रांची, झारखण्ड । सितम्बर | 01, 2017 :: राष्ट्रीय पोषण सप्ताह प्रत्येक वर्ष 1 – 7 सितंबर को मनाया जाता है। पोषण सप्ताह मां और बच्चे के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी और जागरूकता बढ़ाने का एक अवसर है। इस वर्ष के पोषण सप्ताह का थीम है – आॅप्टिमल इन्फेंट एंड यंग चाइल्ड फिडिंग प्रैक्टिसेसः बेटर चाइल्ड हेल्थ।
यूनिसेफ की झारखंड प्रमुख डा. मधुलिका जोनाथन कहती हैं, ‘जन्म का प्रथम 1000 दिन, गर्भावस्था से लेकर पहला दो वर्ष बच्चों के लिए एक अनूठा अवसर होता है। इसी दौरान बच्चों के संपूर्ण स्वास्थ्य, वृद्धि और विकास की आधारशिला तैयार होती है, जो कि बच्चे के पूरे जीवन काम आता है। लेकिन अक्सर गरीबी और कुपोषण के कारण यह आधारशिला कमजोर हो जाती है, जिसके कारण बच्चों के समय से पूर्व मृत्यु का खतरा रहता है और उनका शारीरिक विकास प्रभावित होता है।’
बच्चों में कुपोषण और महिलाओं में एनिमिया को दूर करने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रमाणित 10 उपाय बताए गए हैं। इनमें तीन स्तनपान के अभ्यास शामिल हैं (जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान कराना, जन्म के पहले छह महीने के दौरान सिर्फ स्तनपान कराना इसके अलावा एक बंूद पानी भी नहीं और सातवें महीने से पूरक आहार देना और साथ-साथ स्तनपान जारी रखना) । इसके अलावा, महिलाओं और किशोरियों को आयरन की गोली उपलब्ध करवाकर उनमें एनीमिया को कम करना तथा, शिशुओं के डायरिया/न्यूमोनिया/मलेरिया का उपचार; नियमित टीकाकरण को सुनिश्चित करना; शौचालय का उपयोग; खाने से पहले और शौच के बाद साबुन से हाथ धोने का अभ्यास और गर्भवती महिलाओं की देखभाल शामिल है।
पोषण और स्वच्छता का अंर्तसंबंध
बच्चों में लगभग 40-60 प्रतिशत कुपोषण का कारण गंदगी या अस्वच्छता हो सकता है, मुख्यतः डायरिया और बार-बार होने वाले आंतों के संक्रमण के कारण होने वाला कुपोषण। बार-बार होने वाले डायरिया के कारण बच्चे कुपोषित हो जाते हैं, क्योंकि बच्चे कम खाते हैं और उनका शरीर पोषण को ठीक से अवशोषित नहीं कर पाता। इसी प्रकार, एक कुपोषित बच्चे को डायरिया और दूसरे संक्रमण होने की काफी संभावना रहती है।
मुंह के द्वारा शरीर में प्रवेश करने वाले दूषित पदार्थ केवल दूषित भोजन, पानी और हाथों के माध्यम से शरीर में प्रवेश नहीं करते, बल्कि खेलने-कूदने के दौरान बच्चे द्वारा मिट्टी या जानवरों के मल खा लेने से भी यह शरीर में प्रवेश करता है। अस्वच्छ या गंदे माहौल में रहने वाले लोगों को, जिसमें खुले में शौच भी शामिल है, को अत्यधिक संक्रमित बीमारी होने का खतरा रहता है। आंतों के कीड़े न केवल पोषण के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैें, बल्कि यह आंतों में रक्तस्राव का कारण भी बनता है। इसके अलावा एनीमिया और डायरिया होने की भी संभावना रहती है। लगभग आधे डायरिया के मामले और एक तिहाई श्वसन संक्रमण के मामलों को स्तनपान के अभ्यास से दूर किया जा सकता है। स्तनपान 72 प्रतिशत डायरिया से संबंधित मामलों और 57 प्रतिशत श्वसन से संबंधित मामलों को अस्पताल तक पहुंचने से रोक सकता है। (लांसेट 2016)
यदि स्वच्छता और सफाई के उपायों को 99 प्रतिशत तक लागू किया जाए तो यह डायरिया से होने वाली समस्याओं को एक तिहाई तक कम कर सकता है। खाने से पहले और शौच के बाद साबुन से हाथ धोने के अभ्यास को अपना डायरिया के खतरे को 48 प्रतिशत तक, पेयजल की गुणवत्ता को सुनिश्चित कर 17 प्रतिशत तक और मलमूत्र के सुरक्षित निपटान को सुनिश्चित कर 36 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। घरों में बच्चों के खेलने के क्षेत्र से जानवरों और मुर्गी पालन घरों को दूर रखकर भी बच्चों में बार-बार होने वाले आंतो के संक्रमण के खतरे को कम किया जा सकता है। (लांसेट 2013)
झारखंड में पोषण की स्थिति
एनएफएचएस 4 (2015-16) के अनुसार झारखंड में 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 45.3 प्रतिशत बच्चे बौने हैं या उम्र की तुलना काफी छोटे हैं, जो यह बतलाता है कि वे कुछ समय के लिए कुपोषित रहे हैं। 29 प्रतिशत बच्चों में सूखापन है या कहें कि शरीर की लंबाई की तुलना में काफी दुबले हैं, जो कि पोषक आहार न मिलने या हालिया बीमारी का कारण हो सकता है। लगभग 47.8 प्रतिशत बच्चों का वजन कम है, जो कि पुराने और गंभीर कुपोषण का कारण हो सकता है। 15-49 वर्ष की 65.2 प्रतिशत से अधिक महिलाएं और 15-19 वर्ष की लगभग 65.3 प्रतिशत किशोरियां राज्य में एनीमिया ग्रस्त हैं।
कुपोषण बच्चों को बीमारी और मृत्यु की ओर ले जाता है। बच्चों को सही पोषण नहीं मिलने से इसका प्रभाव उसके मानसिक विकास, पढ़ाई और कार्यक्षमता पर पड़ता है। नाटे कद की माताओं से कम वजन (2.5 किग्रा से कम) के बच्चे के पैदा होने की संभावना रहती है, जिससे गरीबी और कुपोषण का चक्र बरकरार रहता है। कुपोषण के कारण बच्चों पर पड़ने वाले बुरे प्रतिकूल प्रभावों को पुनः सुधारा नहीं जा सकता है। (लांसेट, 2003)।