहुंच जाये, तो हमारे देश को आगे बढ़ाने में एक बहुत ही बड़ा योगदान प्राप्त हो सकता है। क्योंकि अभी भी कई क्षेत्रों में बेटियों की शिक्षा के प्रति जागरूकता थोड़ी कम है। वहां पर उन्हें पूर्ण रूप से अपनी बातों को प्रकट करने का अधिकार भी नहीं है। शिक्षा की चाह होते हुए भी कुछ रूढ़िवादी परंपराओं के कारण बेटियों की शिक्षा पर जोर नहीं दिया जाता है और वे शिक्षा से वंचित रह जाती हैं। इसलिए सबसे पहले ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के माहौल को विकसित कर इसके प्रति जागरूकता लायी जाये तो निश्चित ही देश की कोई भी बेटी अशिक्षित नहीं रहेगी। ऐसे क्षेत्रों में बेहतर प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति कर उस क्षेत्र में महिलाओं की उचित शिक्षा की व्यवस्था की जा सकती है। ऐसे जगहों पर कानूनी प्रक्रिया भी काफी दुरूस्त होनी चाहिए। क्योंकि अभिभावकों के मन में इस बात का भी डर बना रहता है कि उनके साथ कोई दुर्व्यवहार ना हो।

2, समानता का अधिकार।
फैसले छोटे हों बड़े कभी भी फैसले लेते समय महिलायें जल्दीबाजी नहीं करती हैं बल्कि वो बहुत ही सोच समझकर और सही फैसले लेती हैं। अभी भी हमारे समाज में किसी भी फैसले के मामले में पुरूषों की प्रधानता दी जाती है। जबकि दोनो को समानता का अधिकार मिले तो वहां पर ज्यादा संभावना होती है कि फैसले और भी ज्यादा सटीक हों। क्योंकि कई बार लोग यह समझ कर महिलाओं को नजरअंदाज करते हैं कि शायद उनसे समाधान संभव ना हो। लेकिन ऐसा है नहीं बल्कि कई मुद्दों पर महिलाओं की भागीदारी ज्यादा दमदार होती है।

3, सुरक्षित वातावरण।
यह बात सच है कि शिक्षा हो या कार्यस्थल महिलाओं को हर जगह अधिकार मिले हैं। लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि कहीं न कहीं एक सुरक्षित वातावरण की कमी अभी भी है। क्योंकि कई जगहों पर अभी भी शाम को अंधेरा छाने के बाद घर से बाहर निकलने में या कार्यस्थल पर ही महिलायें अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं। इसलिए प्रत्येक जगहों पर कानूनी व्यवस्था पूरी तरह चुस्त-दुरूस्त होनी चाहिए जिससे कि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

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