आलेख़

धीरुभाई अम्बाणी और आत्मनिर्भर भारत : परिमल नथवाणी

जुलाई | 05, 2020 :: आजकल आत्मनिर्भरता शब्द कुछ ज्यादा ही प्रचलन में है । कोरोना के कारण गडबड़ाई अर्थव्यवस्था से उबरने के लिए प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदीने सब भारतीयों को आत्मनिर्भर भारत के लिए आह्वान दिया । स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी महात्मा गांधी ने स्वावलम्बन या आत्मनिर्भरता का मंत्र दिया था । हालांकि मोदी जी व महात्मा जी दोनों ने अलग अलग संदर्भ में आत्मनिर्भरता की बात कहीं है, यहां धीरुभाई अम्बाणी की बात करनी है जिन्होंने आत्मनिर्भरता को प्रतिपादित कर दिखाया और आज उनके वंशज, विशेषकर श्री मूकेश अम्बाणी और उनके बच्चे इसे आगे बढ़ा रहे हैं ।

आत्मनिर्भरता पर नुक्ताचीनी करनेवाले चाहे जो मानते हो उसे दरकिनार करके देखें तो महात्माजी और मोदीजी दोनों की आत्मनिर्भरता का तात्पर्य है दूसरों पर अवलम्बन कम करना । भारत व भारतीयता पर अधिक आधार रखना और भारत की अंतर्निहित शक्ति, क्षमता और सामर्थ्य पर आधारित रहना । क्यों कि आखिरकार मक्सद तो भारत को ज्यादा शक्तिशाली, सक्षम और सामर्थ्यवान बनाने का हैः सांस्कृतिक रूप से, सामाजिक रूप से और आर्थिक रूप से !

धीरुभाईअम्बाणी को मैंने काफ़ी नज़दीक से देखा व जाना है । इसलिए मैं निःसंकोच कह सकता हूं कि धीरुभाई अपने व्यावसायिक साहसों में न सिर्फ़ आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देते थे बल्कि उस पर अमल भी करते थे। भारतीय औद्योगिक एवं कार्पोरेटपरिद्रश्य पर धीरुभाईअम्बाणी जिस नाट्यात्मक ढंग से उभरे इसीसे यह बात प्रमाणित हो जाती है कि वे भारतीय सामर्थ्य, क्षमता और स्पर्धात्मकता को उजागर करने के लिए द्रढ़निश्चय ही नहीं; कृतसंकल्प भी थे । अपनी कम्पनी का नामाभिधान ‘रिलायन्स’ (अवलम्बन/आधार) कर के ही आपने डंके की चोट पर यह एलान कर दिया था कि वे आत्मनिर्भर (SelfReliant) हैं और दूसरे लोग भी उन पर तथा उनकी कम्पनी पर भरोसा रख सकते हैं, और आत्मनिर्भर रह सकते हैं ।

साठ व सत्तर के दशक में मुझे याद है देश में सुटिंग शर्टिंग के आयातित कपड़े के शौक़ीनों में 80-20 (एइटी-ट्वेन्टी) शब्द बहुत फेमस था । लोग 80 प्रतिशत पॉलिएस्टर और 20 प्रतिशत कोटन मिश्रित कपड़े के पीछे पागल थे । धीरुभाई अम्बाणी ने; जिन्हें बाज़ार की नब्ज़ परखने का अद्भुत कौशल प्राप्त था; अहमदाबाद में विश्व स्तर की कपड़ा मिल स्थापित की । वह भी उस वक्त जब कि परम्परागत मिलमालिक कपड़ा व्यवसाय छोड़कर अपनी सम्पत्ति को नकद करने में लगे थे । धीरुभाई अम्बाणी पोलिएस्टर और टेक्सटाइल के क्षेत्र में दुनिया का बहुत बड़ा नाम हो गया । इसके बाद तो उन्हेंने पोलिएस्टर के साथ साथ अन्य अनगिनत पेट्रोरसायन उत्पादनों संयंत्रों की पूरी शृंखला स्थापित कर दी और इस क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाया । आपने जामनगर में दुनिया की सबसे बड़ी क्रूड ऑयल रिफाइनरी खड़ी की और दुनिया में पेट्रोलियम एवं पेट्रोरसायन उत्पादनों की आपूर्ति-श्रृंखला के मुख्य कर्ता-धर्ता बन गये ।

