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आजादी के अमृत काल के सपनो के आधार “पंच प्रण” : डॉ. भारद्वाज शुक्ल ( सरला बिरला विश्वविद्यालय )

आजादी के अमृत काल के सपनो के आधार “पंच प्रण”

भारतवर्ष को गुलामी की जंजीर को तोड़कर आजादी पाए 75 वर्ष पूरे हो गए हैं। अपना देश आजादी के अमृत काल में प्रवेश कर गया है। आजादी के लिहाज से अगले 25 वर्ष संपूर्ण देशवासियों के के लिए आज़ादी के दीवानों के अरमान एवं सपनों को पूर्ण आकार देने के लिए अति महत्वपूर्ण है। आजादी के पहली शताब्दी के पूर्व देशवासियों के सपनों को पूरा करने के लिए आजादी का अमृत महोत्सव की शुरुआत पर लाल किले की प्राचीर से देश के यशस्वी प्रधानमंत्री ने आगामी 25 साल के लिए देश को पंच प्रण- विकसित भारत, गुलामी को पूरी तरह मिटाने, विरासत पर गर्व करने, एकता और एकजुटता बनाने और हर नागरिक के भारत के प्रति कर्तव्यों पर अपनी शक्ति, अपने संकल्पों और अपने सामर्थ्य को केंद्रित करने की कार्ययोजना सार्वजनिक की है। वर्ष 2047 में जब आजादी के 100 साल पूरे होंगे तब तक आजादी के दीवानों के सारे सपने को पूरा करने की जिम्मेदारी हम सभी देशवासियों की है।
आजादी के अमृत काल के लिए पंच प्रण की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने ‘विकसित भारत’ को पहला प्रण बताया है। भारत की आजादी के पहले शतक पर पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर व पूर्ण विकसित होना देश का लक्ष्य है। जिस लक्ष्य की सफलता देश की कार्यशील जनसंख्या के कंधों पर है तथा युवा पीढ़ी इसमें अहम भूमिका का निर्वाह करेगी।
गुलामी सर्वप्रथम हमारी सोच से उत्पन्न होती है। यदि हम विचारों से आजाद हों तो हमें गुलाम बना पाना कदापि संभव नहीं है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति हंड्रेड परसेंट गुलामी की सोच से मुक्ति पाने का उपाय है। हमें देश की हर भाषा पर गर्व होना चाहिए।
आजादी के अमृत काल का दूसरा प्रण गुलामी की हर सोच से मुक्ति पाना है। यदि हमारे मन मस्तिष्क में गुलामी की एक भी अंश बच गई होगी तो उसे किसी भी हालत में बचने नहीं देना होगा।
चूंकि गुलामी से ज्यादा गुलामी की सोच दासता स्वीकार कराती है।
इस सोच ने समाज में कई विकृतियां पैदा कर रखी है। इसलिए गुलामी की सोच से हर हालत में मुक्ति पानी ही होगी।
भारत आर्थिक, सांस्कृतिक एवं वैचारिक रूप से न केवल सक्षम रहा है अपितु विश्व का सर्वश्रेष्ठ गौरवपूर्ण वैविध्य विरासत से संपन्न रहा है।
लंबी गुलामी की दासता के कारण हमारी वैविध्य विरासत धूमिल हो गई और हम उस पर गर्व करना ही भूलते गए। आजादी के अमृत काल का तीसरा प्रण हमारा गौरवशाली विरासत है। इसी विरासत के कारण भारत आक्रमणकारियों एवं आक्रांताओं का केंद्र बिंदु रहा था। देश की एकता एवं संपन्नता का आधार हमारी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत है। ये विरासत ही भारत के स्वर्णिम काल के याद दिलाते हैं तथा भारतीय होने का गर्व से गौरवान्वित कराते हैं। जब हम अपनी धरती से जुड़ेंगे तभी हम ऊंची उड़ान भरेंगे। संयुक्त परिवार की परंपरा हमारी विरासत का अभिन्न हिस्सा है। पर्यावरण की सुरक्षा हमारी विरासत में अंतर्निहित है।
राष्ट्रीयता की भावना तथा राष्ट्रीय एकता ही देश की असली ताकत है। जब तक प्रत्येक देशवासी देश की एकता के लिए परस्पर मिलजुल कर आपसी समन्वय के साथ नहीं रहेंगे तब तक हमारा देश परम शक्तिशाली राष्ट्र नहीं बन सकता।
