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इस दशहरा अपने भीतर की बुराई को समाप्त करें  : गुड़िया झा

इस दशहरा अपने भीतर की बुराई को समाप्त करें  : गुड़िया झा

दुर्गा पूजा के अवसर पर हमारे देश में रावण दहन की परंपरा है। देश के प्रत्येक भाग में अलग-अलग तरीकों से इस परंपरा का वहन किया जाता है।
आज जबकि विभिन्न क्षेत्रों यथा तकनीकी, श्रृंगार, पुरानी परंपरा आदि कई चीजों में समय के साथ बदलाव आया है। दुर्गा पूजा के अवसर पर हमें भी कुछ बदलाव के बारे में सोचना चाहिए ताकि हम देश का कुछ भला कर सकें।

1. एकता का भाव: इस दुनिया में अकेले कुछ भी संभव नहीं है । अंधेरे में एक छोटा सा मिट्टी का दीपक भी जब एक कमरे को रौशन करता है तो हम कहते हैं कि एक छोटे से दीपक ने इतनी रौशनी की। लेकिन वह दीपक अकेले रौशनी नहीं करता बल्कि उसके साथ में घी और बाती भी होते हैं जो मिलकर कमरे को रौशन करते हैं।
जरा सोचें कि जब एक दीपक इतनी रौशनी दे सकता है तो हम और आप मिलकर समाज और देश के लिए क्या नहीं कर सकते। इसकी शुरुआत भी हमें सबसे पहले खुद से करनी होती है। यह बहुत मुश्किल भी नहीं है। प्रतिदिन थोड़ा सा और अभ्यास करने से इसे एक नई दिशा दी जा सकती है।
2. ईर्ष्या का त्याग : आमतौर पर हम अपने आसपास देखते हैं कि इंसान अपने दुखों से उतना दुखी नहीं होता जितना दूसरों की खुशियों से होता है। यह एक ऐसी चीज है जो हमारे भीतर की अच्छाई को धीरे धीरे सीमित कर देती है। नतीजा यह होता है कि हम कुंठा के शिकार हो जाते हैं। हम मानसिक परेशानियों से घिर जाते हैं। जबकि इसके अनुकूल हम सफल व्यक्ति की सफलता के पीछे उसके संघर्ष को देखें तो मन मे साहस का संचार होता है।
बिना संघर्ष कोई भी सफलता के शिखर पर नहीं पहुंच सकता है। जिस प्रकार से घर के छत पर पहुंचने के लिए एक-एक सीढ़ियों पर चढ़ाई करनी पड़ती है, सफलता भी हमारे जीवन में उसी प्रकार से आती है। जब हम सामने वाले व्यक्ति से संघर्ष की प्रेरणा लेकर आगे बढ़ेंगे तो बाधाएं चाहे कितनी भी बड़ी हो हमारे रास्ते को रोक नहीं सकती हैं।
3. कर्म की प्रधानता: यह वह ऐसी चीज है जिसका परिणाम आज नहीं तो कल किसी न किसी रूप में अवश्य ही प्राप्त होता है। हमारे कर्मों का एक बहुत बड़ा खाता ईश्वर के पास होता है। सही दिशा में किए गए कर्म हमें कभी भी विचलित नहीं करते। साथ-साथ दूसरे की भलाई के लिए किए गए कार्यों के परिणाम हमेशा ही अच्छे और सुखदाई होते।

4 आलस्य छोड़ें: आलस्य मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। आज का काम कल करने की हमारी आदत हमें आगे बढ़ने से रोकती है। काम में अड़चन पैदा करती है। कई बार परिस्थितियों के कारण हम इसे अपनाते हैं तो कई बार यह हमारी आदतों में शामिल हो जाता है । इसे धीरे-धीरे त्याग कर हम अपने भीतर एक अद्भुत स्फूर्ति का अनुभव करते हैं । जिसके कारण हम अपनी योजनाओं को एक सही रूप देकर सही समय पर देश के विकास में निरंतर आगे बढ़ सकते हैं।

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