आलेख़

संवाद शक्ति और भाषा से बदलाव

वास्तव में देखा गया है कि गॉसिप हमारी “राष्ट्रीय बीमारी” है जो हमारी सम्पन्नता और संस्कार में सेंध लगा कर समृद्धिशाली बनने में रुकावट पैदा करता है। अक्सर हम देखते हैं कि बातचीत के दौरान हम लोगों की शिकायतें तथा पीठ पीछे निंदा भी करते हैं। हमारी इस प्रकार की आदतों से आत्मविश्वास की कमी होती है और संवादहीनता पैदा होती है। इस संवादहीनता के कारण हम लोगों से अच्छे संबंध स्थापित करने में विफल होते हैं। इतना ही नहीं निंदा करने की ये आदतें हमारे रिश्तों को बर्बाद करने के अलावा टीम में हमारे प्रति लोगों का विश्वास भी कम करता है जो हमारी तरक्की में बाधक बनता है। ऐसे बातचीत का क्या फायदा जिससे हमारा खुद का भी भला ना हो, तो हम समाज और देश का भला कैसे कर पायेंगे? इसलिए हमें किसी से कोई बातचीत करनी हो, तो सीधे सम्बंधित व्यक्ति से ही करनी चाहिए। जिन्हें समझाया जा सके, ना कि उन्हें कष्ट पहुँचाया जा सकें। क्योंकि जो भाषाशैली हम दूसरों के मुंख से अपने लिए सुनना पसंद करते हैं, तो इसकी शुरुआत हम स्वयं से करके इसकी गुणवत्ता को और भी ज्यादा बढ़ा सकते हैं। दूसरों में बदलाव लाने के लिए हमें इस पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है। ऐसे कई सफल व्यक्ति हैं जिनके बात करने के तरीके और सभ्य भाषाशैली ही उनकी विशेष पहचान बन गई है। हमें भी अपने जीवन में सफल होने के लिए कुछ बातों को ध्यान देने की जरूरत है जिससे कि हम खुद के साथ-साथ दूसरों के लिए भी एक अच्छे मार्गदर्शक बन सकते हैं।

1, प्रमाणिकता।
आमतौर पर हम भारतीय अधिकांश झूठ बोलने में विश्वास रखते हैं। किसी के व्यवहार में बदलाव लाने के लिए सबसे पहले हमें स्वयं के प्रति ईमानदार बनना होगा। सत्य और सही तरीके से की गई बातें बहुत महत्व रखती हैं। शुरुआत भले छोटी ही सही लेकिन दमदार होनी चाहिए। हमें अपने शब्दों का सम्मान करना होगा। सत्य बोले, प्रिय बोलें,अप्रिय सत्य बोलने में हमें सावधानी बरतनी चाहिए।

2, जिम्मेदारी।
किसी भी कार्य की जिम्मेदारी हमें अपने ऊपर ही 100 प्रतिशत लेनी चाहिए। जब हम किसी भी कार्य को करने में पूरी तरह से सक्षम होते भी हैं, तो कई बार उस कार्य को पूरा करने में अपनी जिम्मेदारियों से पीछे भी हटते हैं।
इसके अनुकूल जब हम किसी कार्य को करने की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हैं, तो उस कार्य को करने की दिशा में हमारे कदम खुद-ब-खुद आगे बढ़ते जाते हैं और जिसका परिणाम यह होता है कि हमारे कार्य करने की दिशा में काफी गति भी आती है तथा कई अन्य लोगों का सहयोग भी हमें मिलता है।

3, उदारता।
ये वो मानवीय गुण है जो प्रत्येक मनुष्य में पाया जाता है। लेकिन हम इसका उपयोग कभी-कभी सही तरीके से नहीं कर पाते हैं। देने के बदले अधिक लेने की हमारी नियति कई बार ज्यादा बढ़ जाती है। आमतौर पर उदारता का अर्थ हम अधिकांश पैसों के लेन-देन को ही समझते हैं। जब हम किसी के प्रति सेवा की भावना रखते हैं, तो आर्थिक रूप से सहायता के साथ-साथ मानसिक और शारीरिक रूप से की गई सेवा भावना को जोड़ कर देखेंगे, तो पायेंगे कि हमारे द्वारा बोले गये सांत्वना के दो बोल भी किसी के आत्मविश्वास को कितना आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारे द्वारा किसी को मदद के रूप में बढ़ाये गये हाथ भी किसी औषधि से कम नहीं होते हैं।

 

 

गुड़िया झा

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