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शिक्षा, स्वरोजगार और सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे अब्दुर्रज़ाक अंसारी

शिक्षा, स्वरोजगार और सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे अब्दुर्रज़ाक अंसारी राँची जिले के ग्रामीण क्षेत्र ओरमाँझी प्रखंड के इरबा गाँव में एक स्याह समंदर से नूर की तरह एक नायाब इंकलाबी शख्सियत पैदा हुआ जिसका नाम था- अब्दुर्रजाक अंसारी। एक गरीब और अशिक्षित घर में पैदा होकर भी अब्दुर्रजाक अंसारी ने अपने गाँव समेत आस-पास के पिछड़े और वंचित समुदायों के बीच शिक्षा और आर्थिक स्वावलंबन के साथ सामाजिक बदलाव के लिए जो अभूतपूर्व कार्य किए हैं, जो तारीख की ऐसी अमिट इबारत बन गई हैं जिसे आनेवाली कई नस्लें भुला नहीं सकतीं। जिन्होंने गरीबी और अशिक्षा की अंधेरी सुरंग में जिंदगी झेलने वाली क्षेत्र की बड़ी आबादी को जिंदगी के मायनों की नई रौशनी से रू ब रू कराया था। आपके दूरसोची और नायाब कामों की धमक क्षेत्र से लेकर सदन तक गूंजती रही थी और जिसकी बदौलत इरबा को तत्कालीन बिहार राज्य और राष्ट्रीय फलक पर एक विशिष्ट पहचान मिली थी। गुलाम भारत में राँची के इरबा गाँव के एक अशिक्षित बुनकर परिवार में 24 जनवरी, 1917 को स्व० शेख असद अली की संतान के रूप में पैदा लेने वाले अब्दुर्रजाक अंसारी अपने क्षेत्र में शिक्षा, स्वरोजगार और सामाजिक क्रांति के साथ ही राष्ट्रीय चेतना के अग्रदूत थे। आपने ने शिक्षा स्वरोजगार, सामाजिक और राजनीतिक चेतना जगाने के साथ ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में बिंदु से सिंधु तक कहावत को चरितार्थ करनेवाले इतने बहुआयामी कार्य किये कि सहज उसपर यकीन नहीं किया जा सकता। ं गरीबी और अभाव ने अब्दुर्रजाक को बचपन में ही बुनकरी और कपड़ा बेचने के पुश्तैनी धंधे से जुड़ जाना पड़ा था। शिक्षित होकर समाज की दशा-दिशा बदलने की ललक ने उन्हें दस वर्ष की उम्र में स्कूल पहुँचाया। वह बचपन में ही समझ चुका था कि गरीबी और सामाजिक मसाइल की जंग तालिम की ताकत और इल्म के हथियार से ही जीत सकते हैं। अपने कौम और आसपास के समाज में तालिम की भारी कमी और नतीजतन मौजूद गुरबत और मुफलिसी को उन्होंने शिद्दत से महसूस किया था। उन्होंने खुद शिक्षित होकर अपनी हालत को सुधार को ही अपनी जिंदगी का मकसद नहीं बनाया बल्कि पूरे समाज की खुशहाली के लिए सकारात्मक बदलाव का संकल्प लिया और इसके लिए पूरजोर संधर्ष किया। पहले उन्होंने अपनी अनपढ़ पत्नी को पढ़ाया और फिर दोनों मिलकर समाज को शिक्षित करने की बड़ी चुनौती के लिए निकल पड़े थे। जिसकी तुलना हम महाराष्ट्र में ज्यातिराव फूले और सावित्री बाई फूले के संषर्घां से कर सकते हैं। दस वर्ष की उम्र के बाद शिक्षा आरंभ करनेवाले अब्दुर्रजाक अंसारी ओरमाँझी क्षेत्र में शिक्षा क्रांति के जनक बने। 1946 में इरबा में सबसे पहले स्कूल की स्थापना की। लोगों के बीच शिक्षा का मुहीम चलाया। लड़कियों को भी शिक्षा के लिए घर से निकाला। इसके लिए पूरे क्षेत्र में 17 प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना की और एक उच्च विद्यालय का संचालन शुरू करवाया। उनके द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थान क्षेत्र की शिक्षा क्रांति के साधन बने। इसके साथ ही क्षेत्र के पिछड़े मुसलिम, आदिवासी और दलित समुदायों में व्याप्त गरीबी को दूर करने के लिए कुटीर उद्योग और गृह उद्योग की नवीन अवधारणा की शुरुआत की। बुनकर परिवारों को संगठित कर उनके पेशे को संरक्षण दिलाने का अभियान चलाया। इरबा में सबसे पहले बुनकर सहकारिता समिति की नीवं रखी वे बुनकर समुदाय के लिए अविभाजित बिहार में रहनुमा बनकर उभरे। अब्दुर्रजाक अंसारी मानवता में अटूट विश्वास रखनेवाले सामाजिक समरसता के प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने क्षेत्र की आर्थिक बदहाली और अशिक्षा के खिलाफ आंदोलन किया, बिना किसी भेद-भाव के। आदिवासी और अन्य पिछड़े समुदाय के उत्थान के लिए उतना ही पूरजोर प्रयास किया जितना कि मोमिनों के लिए। आप अपने मजहब के उसूलों को जितनी इज्जत देते थे उतना ही आदर उनके मान में अन्य धर्मों के लिए था। आप कुरान के साथ ही हिंदू धर्म के गं्रथों को पढ़ते-समझते थे। अपने भाषणों में रामायण की कथा प्रसंगों व चौपाइयाँ और गीता के श्लोकों का उदाहरण जरूर दिया करते थे। अभी भी बड़े-बुजुर्ग उनके रामकथा के ज्ञान की चर्चा करते नहीं थकते। आप देश की आजादी के आंदोलन में गांधी जी के सिद्धांतों को साकार करते हुए हमेशा कांग्रेस के साथ खड़े रहे, मुस्लिम लीग अलगाववादी विचारों से मुस्लिम समुदाय को बचाते रहे। 