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अतीत को छोड़ वर्तमान में जीने की आदत डालें : गुड़िया झा

अतीत को छोड़ वर्तमान में जीने की आदत डालें : गुड़िया झा

हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री और विचारक अटल बिहारी वाजपेई ने अपनी एक कविता में लिखा है कि

“कल कल करते आज हाथ से निकले सारे
भूत भविष्य की चिंता में वर्तमान की बाजी हारे।”

अधिकांश हमारे साथ भी यही होता है अतीत में हम जो भी नहीं कर पाए उसे लेकर अवसाद और पश्चाताप की स्थिति में रहते हैं या भविष्य की चिंता में एवं अनिश्चितता को लेकर विचलित व परेशान रहते हैं ।

लेकिन हम भूल जाते हैं जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय हमारा वर्तमान होता है। व्यर्थ की चिंता पश्चाताप कर के हम अपना ही नुकसान कर रहे होते ।

कई महान विचारको प्रशिक्षकों ने इस बात को भी स्वीकार किया है कि उन्हें भी भूत भविष्य की बातों को भूल कर सिर्फ वर्तमान क्षण में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए प्रेरित किया गया ।

बीते हुए कल से सीख लेते हुए अपने वर्तमान को भरपूर जीने की आदत को डालकर हम स्वास्थ्य एवं सफलता के साथ-साथ अपनी खुशी को भी सुनिश्चित कर सकते हैं।

दूसरों की नहीं बल्कि अपने कार्यों की समीक्षा करें यह मनुष्यों की आदत होती है कि हम दूसरों के कार्यों का मूल्यांकन करके करने में जरा भी देर नहीं करते लेकिन अपने कार्यों का मूल्यांकन की ओर ध्यान नहीं देते । इसे जरूरी नहीं समझते। जबकि सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि हम अपने कार्यों के मूल्यांकन पर ज्यादा ध्यान दें क्योंकि अपने द्वारा किए गए कार्यों की समीक्षा के द्वारा नियम कहां सही और कहां गलत है यह हमसे ज्यादा अच्छा और कोई नहीं जान सकता ।

हम दूसरों से झूठ बोल सकते हैं लेकिन अपनी आत्मा से झूठ नहीं बोल सकते। इसलिए सही रूप से अपने कार्यों की समीक्षा करके अपनी कमियों को पहचान कर उसे दूर कर सकते हैं।

इससे हमारा खुद का आत्मविश्वास बढ़ेगा। विचारों और कर्मों में गतिशीलता आयेगी। प्रख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन की यह बात बहुत ही प्रेरणादायक है जीवन चिंता और तनाव बिताने के बजाय यदि हम अपनी सक्रियता पर ध्यान दें तो इससे अपने विचारों और कर्मों में संतुलन बनाएंगे ही साथ ही साथ सही समय पर सही काम करने में सहूलियत होगी।

जिससे कि हम औरों के लिए भी एक अच्छे मार्गदर्शक बन सकते हैं ।

दिल से दूसरों की तारीफ़ करें। जिस प्रकार से हमें दूसरों के मुख से अपनी तारीफ सुनना अच्छा लगता है ठीक उसी प्रकार से दूसरे भी इसके हकदार है । तारीफ करके में कंजूसी नहीं करें। पूरे दिल से सभी की तारीफ करें इससे मनोबल बढ़ाने के साथ-साथ सकारात्मकता का संचार होता है ।

इसका होता है इसका नतीजा क्या होता है की अगली बार उससे भी बेहतर परिणाम हमारे सामने होते हैं । इसके विपरीत यदि हम छोटी-छोटी गलतियां निकाल कर सार्वजनिक रूप से किसी की आलोचना करेंगे तो उसका मनोबल गिरेगा। इसका असर कार क्षमता बुरा पड़ता है। साथ ही इससे हमारे संबंधों पर भी बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका बनी रहती है । इसलिए हमारे लिए बेहतर यही होगा कि हम खुशियों का अभिन्न हिस्सा बने न की आलोचनाओं का।

