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डर के प्रभाव से जीत कर ही हम आगे बढ़ सकते हैं : गुड़िया झा

डर के प्रभाव से जीत कर ही हम आगे बढ़ सकते हैं : गुड़िया झा

साहस एक ऐसा गुण, जिसे पवित्र धर्म पुस्तक “गीता” के अनुसार हरेक इंसान का पहला दैविक गुण माना गया है। भय जिसे इंग्लिश में ‘FEAR’ कहते हैं, उसे ऐसे समझा जा सकता है।
F- Fantasized काल्पनिक

E- Experience अनुभूति

A- Appearing जो लगता है

R- Real वास्तविक।
जब हम भविष्य में होने वाले भयानक परिणामों के बारे में कल्पना शुरू करते हैं और यह हमारे लिए बहुत वास्तविक जैसा लगने लगता है, तो यह कहा जाता है कि हम डर के जंजाल में फंस गये हैं। दूसरी ओर, भयभीत होने के बावजूद लक्ष्य प्राप्ति में लगे रहना “साहस” है। हम सब एक न एक बात से डरे हैं, एक न एक बार, लेकिन अगर हम यह मानते हैं कि यह डर झूठा है और 99.9% डर और उसके भयावह परिणाम वास्तव में नहीं होने वाला है बल्कि हमनें हीं उस डर को बढ़ावा दे रखा है। एक बार जब हम महसूस करते हैं कि ये सारे भय झूठे हैं और ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है, यह सिर्फ हमारी कल्पना में हो रहा है और हम इन डरों का मुकाबला कर उसे दूर कर सकते हैं, तो हम पाते हैं कि हम एक साहसी व्यक्ति हैं।
सुख और दुख सभी का एक कंफर्ट जोन होता है। आगे कुछ और बुरा होने की आशंका हमें अपने मौजूदा हालात से बाहर निकलने से रोकती है। कई बार हमारे विचार और काम दोनों में दम होता है। इसके बावजूद भी आगे बढ़ने के लिए जिस हिम्मत की जरूरत होती है, हम जुटा नहीं पाते हैं। कई सवाल मन में उठते हैं। दिल कुछ कह रहा होता है, दिमाग कुछ और। अपने सुरक्षित दायरे से बाहर हम खुद को बड़ा कमजोर पाते हैं। हर नई शुरुआत हमें डराने लगती है। इसलिए आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले हमें अपने भीतर के डर को ही भगाना पड़ता है। हम सुखी हों या दुखी, अपनी जिंदगी पसंद हो या नापसंद हम एक तरह से जीने के आदी हो जाते हैं। हमें हारने का, दूसरों की हंसी का, रिश्ते टूटने का, जो हाथ में है उसे खोने का डर सताता है। यहां तक कि सही बात को किसी के सामने बोलने से भी हमें डर लगता है कि पता नहीं सामने वाला कहीं बुरा ना मान जाये। जीवन में नये बदलाव के लिए हमें अपनी कुछ आदतों को भी बदलना पड़ता है। कहा भी गया है कि डर के आगे जीत है।
1, डरें नहीं, बढ़ते रहें।
जहां पर जोखिम ज्यादा है वहां डरना स्वाभाविक है। वहां पर हमें सावधान रहने की ज्यादा जरूरत होती है। इन सबके बावजूद भी हम अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए भी हमेशा डरते रहते हैं। जबकि डर के प्रभाव में बैठने के बजाय अपने मन को मजबूत बनाते हुए आगे बढ़ते रहें। क्योंकि इस जमीन पर डर कर छिपने की कोई जगह नहीं है।
इसका सामना करके ही आगे बढ़ा जा सकता है। कभी अगर असफलता हाथ भी लगी, तो हार मानकर बैठने की जगह फिर से खड़े हों और चलते रहें। डर के प्रभाव से अगर हम हार मानकर बैठ गये तो फिर से हम अपने पहले वाले दायरे में ही सिमट कर रह जायेंगे, तो समय के साथ चल नहीं पायेंगे। किसी की भी समय और परिस्थिति स्थायी नहीं होती हैं। अब क्या होगा, ये सोचने की जगह हम क्या अच्छा कर सकते हैं यह सोचकर आगे बढ़ें।
2, स्वयं पर विश्वास रखें।
जब भी खुद से सम्बंधित कोई भी निर्णय लें, तो अपने ऊपर विश्वास जरूर रखें। लेकिन जब बात आगे बढ़ने की हो या किसी फैसले से सम्बंधित हो, तो ऐसे मामलों में अपने नजदीकी किसी अनुभवी व्यक्ति से सलाह अवश्य लेनी चाहिए। आगे क्या होगा, यह हम पूरी तरह से नहीं जानते। लेकिन जब अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति को मजबूत कर आगे बढ़ते हैं कि जो होगा वह देखा जायेगा, तो बहुत सारे रास्ते दिखाई भी देने लगते हैं।
उसी प्रकार हमेशा डर के प्रभाव में हार मान जाने से समस्याओं का समाधान नहीं होता। हार कुछ समय के लिए ही दुख देती है।लेकिन बिना कोशिश किये हार लंबे समय तक दुख देती है। परिवर्तन संसार का एक ऐसा सत्य है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता है। हम आज जहां हैं, वहां हमेशा बने नहीं रह सकते हैं। इसलिए हमेशा भाग्य और समय के भरोसे बैठने के बजाय निरंतर बढ़ते रहें।
यह साहस ही, जो हम हमेशा चाहते हैं, उसको पूरा करने में मदद करता है। लेकिन हम शुरू करने से पहले ही एक छोटे से शब्द ‘विफलता’ के डर से भयभीत होकर अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाते हैं। कई बार छुपे रूप से महान अवसर आते हैं और जो हमें एक समस्या की तरह लगते हैं। सबसे पहले नकारात्मक प्रक्रिया आती है कि हम असफल हो गये तो? अच्छा न हुआ तो? और लोगों ने इसे स्वीकार नहीं किया तो? का भय।
लेकिन एक बार जब हम इन कुशंकाओं को मन से दूर करके अपना काम शुरू कर देते हैं तो हमारा साहस हमारे सपनों को साकार करना शुरू कर देता है।

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