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विश्व सेवा दिवस 9 नवंबर :: नेकी कर और दरिया में डाल :: गुड़िया झा

विश्व सेवा दिवस 9 नवंबर :: नेकी कर और दरिया में डाल :: गुड़िया झा

हम सभी कई तरह से एक-दूसरे की सेवा से ही जुड़े हुए हैं।अब सवाल उठता है कि वह कैसे? जब हम इसका सही तरीके से आकलन करेंगे, तो हमें इसकी एहमियत का पता चलता है। विश्व सेवा दिवस का मुख्य उद्देश्य सेवा के माध्यम से परस्पर एक-दूसरे को जोड़ कर रखना है।
सेवा जब निःस्वार्थ भावना से की जाये, तो इसकी एक अलग ही आत्मसंतुष्टि होती है। आमतौर पर किसी की भी सेवा करने के बदले हमारी लेने की प्रवृत्ति ज्यादा होती है। इस प्रवृत्ति से थोड़ा हटकर जब हम कार्य करते हैं, तो इसके परिणाम भी कुछ अलग ही होते हैं। सेवा का कोई आकार नहीं होता है। हमें अपने भीतर भी कुछ बदलाव करने की जरूरत है जिससे हम किसी की भी निःस्वार्थ भावना के साथ सेवा कर सकें।

1, बदले की भावना से ऊपर उठकर कार्य करना।
हमारे बुजुर्गों ने भी एक पुरानी कहावत कही है कि नेकी कर और दरिया में डाल। यह आज भी उतनी ही दमदार है।जब हम किसी की सेवा करते हैं, तो मन में एक उम्मीद भी बंधी रहती है कि कभी हमें भी उनकी जरूरत हो सकती है। जबकि इसके अनुकूल यह सोचकर अपना कार्य करें कि हमें किसी भी स्थिति में पीछे नहीं हटना है, तो हमारे भीतर एक आत्मविश्वास उत्पन्न होता है कि हम और भी ज्यादा लोगों की मदद कर सकते हैं।
इसका एक सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि हमारे मन में किसी तरह का कोई बोझ नहीं रहता है और हम अपना काम सही तरीके से कर पाते हैं। कई बार यह सुनहरा अवसर हमारे लिए बहुत सी संभावनाएं लेकर आती हैं। यह बात भी सत्य है कि आज सभी के पास समय का अभाव है। फिर भी हम अपना थोड़ा सा समय निकालकर उन जरूरतमंदों को जरूर दे सकते हैं जिनकी परिस्थिति भी एक समान नहीं रहने वाली है। बदले की भावना में हम सिर्फ अपना ही नुकसान करते हैं।
तो क्यों न हम एकसाथ मिलकर प्राप्त सुनहरे अवसर को हाथ से जाने न दें और विश्व सेवा दिवस की मुहिम को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाते हुए एक नये भारत के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दें।

2, अपनापन की भावना।
किसी की सेवा करने के लिए अपनेपन की भावना का होना भी बहुत जरूरी है। जब हम किसी की तकलीफों को अपनी तकलीफों से जोड़ कर देखते हैं, तो एहसास होता है अपनेपन का।
यह सिर्फ रिश्तों पर ही नहीं बल्कि उन सभी लोगों जिन्हें हम देखते हैं कि उन्हें हमारी मदद की जरूरत है। साथ ही पशु और पंक्षियों पर भी यह अपनेपन की भावना लागू होती है।
किसी की भी सेवा करने के लिए अपनी पसंद और नापसंद का आकलन नहीं किया जा सकता है। जीवन में ऐसे कई लोग होते हैं जो हमारी पसंद के नहीं होते हैं। परिस्थितियां एवं लोग हमेशा एक समान नहीं होते हैं। इसलिए किसी की सेवा करने के लिए यह भी जरूरी है कि जो जिस रूप में है हम उन्हें उसी रूप में स्वीकार करें।

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