अतीत को छोड़ वर्तमान में जीने की आदत डालें।
गुड़िया झा
हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री और विचारक अटल बिहारी वाजपेई जी ने अपनी एक कविता में लिखा है कि
“कल-कल करते आज हाथ से निकले सारे
भूत भविष्य की चिंता में वर्तमान की बाजी हारे।”
अधिकांश हमारे साथ भी यही होता है कि अतीत में हम जो भी नहीं कर पाए उसे लेकर अवसाद और पश्चाताप की स्थिति में रहते हैं या भविष्य की चिंता में एवं अनिश्चितता को लेकर विचलित व परेशान रहते हैं ।
लेकिन हम भूल जाते हैं कि जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय हमारा वर्तमान होता है। व्यर्थ की चिंता पश्चाताप करके हम अपना ही नुकसान कर रहे होते हैं ।
कई महान विचारको प्रशिक्षकों ने इस बात को भी स्वीकार किया है कि उन्हें भी भूत भविष्य की बातों को भूल कर सिर्फ वर्तमान क्षण में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए प्रेरित किया गया ।

बीते हुए कल से सीख लेते हुए अपने वर्तमान को भरपूर जीने की आदत को डालकर हम स्वास्थ्य एवं सफलता के साथ-साथ अपनी खुशी को भी सुनिश्चित कर सकते हैं।
1, दूसरों की नहीं बल्कि अपने कार्यों की समीक्षा करें।
यह हम मनुष्यों की आदत होती है कि हम दूसरों के कार्यों का मूल्यांकन करने में जरा भी देर नहीं करते लेकिन अपने कार्यों का मूल्यांकन की ओर ध्यान नहीं देते या इसे जरूरी नहीं समझते। जबकि सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि हम अपने कार्यों के मूल्यांकन पर ज्यादा ध्यान दें क्योंकि अपने द्वारा किए गए कार्यों की समीक्षा के द्वारा नियम कहां सही और कहां गलत है यह हमसे ज्यादा अच्छा और कोई नहीं जान सकता ।
हम दूसरों से झूठ बोल सकते हैं लेकिन अपनी आत्मा से झूठ नहीं बोल सकते। इसलिए सही रूप से अपने कार्यों की समीक्षा करके अपनी कमियों को पहचान कर उसे दूर कर सकते हैं।
इससे हमारा खुद का आत्मविश्वास बढ़ेगा। विचारों और कर्मों में गतिशीलता आयेगी। प्रख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन की यह बात बहुत ही प्रेरणादायक है कि जीवन चिंता और तनाव में बिताने के बजाय यदि हम अपनी सक्रियता पर ध्यान दें तो इससे अपने विचारों और कर्मों में संतुलन बनाएंगे ही साथ ही साथ सही समय पर सही काम करने में सहूलियत होगी।
जिससे कि हम औरों के लिए भी एक अच्छे मार्गदर्शक बन सकते हैं ।
2, दिल से दूसरों की तारीफ़ करें। जिस प्रकार से हमें दूसरों के मुख से अपनी तारीफ सुनना अच्छा लगता है ठीक उसी प्रकार से दूसरे भी इसके हकदार है । तारीफ करने में कंजूसी नहीं करें। पूरे दिल से सभी की तारीफ करें इससे मनोबल बढ़ाने के साथ-साथ सकारात्मकता का संचार होता है। इसका नतीजा क्या होता है की अगली बार उससे भी बेहतर परिणाम हमारे सामने होते हैं । इसके विपरीत यदि हम छोटी-छोटी गलतियां निकाल कर सार्वजनिक रूप से किसी की आलोचना करेंगे तो उनका मनोबल गिरेगा। इसका कार्यक्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही इससे हमारे संबंधों पर भी बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका बनी रहती है । इसलिए हमारे लिए बेहतर यही होगा कि हम खुशियों का अभिन्न हिस्सा बनें ना कि आलोचनाओं का।

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