1946 के चुनाव में दक्षिणी छोटानागपुर डिविजन के पाँचों सीटो पर उनके कुशल और निष्ठावान नेतृत्व से कांग्रेस ने कब्जा जमाया था।इसके लिए उन्हें शीर्ष केंद्रीय नेतृत्व से काफी सराहना मिली थी। सरदार पटेल ने भी उनकी तारीफ की थी दिल्ली आने की दावत दी थी। वैसे राष्ट्रवादी नेताओं की प्रेरणा और अपने संकल्पों से सामाजिक सदभाव के साथ समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के उत्थान के लिए उनका सम्पूर्ण जीवन समर्पित रहा। वे पंडित नेहरू के आर्थिक विकास के लिए उद्यमों की अवधारणाओं और शिक्षाविद् स्व० मौलाना अबूल कलाम के शिक्षा प्रसार के सपनों को एक कदम आगे बढ़कर साकार करने के लिए जीवन भर कठिन परिश्रम करते रहे। उनके सारे क्रिया कलाप और जीवन आदर्श तो महात्मा गाँधी के समाज दर्शन से प्रेरित थे ही। हस्तकरघा और खादी उद्योग को मरने से बचाने के लिए हाजी साहब के द्वारा किये जा रहे कामों की गूंज दूर-दूर तक फैलने लगी। उनका केंद्र और राज्य स्तर पर सैकड़ों बड़ रानीतिक हस्तियों राष्ट्रपति, प्रधानमंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्रियों से आपके मधुर संपर्क बनते गये। जिनमें पंडित नेहरू, डॉ राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद, इंदिरा गाँधी, जाकिर हुसैन, के बी सहाय, श्री कृष्ण सिंह, कर्पुरी ठाकुर, जगन्नाथ मिश्रा आदि प्रमुख नाम हैं। उनकी बढ़ती लोकप्रियता, प्रभाव और जनता के आग्रह ने उनको राजनीति के क्षेत्र में कदम रखने को विवश किया और एम एल सी में चयनित होकर जगन्नाथ मिश्रा सरकार में मंत्री भी बने। आपको हस्तकरघा, रेशम और पर्यटन विकास विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। इस पद पर रहते हुए आपने जो अभूतपूर्व कार्य किये। इस पद का उपयोग उन्होंने आपने कार्यों को गति व व्यापकता देने और सामाजिक उत्थान के अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए किया। अनेक और शिक्षण संस्थानों की स्थापना की। अनेक शैक्षिक और सामाजिक संस्थानों की सफलाता के लिए उन्हें उच्च पदों पर आसीन किया गया। हाजी अब्दुर्रजाक साहब ने अपने क्षेत्र की खुशहाली के लिए शिक्षा, रोजगार के साथ ही स्थानीय समुचित स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने का भी स्वप्न देखा था। जिसे साकार कर एक बेहतर सुविधा से लैस अस्पताल की सारी प्रक्रिया पूरी कर चुके थे और उसकी आधारशिला रखने के लिए तत्कालीन बिहार के राज्यपाल महोदय से आग्रह करने पटना गये थे। पर दुर्भाग्यवश पटना से लौटने के बाद उसी शाम उनका निधन हो गया। समाज की बेहतरी के लिए हमेशा ख्वाब देखने वाली आँखें 14 मार्च, 1992 को हमेशा के लिय बंद हो गईं। पर हाजी साहब के गुजरने के बाद उनके वालिदों ने उनके सपने की लौ को बुझने नहीं दिया। उन्हीं के नाम से विशाल ‘हाजी अब्दुर्रजाक अंसारी वीवर्स अस्पताल’ का निर्माण किया जो आज सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पीटल के रूप में झारखंड ही नहीं, देश के कई हिस्सों के मरीजों के लिए अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करा रहा है। इन्सानियत के मीनारी शख्सियत अब्दुर्रजाक अन्सारी का थे, जिन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा और विराट सोच के साथ कठिन व एकनिष्ठ परिश्रम की बदौलत सामाजी रहनुमाई के आसमान का वह दमकता सूरज बन गया जो हमेशा एक आदर्श समाज की प्रेरणा का प्रकाश बिखेरते रहेगा। –000–

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