प्रधान मंत्री भी जब आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं तब उनका तात्पर्य वही हैः भारतीय इनोवेशन (नावीन्यसभरता) को प्रोत्साहन ! भारतीयों और भारतीयता को सामर्थ्यवान बनाना ! स्थानिकों (लोकल) की आवाज बुलंद (वोकल) करके उन्हें वैश्विक (ग्लोबल) बनाना । यही आत्मनिर्भरता है ।

आवश्यक उपभोक्ता पदार्थों और कृषि उत्पन्न विपणन समिति जैसे सालों पुराने कानूनों के नागपाश से कृषि क्षेत्र को मुक्त कर के भारत सरकार ने इसका प्रारम्भ कर दिया है । अब किसान अपनी फ़सल अपने तरीके से बेचने के लिए स्वतंत्र है । उसी प्रकार, अधिकारी-तंत्र की व्यवस्था के उलट-फेर से भारतीय उद्यमियों को मुक्त करना, स्थानिक व वैश्विक निवेश को बढ़ावा देना आदि भी आत्मनिर्भर भारत की तरफ़ जाने की एक बड़ी कूद साबित हो सकती है ।

अपने वैश्विक द्रष्टिकोण के बावजूद धीरुभाई अम्बाणी के पैर ज़मीन से जुड़े रहते और आंखें आर्थिक विकास पर गड़ी रहतीं । वे एक विशिष्ट किस्म के देशी (लोकल) व्यक्ति थे, जो देश की अर्थ-व्यवस्था को मजबूती प्रदान करनेवाली बातों के लिए बड़बोले (वोकल) थे और देश में ही विश्व-स्तर की उत्पादन क्षमताओं और उत्पादनों को मूर्तिमंत करनेवाले वैश्विक (ग्लोबल) महामानव थे । आपको देश के युवाधन पर अत्यंत भरोसा था और उस मामले में वे कभी विफल नहीं रहे । उन्हें काफी प्रतिकूलताओं का सामना करना पडा लेकिन वे उन प्रतिकूलताओं से भी मौका निकालने की ताक में रहते । उनकी इस किस्म की आत्मनिर्भरता की आज अत्यंत आवश्यकता है ।

जैसा कि महात्मा गांधी कहते थेः आत्मनिर्भरता से तात्पर्य संकुचितता नहीं है । किसी भी हाल में हम हमें जरूरी तमाम चीज़ों का उत्पादन नहीं कर सकते । इसलिए आत्मनिर्भरता हमारा लक्ष्य होने के बावजूद हम जिस चीज़ का उत्पादन नहीं कर सकते उसे हमें बाहर से लेना ही पड़ेगा।’ इसका मतलब यह हुआ कि हम जो चीज़ उत्पादित कर सकें वह तो हम करें ही।हम जो भी करें, श्रेष्ठ करें।यही आत्मनिर्भरता है ।

धीरूभाई अम्बाणी की पुण्यतिथि पर जब उनके जीवन पर हम नजर दौड़ाते हैं तो ऐसा लगता है कि वे एक ऐसे मार्गदर्शक थे जिन्होंने हमें आत्मनिर्भर भारत की तरफ़ आगे बढ़ने का मार्ग दिखायाः अपने ओजपूर्ण विचारों और कार्यों से !

(श्री परिमल नथवाणी रिलायन्स इंण्डस्ट्रीज़ लिमिटेड के वरिष्ठग्रूप प्रेसिडेन्ट और राज्य सभा सांसद हैं।)

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