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योजना रहे चुस्त तो दिमाग रहे दुरुस्त :: गुड़िया झा

योजना रहे चुस्त तो दिमाग रहे दुरुस्त :: गुड़िया झा

अक्सर हम अपने आसपास शारीरिक स्वास्थ्य के विषय में बातें करते हैं। लेकिन उन चर्चाओं में हम शायद ही अपनी मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बातें करते हों। जब हम इस ओर भी थोड़ा ध्यान देंगे,तो खुद के साथ दूसरों के विचारों में भी परिवर्तन ला सकेंगे। हमारी एक छोटी सी शुरूआत एक नये समाज और देश के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
1, उत्तम शारीरिक स्वास्थ्य।
कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है।इसलिए हमारी पहली प्राथमिकता शारीरिक सेहत को दुरूस्त रखने की होती है। अपने खाने की थाली में हर तरह के फलों और सब्जियों को शामिल करने से शरीर को सभी प्रकार के पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है। सही समय पर नाश्ता, खाना,तेल,मसाले का सीमित उपयोग साथ ही चाय और कॉफी के अत्यधिक सेवन से बचाव भी होना चाहिये।
शारीरिक रूप से भी हमेशा सक्रिय रहना अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है।
2, कार्य की योजना।
मानसिक स्वास्थ्य को फिट रखने में अपने कार्यों की योजना का भी महत्वपूर्ण स्थान है। योजना के अनुसार कार्य करने से एक ओर जहां हम समय का सही सदुपयोग करते हैं, वहीं दूसरी ओर जल्दीबाजी और तनाव से भी बचते हैं।
हमें अपने कार्यों के बारे में खुद ही आकलन करना होगा कि कौन से कार्य पहले जरूरी हैं और कौन से बाद में। कई बार ऐसा भी होता है कि अनावश्यक कार्यों को भी जल्दी समाप्त करने की चाहत हमें लगातार थकान की ओर ले जाती है। जिसका नतीजा यह होता है कि हम मानसिक रूप से परेशान हो जाते हैं।
3, सोचने का तरीका।
सबकी अपनी अलग सोच होती है । हमारी सोच का भी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हमेशा अच्छा सोचना,संतुष्टि का भाव,किसी के भी प्रति शिकायतें नहीं रखना आदि ऐसी बातें हैं जो कहने को तो बहुत छोटी हैं लेकिन हमें खुश रखने में इनका भी अपना एक अलग योगदान है। मनोवैज्ञानिकों का भी कहना है कि जैसा हम सोचते हैं वैसा ही प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है।
4, सामाजिक परिवेश और रिश्ते।
हमारे आसपास का वातावरण और लोगों से हमारे रिश्ते कैसे हैं इसका भी प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। यह कोई जरूरी नहीं कि हमारे विचारों से ही लोगों के विचार मेल खाते हों। इसके बावजूद भी हमें अपनी मन की स्थिति को हर हाल में मजबूत बनाना है। सबकुछ हमारे मन के अनुकूल नहीं हो सकता है। इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि जो जिस रूप में है उसे उसी रूप में स्वीकार कर हम आगे बढ़ें। आक्रोश में प्रतिक्रिया देने से अच्छा है कि कुछ देर मौन रह कर रिश्तों को संभलने का मौका दिया जाये।

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