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प्रबोधिनी एकादशी :: 07 नवम्बर, गुरुवार को दिवा – 10.08 में लगेगा, शुक्रवार दिवा – 12.36 पर्यंत :: डॉ स्वामी दिव्यानंद जी महाराज ( प्रख्यात ज्योतिषी )

रांची, झारखण्ड | नवम्बर | 05, 2019 ::  रवियोग, स्थायीजय योग भी मिलने के कारण इसकी और भी बढ गई है।
प्रख्यात ज्योतिषी एवं धर्म गुरु स्वामी दिव्यानंद जी महाराज ने बताया, जगत के पालनहार भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन 4 महीने के लिए क्षीर सागर में भगवान शेषनाग की शैया पर शयन के लिए चले जाते हैं और इसके बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन अपनी शैया से वापस आते हैं, जिसे देव उठनी, देवोत्थान या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है,
स्वामी जी ने बताया, वैसे तो वर्ष में 24 एकादशी आते हैं, किंतु देवोत्थान एकादशी का विशेष महत्व है, इन चार महीनों में भगवान जब तक शयन में होते हैं, विवाह के साथ सभी शुभ कार्य बंद रहते हैं, भगवान के शैया से वापिस आते ही शहनाइयाँ गूंजने लगती हैं,

इस एकादशी व्रत की करने से भक्त को मोक्ष प्राप्ति के मार्ग प्रसस्त होते हैं।
इस दिन भगवान बिष्णु की पूजा प्रेम व श्रद्धा के साथ किया जाना चाहिए।
पौराणिक कथा …….

जैसा कि स्वामी जी बताया, प्राचीन कथा के अनुसार एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। फिर चाहे वो प्रजा हो नौकर-चाकर हो या पशु, किसी को भी एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी पड़ोसी राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आया। यहां आकर वो नौकरी मांगने लगा। राजा ने नौकरी पर रखा तो मगर सामने एक शर्त भी रख दी। राजा ने कहा कि रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा।
उस व्यक्ति ने अपनी नौकरी के लिए उस समय तो ‘हां’ कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा। उसने कहा कि उसका पेट नहीं भरता उसे भूख लगती है। राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, वो आदमी अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ,
तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वो आदमी नदी किनारे पहुंचे और स्नान कर भोजन पकाने लगा,जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है। उसके बुलाने पर पीतांबर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे और प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजन करके भगवान अंतर्धान हो गए और वह अपने काम पर चला गया।
15 दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता।
यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। राजा बोले मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए। राजा उस आदमी के साथ गए और पेड़ के पीछे छिपकर बैठ कर देखने लगे। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा।
लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा देखकर भगवान तुरंत प्रकट हुए और उसके साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।

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