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अपने साथ दूसरों के विचारों को भी सुनें :: गुड़िया झा

अपने साथ दूसरों के विचारों को भी सुनें :: गुड़िया झा

प्रत्येक व्यक्ति की अपनी सोच और उनके अपने विचार होते हैं। सभी की बातों को सुनना और समझना भी हमारे लिए जरूरी है। क्योंकि हो सकता है कि उनके विचारों को सुनने और समझने से हमें भी कुछ सीखने को मिले। लेकिन कई बार हम अपने आप को ही ज्ञान का भंडार समझते हुए दूसरे के बारे में सही और गलत का फैसला ले लेते हैं। छोटी सी बात को गलत बता कर हम बड़ा बना देते हैं। जिसका असर हमारी काम करने की क्षमता पर भी पड़ता है और हमारी नेतृत्व क्षमता कम होती जाती है।
साइकोलॉजी टुडे पत्रिका में यूनिवर्सिटी ऑफ मिनिसोटा के प्रोफेसर डेविड डब्ल्यू जॉनसन लिखते हैं कि ‘ अगर आप किसी मुद्दे पर अपनी राय बनाते हैं, तो इसके पीछे भी कुछ वजहें होती हैं। आपकी शिक्षा, आपका माहौल, आपको प्रभावित करने वाले लोग और आपकी समझ। ये सब आप पर असर डालते हैं। आपको यहां यह समझना होगा कि जिस तरह आप अपनी सोच बताते हैं, कोई दूसरा ठीक आपसे अलग भी सोच सकता है, उन्हीं तमाम कारणों की वजह से। फिर आप सही और वो गलत कैसे हुआ? ‘

1, गुस्से के बजाय समझदारी।
कई बार ऐसा होता है कि जब हम किसी से बात कर रहे होते हैं, तो हमारी ये कोशिश रहती है कि हम अपनी बातों को सबसे पहले और दमदार तरीके से पेश करें जिसे लोग गम्भीरता से सुनें। इस दौरान जब कभी सामने वाले भी अपने विचार प्रकट करते हैं, तो हम उनकी बातों को नजरअंदाज कर देते हैं। कभी- कभी ऐसा भी होता है कि जब उनके विचारों से हमारे विचार मेल नहीं करते हैं तो हम गुस्सा में अपनी प्रतिक्रिया देकर दबाव में अपनी बातों को सही साबित करने का प्रयास भी करते हैं। जो कि एकदम ही गलत है।
इसके अनुकूल यदि हम गुस्से की जगह समझदारी से काम लें, तो छोटी-छोटी बातें कभी बड़ा रूप नहीं लेंगी और हमारी टीम भी ज्यादा मजबूत होगी। इतना ही नहीं जब हम दूसरे के विचारों को शांत पूर्वक सुनेंगे तो उसमें कई बातें ऐसी भी होंगी जो हमारे काम की होंगी और जिनसे हमें आगे बढ़ने के कुछ रास्ते भी मिलेंगे। इसलिए जब कभी किसी के विचारों से सहमत ना भी हों तो सीधे प्रतिक्रिया देने के बजाय गम्भीरता से शांत रहें।

2, सही नजरिये से देखें।
सबकी अपनी सोच और अपना एक अलग ही नजरिया होता है। सभी के जीवन में अलग-अलग तरह के संघर्ष होते हैं और उन संघर्षों से जो सबक वो सीखते हैं, उसी के आधार पर अपने विचारों को भी प्रकट करते हैं। इसलिए दूसरों को सीधे गलत ठहरा देना उचित नहीं। हमेशा दूसरों को गलत ठहरा कर कहीं न कहीं हम अपना ही नुकसान कर रहे होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की अलग परिस्थिति होती है। उन सभी का आकलन करना हमारे हाथ में नहीं है। हमारे हाथों में है तो बस इतना कि हम सभी की बातों को सुनें और समझें तथा जितना हो सके अपनी तरफ से पहल कर
अपने विचारों से भी उन्हें अवगत कराएं। हो सकता है कि शांत तरीके से कही गई बातों को वे गम्भीरता से सुनेंगे और हमसे सकारात्मक विचारों को जानने की उनमें प्रबल इच्छा होगी।

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