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समझें, बच्चों की भावनाओं को

समझें, बच्चों की भावनाओं को : गुड़िया झा

माता पिता होने के कारण हम अक्सर बच्चों के बारे में काफी चिंतित रहते हैं कि उन्हें सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करायी जायें और हम वे सभी सुविधाएं उन्हें देते भी हैं। बदलते समय के साथ लोगों के विचारों में भी काफी बदलाव आया है। नयी तकनीक के इस युग में हमारे बच्चे भी सभी प्रकार की जानकारी प्राप्त करने के लिए उत्सुक रहते हैं। कंप्यूटर, मोबाइल आदि की जानकारी भी उन्हें अच्छी तरह से होती है। लेकिन अपनी इसी दुनिया में उलझ कर बच्चों में धैर्य और सहनशीलता कम होती जा रही है। हमारी थोड़ी सी सावधानी बच्चों में तकनीकी ज्ञान से पूर्ण होते हुए भी उन्हें अपने जीवन में धैर्य और सहनशीलता के महत्व को दर्शाते हुए उनके नजरिये को बदल सकता है।

1, पढ़ाई के प्रति सही नजरिया।
आमतौर पर देखा गया है कि हम पढ़ाई का मतलब मोटी किताबों का अध्ययन और परीक्षा में प्राप्त अच्छे अंकों के आधार पर समझते हैं। किसी बच्चे के अच्छे अंकों के आधार पर हम अपनी सोच विकसित कर लेते हैं कि हमारे बच्चे भी काफी अच्छे अंक लाकर हमारा नाम रौशन करें। फिर अपनी सोच के आधार पर हम अपने विचारों को बच्चों के मन में देना शुरू कर देते हैं तथा उम्मीद भी करते हैं कि वे हमारे सपनों को पूरा भी करेंगे। श्री नवीन चौधरी द्वारा लिखी गयी पुस्तक “जन्मजात विजेता” में इसके विभिन्न पहलूओं पर बहुत ही अनोखे ढ़ंग से चर्चा की गयी है कि बच्चे तो जन्म से ही विजेता हैं। वे अपने वास्तविक गुणों के आधार पर अपनी मंजिल तक पहुंच ही जाते हैं। बस जरूरत है, तो उनके जीवन में हमारे सही मार्गदर्शन की। सबसे पहले तो हमें खुद ही इस सोच से बाहर निकलना होगा कि मोटी किताबों का अध्ययन और परीक्षा में अच्छे अंकों के आधार पर बच्चों के गुणों को परखा नहीं जा सकता है। इस प्रकार के विचारों से बच्चों के मन मस्तिष्क पर ज्यादा दबाव पड़ता है और धीरे धीरे यही आक्रमक रुप धारण कर लेता है। जिसका परिणाम यह होता है कि उनमें धैर्य और सहनशीलता कम होती जाती है। जिस प्रकार से हाथों की सभी उंगलियां एक जैसी नहीं होती हैं। उसी प्रकार से सभी बच्चों की क्षमताएं भी अलग अलग होती है। हम उनमें धैर्य और सहनशीलता के वास्तविक रूपों का परिचय देकर ही आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। बच्चों की बातों को धैर्यपूर्वक सुनना और उसके बाद ही उनकी समस्या पर ध्यान देकर उसका निराकरण करते हुए उन्हें एक अच्छा इंसान बनाया जा सकता है।

2, दिखावे से बचें।
जीवन को सही नजरिये से जीने के लिये हमें अपने आपको दिखावे से बचाना होगा। ये कोई जरूरी नहीं कि किसी दूसरे की प्राथमिकताओं के आधार पर हम भी अपनी प्राथमिकताएं तय कर लें। हमारे बड़े बुजुर्गों ने भी कहा है कि जब भी मन में ये हीन भावना आये कि हमारे पास सुविधाओं का अभाव है, तो उन लोगों के बारे में सोचें कि वे लोग किस प्रकार से अपनी जिंदगी खुशी से जीते हैं, जिनके पास वे सुविधायें भी नहीं हैं, जो हमारे पास हैं। जब हम खुद अपनी उस सोच को बदलेंगें, तभी तो हमारे बच्चों पर भी इसके बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे। स्कूलों और कॉलेजों में पहले पढ़ाई होती है और बाद में परीक्षायें होती हैं। लेकिन जीवन की परीक्षाओं में हमें पहले कई बार विपरीत परिस्थितियों से गुजरना पड़ता हैं और उनसे सबक लेकर जब आगे बढ़ते हैं, तो खुद को और भी ज्यादा मजबूत पाते हैं। उस समय जो रिजल्ट हमें मिलता है उसका भी अपना एक अलग ही आनंद होता है। उन चुनौतियों का सामना करने में धैर्य और सहनशीलता का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है। बच्चों को भी इसी प्रकार से प्रेरित कर जब हम आगे बढ़ने में उनकी मदद करेंगे, तो निश्चय ही वे हमारी भावनाओं को समझेंगे और जीवन पथ पर निरंतर आगे बढ़ेंगे। क्योंकि बच्चे केवल हमारी या आपकी नहीं, वे पूरे राष्ट्र की संपत्ति हैं।

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