एकता और अखंडता देश के आजादी के अमृत काल का चौथा प्रण है। विविधता का जश्न मनाते हुए लैंगिक समानता, भारत पहले, श्रमिकों का सम्मान इसी का हिस्सा है। नारियों का अपमान एक बड़ी विकृति है जिससे मुक्ति का मार्ग खोजना होगा। परिस्थितियां चाहे कैसी भी हो, अनुकूल हो या प्रतिकूल, देश की आंतरिक एकता हर हाल में बनी रहनी चाहिए। ताकि लाख प्रयास के बाद भी भारत को खंडित नहीं किया जा सके। आजादी पर्व मनाने का हेतू भी यही है। अब हम पुरानी गुलामी के इतिहास को दोहराने का अवसर न आने दें, यानी देश की एकता और अखंडता पर किसी भी प्रकार की नजर न लगे तथा हम सभी इसे अक्षुण्ण बनाए रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते रहें।
वास्तव में देश की वर्तमान जनसंख्या के कर्तव्यों एवं विचारों के प्रतिफल ही भविष्य के लिए इतिहास गढ़ने का अवसर पैदा करेंगे। आजादी के अमृत काल की पहली प्रभात के स्वर्णिम अवसर की पांचवी प्रण नागरिकों का स्वयं के साथ राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों का निर्वाह है। नागरिकों का कर्तव्य प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है। यह मूल जीवन शक्ति है।
यह सच है कि बड़े सपनों के लिए संकल्प भी बड़ा ही करना पड़ता है और उस संकल्प को पूरा करने के लिए बड़े पुरुषार्थ करने की आवश्यकता पड़ती है। भारत में बहुत सारी भाषाएं हैं। कभी-कभी हमारी प्रतिभाएं भाषा के बंधनों में बंध जाती हैं, ये गुलामी की मानसिकता का परिणाम है। हमें हमारे देश की हर भाषा पर गर्व होना चाहिए।
आगामी 25 वर्ष भारत के आजादी के दीवानों के संकल्पों को पूरा करने के लिए स्वर्णिम अवसर के रूप में दिखाई देता है। जब देश की युवा आबादी संगठित शक्ति का केंद्र बन जाए तो 2047 तक अपना भारत अवश्य ही विकसित भारत बन सकेगा। वर्तमान पीढ़ी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना गुलामी से आजादी के लिए संघर्ष के वक्त की पीढ़ी थी। आज स्वतंत्रता सेनानियों एवं अमर बलिदानियों की तरह हमें भी देश को पूर्ण विकसित एवं आत्मनिर्भर शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के लिए अपना तन- मन, जीवन का सर्वस्व समर्पण करने का भाव रखना होगा। सौभाग्य का विषय है कि आजादी के दीवानों के शेष रह गए सपनों को साकार करने की जिम्मेदारी वर्तमान पीढ़ी के कंधों पर है। और हम सब अपने आंखों के सामने इसे साकार होते देख सकेंगे।
अपना भारत केवल समस्या पर नहीं अपितु उसके उचित समाधान के लिए विमर्श करने वाला देश है। और आज पूरा विश्व भारत की धरती से ही समस्या का समाधान खोजना शुरू कर दिया है। विश्व की सोच में यह परिवर्तन आजाद भारत के स्वर्णिम 75 साल की यात्रा का परिणाम है। सचमुच आजादी का अमृत महोत्सव अपने आप में ऐतिहासिक अवसर है जो नए भारत के निर्माण के लिए एक नई राह, एक नए संकल्प और नए सामर्थ्य के साथ दुनिया के साथ न केवल कदम मिलाकर चलने अपितु एक कदम आगे चलने का हौसला व जोश पैदा करता है जिससे भारत अपनी प्राचीन गौरव को पुनर्स्थापित कर सके।

लेखक:-
डॉ. भारद्वाज शुक्ल
सरला बिरला विश्वविद्यालय के वाणिज्य एवं व्यवसाय प्रबंधन विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।

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