आलेख़

ईमानदारी की एक झलक स्वयं के लिए भी

ईमानदारी की एक झलक स्वयं के लिए भी : गुड़िया झा

अक्सर हमें कहने या सुनने में आता है कि ईमानदारी जीवन की एक बेहतरीन पॉलिसी है। किसी के भी बारे में ईमानदारी के प्रति अपनी प्रतिक्रिया देने से पहले हमने कभी सोचा है कि जो प्रतिक्रिया हम दूसरों के लिए उपयोग करते हैं, क्या हम खुद अपने लिए ईमानदारी के प्रति वचनबद्ध हैं?
प्रतिक्रियाएं देना बहुत ही आसान है लेकन जब खुद की बारी आती है तो हम मूकदर्शक बने रहते हैं।
“सच्चाई और अच्छाई की तलाश में पूरी दुनिया घूम लो अगर वह खुद में नहीं तो कहीं भी नहीं। ” ईमानदारी को जब हम जगायेंगे और उसके प्रति मन, कर्म और वचन से जागरूक रहेंगे, तभी हम दूसरों में भी ईमानदारी की ज्योति भी जगा पायेंगे। कुछ भी नया करने से पहले हमें अपने भीतर झांकना होगा। कुछ भी बहुत मुश्किल नहीं है। बस सचेत रहना इस मार्ग पर आगे बढ़ने की पहली सीढ़ी है।
1, बात और व्यवहार के प्रति इमानदारी।
जब हम किसी से बातें करते हैं, तो उसमें भी हमें अपनी बातों के प्रति ईमानदार रहने की जरूरत है कि उसमें 100%सच्चाई है या नही? आमतौर पर किसी सच को छुपाने के लिए हम एक झूठ बोलते हैं, लेकन फिर धीरे-धीरे यही एक झूठ आगे चलकर दस झूठ की जगह ले लेता है। ऐसे झूठ से ना तो हमारा भला हो सकता है और ना दूसरों का। सच बोलने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके लिए हमें कभी कुछ सोचना नहीं पड़ता है। ना ही तो किसी की इजाजत लेनी पड़ती है और ना ही हम किसी के गुलाम होते हैं। ईमानदारी हमारी अपनी अंतरात्मा की आवाज है और अंतरात्मा कभी झूठी गवाही की इजाजत नहीं देता है।
कई बार हम दूसरों के प्रति व्यवहार में भी बहुत ईमानदार नहीं होते हैं। हम होते कुछ और हैं लेकिन दिखावा कुछ और ही करते हैं। थोड़े से दिखावे के लिए हम अपनी ईमानदारी को हर बार और बार-बार दांव पर लगाते हैं। पूरी सत्यता और निष्ठा से जब हम दूसरों के सामने पेश आते हैं, तो यकीनन दूसरों के दिलों में भी अपनी एक अमिट छाप छोड़ते हैं। ईमानदारी का कोई मोलभाव नहीं होता है। हमारी यही आदतें आने वाली पीढ़ी को एक नये भारत के निर्माण के लिए जागरूक करेंगी। अभी हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं। उनके नेतृत्व में कई बड़े अधिकारियों ने ईमानदारी की जुनून के बल पर अपने देश में जो महत्त्वपूर्ण बदलाव किए हैं और भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
2, तुलना से बचें।
जब हम दूसरों से अपनी तुलना करते हैं तो रास्ते भटकने की राह पर होते हैं। दूसरों की आवश्यकताओं और अपनी आवश्यकताओं में जमीन और आसमान का फर्क होता है। मेहनत और ईमानदारी से कमाई गई दो समय की रोटी से जो सुकून की नींद आती है उसकी तुलना बेईमानी के रास्तों पर चलकर नहीं की जा सकती है। अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं में जब हम अंतर को महसूस करेंगे, तो हमें सुकून का अनुभव होगा। जब भी मन में ग्लानि हो तो अपने से कमजोर को देखेंगे, तो हम पायेंगे कि हम बहुत ही खुशनसीब हैं जो ईश्वर ने हमें इतना सबकुछ दिया है। हम अपनी जिंदगी को जैसा चाहें वैसा आकार दे सकते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि एक रास्ता जो ईमानदारी का कठिन है लेकिन लंबे समय के लिए सुकून देता है और दूसरा वह है जो कम समय और झूठ की बुनियाद पर चलकर क्षणिक सुख की अनुभूति कराता है, उन दोनो में से किसी एक को चुनना हमारी अपनी सोच पर निर्भर करता है।

Leave a Reply