Breaking News

गुरुपूर्णिमा – 16 जुलाई, मंगलवार को :: समय – सोमवार की रात्री 01.06 बजे से मंगलवार की रात्री 01.52 पर्यन्त।

प्रख्यात ज्योतिषी डॉ. स्वामी दिव्यानंद जी महाराज में अनुसार –
गुरुपूर्णिमा – 16 जुलाई, मंगलवार,
समय – सोमवार की रात्री 01.06 बजे से मंगलवार की रात्री 01.52 पर्यन्त।
हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा का महत्व काफी अहम है. गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास के शुल्क पक्ष में आती है. इस दिन इंसान अपने-अपने गुरुओं की पूजा करते हैं. पुराणों के अनुसार भगवान ने भी गुरु को सबसे बढ़कर बताया है. ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस बार गुरु पूर्णिमा कब है. साथ ही गुरु पूर्णिमा की क्या कथा है और जीवन में गुरु का क्या महत्व है.
आषाढ़ मास के शुल्क पक्ष में पड़ने वाली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है. हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा की मान्यता सबसे अधिक है. गुरु पूर्णिमा को गुरु पर्व भी कहा जाता है. इस खास दिन पर लोग अपने-अपने गुरुओं की पूजा करते हैं. गुरु की शरण में ही शिष्य के जीवन से गलत मार्ग रूपी अंधकार से छुटाकारे पाते हैं. यह वजह है कि पुराणों के आधार पर ही आषाढ़ मास की पड़ने वाली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रुप में मनाया जाता है. इस बीच हम आपको बताएंगे की इस बार गुरु पूर्णिमा कब मनाई जाएगी, गुरु पूर्णिमा कथा और जीवन में गुरु पूर्णिमा का क्या महत्व है.
महान संत कबीरदास जी का दोहा “गुरु गोविंद दोहु दोनों खड़े, काहे लागूं पाँय, बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दिया बताएं” इस छोटे से दोहे में गुरु के महत्व का असली कारण छिपा है. दोहे का अर्थ संक्षेप में यह कि भगवान ने भी गुरु को मनुष्य के लिए सबसे अहम बताया है. दअसल जीवन में तरक्की के मार्ग का रास्ता हमें हमारे गुरु ही दिखाते हैं. फिर चाहें वो गुरु आपके माता-पिता, टीचर या को कोई बड़ा संबंधी क्यों न हो. सही और गलत में फर्क हमें एक अच्छा गुरु ही बताता है. इसके अलावा जीवन में बिना गुरु की न तो ज्ञान की प्राप्ती हो सकती है और न ही मोक्ष की. इसलिए संत कबीरदास जी का एक और दोहा इस बार याद आता है कि “गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष, गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटें न दोष”

पौराणिक कथा-
दरअसल पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन महाभारत के रचियता कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास का जन्म हुआ था. इस गौर किया जाए गुरु पूर्णिमा की कथा के ऊपर तो वह इस प्रकार है कि महामुनि की पत्नी और परमसती अनुसुइया के सतीत्व का आजमाने के लिए भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने सन्यासी का वेष लेकर नग्न होकर भिक्षा देने के लिए कहा. ऐसे में मां अनुसुइया ने पतिव्रता धर्म को निभाते हुए तीनों देवों को बालकर बनाकर दूध पिलाया.
तीनों देवों ने सती बाद में अनुसुइया के गर्भ से जन्म लिया, जिसमें भगवान शिव ने दुर्वासा, भगवना विष्णु ने दत्तात्रैय और भगवान ब्रह्मा ने चंद्र के रूप में जन्म लिया. कुछ समय बाद दुर्वासा और चंद्र ने अपना अंश का त्याग दत्तात्रैय के साथ कर दिया. भगवना दत्तात्रेय परमयोगी, 84 सिद्धों के आदि गुरु हैं. महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में गुरु पूर्णिमा की सबसे अधिक मान्यता है.

Leave a Reply