* यह वर्ष पुरुषार्थ का वर्ष है, इस वर्ष को संकल्प, साहस, उत्साह, आस्था, उमंग एवं सृजनात्मक अन्त: क्षमताओं द्वारा सजाना चाहिए :: डॉ परिणीता सिंह
* हजारों वर्ष पूर्व से ही हमारी संस्कृति ने ज्ञान एवं कर्म के द्वारा विश्व को हमेशा से मार्गदर्शन दिया है :: डॉ परिणीता सिंह
भारतीय संस्कृति का मूल उसकी वैदिक एवं रचनात्मक क्षमता :: डॉ परिणिता सिंह
* नव निर्माण की ओर बढ़ते कदम
डॉ परिणिता सिंह ( ख्याति प्राप्त योग प्रशिक्षक )
पी एच डी – योग विज्ञान ( पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर )
भारतीय संस्कृति का मूल उसकी वैदिक एवं रचनात्मक क्षमता है। इस संस्कृति की समरसता अद्भुत है । किसी भी राष्ट्र या समाज के भविष्य का निर्माण उसके अतीत के जुड़ा रहता है। चुंकि भारतीय संस्कृति की नींव अध्यात्म रहा है, अतः अतीत सदैव गौरवशाली होने के कारण भविष्य प्रकाशमय हीं होगा।
प्रगतिशीलता के इतिहास में हर सफल समाज में तीन विशेषताएं अनिवार्य रूप से पाई जाती हैं
* सदविवेक
* सत्साहस और
* स्वावलंबन
साधन को शक्ति देने के लिए उसमें सामूहिकता का समावेश अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सामूहिक कार्य का प्रभाव, प्रकाश, प्रोत्साहन एवं अनुकरण की उमंगे प्रदान करता है।
संसार में समस्त दुखों के तीन मुख्य कारण है
* अज्ञानता
* आसक्ति एवं
* अभाव
यह कारण किसी भी राष्ट्र एवं समाज के प्रगति की बाधाएं मानी जाती हैं। परंतु हजारों वर्ष पूर्व से ही हमारी संस्कृति ने ज्ञान एवं कर्म के द्वारा विश्व को हमेशा से मार्गदर्शन दिया है। विगत कुछ वर्षों से विश्व जिस विषम परिस्थितियों से जूझ रहा है। जैसे- महामारी, युद्ध, अर्थव्यवस्था आदि, उसका निदान हमारे शास्त्रों में इंगित है। बहुत ही सरल एवं सहज भाव से अगर गीता, रामायण का पाठ सामूहिक रूप से किया जाए तो उसका नाम पारायण हो जाता है। जिसका प्रभाव सिर्फ व्यक्ति विशेष पर ही नहीं वरन समस्त वातावरण पर पड़ता है। सामूहिक मनुष्य की मानसिक धाराएँ जब एक दिशा में प्रवाहित होती है तो प्राकृतिक जगत में ही नहीं बल्कि मानव के सूक्ष्म जगत में तरंगे उत्पन्न होती है। जिसका प्रभाव ब्रह्मांड में व्याप्त कुसंस्कारों का शमन करती है।
यह वर्ष पुरुषार्थ का वर्ष है, इस वर्ष को संकल्प, साहस, उत्साह, आस्था, उमंग एवं सृजनात्मक अन्त: क्षमताओं द्वारा सजाना चाहिए।
हमारे संपूर्ण शास्त्रों में वेद उपनिषद पुराण एवम गुरूग्रंथों में अनेक शिक्षाएं अपने-अपने ढंग से दी गई है ।
इन शिक्षाओ के साथ आत्मसात करना, व्यवहारिक सहयोग देना, पथ प्रदर्शन करना ताकि हम सभी मिलकर विश्व गुरु होने की ओर कदम बढ़ाएं ।
डॉ परिणीता सिंह ( ख्याति प्राप्त योग प्रशिक्षक )