आलेख़

प्रकृति से खिलवाड़ नुकसानदायक : गुड़िया झा

प्रकृति से खिलवाड़ नुकसानदायक।
गुड़िया झा।
एक कहावत है कि हम जो देते हैं, वही हमें वापस भी मिलता है।

फिर वह प्यार हो या नफरत।ठीक यही बात प्रकृति के साथ भी लागू होती है।

जिन जंगलो को हम बेजुबान समझ कर अपने निजी स्वार्थ के लिए अंधाधुंध कटाई कर अपना विकास करना चाहते हैं, पर हमें उसके बदले मिलता कुछ और है।वह है जंगली जानवरों का आतंक।कहा जाता है कि जिसका जो स्थान होता है, वह वहीं पर ज्यादा अच्छा लगता है।

आज यह कहावत झूठी साबित हो रही है।

जंगली जानवर भी गांवों से लेकर शहरों के सड़कों पर खुलेआम घूमते हुए दिखाई दे रहे हैं।

इतना ही नहीं इनके आक्रमक रूप ने कितने लोगों की जानें भी ले ली है।यह हम इंसानों और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष को दर्शाता है।
शहरों में अंधाधुंध विकास और तेजी से फैलते कंक्रीट के जंगल ने जंगली जानवरों को बुरी तरह से प्रभावित किया है।

शहर जंगलों तक फैल रहे हैं और लाचार जानवरों के रहने की जगह सिकुड़ती जा रही है।

तेजी से शहरीकरण के अलावा और भी कई कारण हैं जिससे बाहरी इलाकों में तेंदुए देखे जा रहे हैं।

वन्यजीव विशेषज्ञ का मानना है कि रियल स्टेट परियोजनाओं ने तेंदुए के प्राकृतिक आवास को कम कर दिया है जिससे वे मनुष्यों के रिहाइशी इलाकों में भटक कर आने लगे हैं।विशेषज्ञ कहते हैं कि अब तेंदुओं को अपने अधिकार क्षेत्र वाले जंगलों में कम शिकार मिल रहे हैं।

उनका अधिकार क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है।आंतरिक संघर्ष बढ़ गए हैं और मानव आबादी तेजी से बढ़ रही है जिससे वे तनावग्रस्त हो गए हैं।

हम मनुष्यों ने वन्य जीवों के क्षेत्रों में अपना अधिकार जमा लिया है।

तेंदुए जैसे जंगली जानवरों के शहरों में भटकने के पीछे मनुष्य भी समान रूप से जिम्मेदार है।

ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण विनाश, वनों की कटाई भी इसे बढ़ा रहा है।

भोजन और आश्रय की तलाश जंगली जानवरों को उन जगहों पर जाने को मजबूर कर रहा है, जहां पे मनुष्यों की रिहाइश है।

झारखंड में भी हाथियों ने लहलहाती फसलों को रौंदते हुए सड़कों पर अपने पैर पसारना शुरू कर दिए हैं।जंगल से गांव व शहर की ओर हाथियों के आने के कई कारण हैं।उनमें घटते जंगल, आहार की कमी, पानी की तलाश आदि हैं।

झारखंड वन संपदा का धनी राज्य है।यहां के जंगल छत्तीसगढ़ से जुड़े हुए हैं।इन वनों में नक्सल गतिविधियां चलती रहती हैं।

जहां वनों में हाथियों की चिंघाड़ सुनाई देती थी, वहां अब मोर्टार व बंदूकें गरजती हैं।लैंड माइंस बिछे हैं।

नक्सली वहां जन अदालत लगाते हैं।

ट्रेनिंग कैंप चलाते हैं।

हाथियों के झुंड आने से उन्हें तितर-बितर करने के लिए फायरिंग भी करते हैं।गंधक की गंध और बारूद की आवाज से बौखलाए गजराज सुरक्षित ठिकाने की खोज में शहर में उत्पात मचा रहे हैं।

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