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शांति, विकास और सुख का मार्ग है अहिंसा : आचार्य महाश्रमण

शांति, विकास और सुख का मार्ग है अहिंसा : आचार्य महाश्रमण

आचार्यश्री ने ज्ञानार्जन कर अहिंसा की चेतना के विकास दी पावन प्रेरणा

दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने अपने आराध्य के समक्ष दी अपनी भावाभिव्यक्ति

16.03.2022, बुधवार, अध्यात्म साधना केन्द्र, छत्तरपुर (दिल्ली) :
तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखा, शासनमाता साध्वी कनकप्रभाजी को दर्शन देने के लिए तेरापंथ धर्मसंघ की आचार्य परंपरा में सर्वाधिक विहार का नवीन इतिहास सृजित करने वाले, जन-जन को सन्मार्ग दिखाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी भारत की राजधानी दिल्ली के छत्तरपुर में स्थित अध्यात्म साधना केन्द्र से ज्ञान का नूतन आलोक बांट रहे हैं। नित्य प्रति शासनमाता को चित्त समाधि देने के साथ दिल्लीवासियों को ही नहीं, अपितु श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ज्ञान भी प्रदान कर रहे हैं। अध्यात्म जगत के महासूर्य के विराजमान होने से अध्यात्म साधना केन्द्र का नाम मानों सार्थक सिद्ध हो रहा है।

बुधवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के उपस्थित श्रद्धालुओं को तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ज्ञान और आचरण दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। आचरण तभी अच्छा हो सकता है, जब आदमी को उस विषय का अच्छा ज्ञान हो। आदमी को यदि अच्छा ज्ञान न तो आदमी का आचरण भला कैसे अच्छा हो सकता है। अध्यापक विद्यालय में पढ़ाने से पहले पढ़ाने की योग्यता प्राप्त करता है, तदुपरान्त व विद्यार्थियों को अच्छा पढ़ा सकता है। जो आचरण अथवा कार्य करना है, पहले उसका अच्छा होना आवश्यक है। शास्त्रों में ज्ञान का सार अहिंसा को बताया गया है। ज्ञानी आदमी किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करता। अहिंसा का आचरणात्मक पालन के लिए आदमी को हिंसा और अहिंसा का अच्छा ज्ञान होना आवश्यक होता है। जिस प्रकार मानव को अपना जीवन प्रिय है, उसी संसार के सभी जीवों का अपना जीवन प्रिय होता है। जिस आदमी को ऐसा ज्ञान होता है, वह हिंसा से बच सकता है और अहिंसा का पालन कर सकता है।

गुस्सा, अहंकार, लोभ आदि के कारण भी आदमी कभी हिंसा में चला जाता है। कई अभाव में स्वभाव भी बिगड़ सकता है। हालांकि यह आवश्यक नहीं होता। आदमी के भीतर आध्यात्मिक चेतना का जागरण् है तो आदमी स्वयं कष्ट झेल लेगा, किन्तु हिंसा, हत्या के कुमार्ग पर नहीं चलेगा। आदमी को अपने जीवन में जितना संभव हो सके, हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी निमित्तों के कारण हिंसा में न जाए, इसके लिए वर्तमान शासन-प्रशासन को भी वैसे निमित्तों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। कई बार नियम और प्रशासनिक तंत्र के बाद भी हिंसा कम नहीं होती है। इसके लिए आदमी के भीतर अध्यात्मिक चेतना का जागरण आवश्यक होता है। आदमी के भीतर अध्यात्म चेतना जागृत होती है तो आदमी अहिंसा के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। संत लोगों के हृदय परिवर्तन का प्रयास करते हैं। आचार्यश्री ने परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के गुजरात यात्रा के दौरान अहिंसा की स्थापना के लिए किए गए विभिन्न प्रयासों का वर्णन करते हुए कहा कि आदमी किसी को कष्ट न दे, हिंसा में न जाए तो अच्छा विकास हो सकता है। जीवन में अहिंसा होती है तो अच्छा विकास, शांति की प्राप्ति और भी सुख की प्राप्ति भी संभव हो सकती है।

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री शासनमाता साध्वीप्रमुखाजी के चित्त समाधि के लिए जप का प्रयोग करावाया। शहादा सभा के अध्यक्ष श्री राजेन्द्र सिंघी, गांधीनगर सभाध्यक्ष श्री अनिल पटवा, नोएडा सभाध्यक्ष श्री रणजीत बैद, उत्तर-मध्य दिल्ली के मंत्री श्री श्रीचंद कोठारी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। तदुपरान्त उल्लिखित सभी सभाओं के तेरापंथी समाज द्वारा पृथक्-पृथक् गीत का संगान भी किया गया।

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