होली पर कुछ पंक्तियां
मोहे अपने ही रंग में …
मोहे अपने ही रंग में
रंग लो गिरिधारी
बीते माघ आइल फाग
चलत मदहोश फागुन बयार
रंग बिरंगी उड़े गुलाल
तन के तार छुए सब कोई
मन के तार न भिंगोए कोई
तुम अपने ही रंग में
मोहे रंग लो गिरिधारी
तब समझू मैं होरी आई
भरी पिचकारी उड़त गुलाल
ना बा कौनौ उमर के लिहाज़
बइठ मंडली बाजत
ढोल मजीरा गावत है सब फाग
जोगिरा सा रा रा
भर फागुन, भर फागुन
बुढ़वा देवर लागे, भर फागुन
सखियन संग मिली
खेलत होरी करत हुड़दंग
मोरे मुख ना चढत कोई रंग
अखियाँ जिसको ढूंढत है
वो नाही है संग
दई द जगह
अपनी नयनन में
रंग दई मोको
अपने ही रंग में
रंग लो गिरिधारी
तब समझू मैं होरी आई
जोगिरा सा रा रा रा ।
अर्पणा सिंह रांची