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शारीरिक सफाई के साथ साथ विचारों की सफाई भी जरूरी

 

शारीरिक सफाई के साथ साथ विचारों की सफाई भी जरूरी : गुड़िया झा

अपनी दिनचर्या में अक्सर हम अपने घर, आसपास, कपड़े, शरीर आदि की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देते हैं जिससे की हमारे जीवन में स्वच्छता बनी रहे और हम प्रतिदिन तरोताजा महसूस करें।
लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि अपने दैनिक जीवन में इन सब सफाई के अलावा एक बहुत जरूरी चीज भी है और वो है अपने विचारों की सफाई। अपने दूषित विचारों की सफाई हमें भीतरी स्वच्छता प्रदान करती है जिससे कि हमारा शरीर सम्पूर्ण रूप से ऊर्जावान महसूस करता है। हां इसके लिए हमें थोड़ी सी इसकी कीमत भी अदा करनी पड़ती है जो कि बहुत मुश्किल भी नहीं है।
1, शिकायतों से बचें।
शिकायत के बारे में कहा जाता है कि ये वो जहर है जिसे पीते हम हैं और सोचते हैं कि दूसरों पर इसका असर हो। लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है। इससे सिर्फ हमारा ही नुकसान होता है। लोगों से हमारे रिश्ते कमजोर होते हैं। मानसिक, शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। हमारा सामाजिक दायरा भी सिमट कर छोटा होता जाता है।
जब हम अपनी शिकायत करने की प्रवृत्ति से बचेंगे, तो मस्तिष्क में सकारात्मक विचारों को जगह भी दे पायेंगे। इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि सभी शिकायतों को एक कागज पर लिख लिया जाये।
जब भी किसी व्यक्ति से बात करनी हो तो उनके प्रति जो भी हमारे मन में शिकायतें हैं तो सबसे पहले उन शिकायतों को हमें छोड़नी होगी। तभी हमारे रिश्ते नये तरीके से आगे बढ़ पायेंगे।

2, आभार प्रकट करने की कला
जितने भी लोग हमसे जुड़े हैं उन सभी का किसी न किसी रूप में हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। ऐसे लोगों के प्रति आभार अवश्य ही प्रकट करें। आभार प्रकट करना भी एक कला है। हम अकेले कुछ भी नहीं कर सकते हैं। सभी के आपसी सहयोग से ही हमारे जीवन की प्रक्रिया चलती है। इसलिए समय-समय पर ऐसे लोगों के प्रति अपना आभार प्रकट कर हम लोगों का प्रोत्साहन बढ़ा सकते हैं साथ ही खुद भी ऐसे लोगों से प्रेरणा लेकर हम दूसरों के लिए भी सहायक हो सकते हैं।
3, अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एकाग्रता, संकल्प शक्ति और आकर्षक व्यक्तित्व का उपयोग।
एकाग्रता- आज सीमित समय एवं संसाधनों की दुनिया में लोग अपनी असीमित इच्छाओं और आकांक्षाओं के साथ लगातार अंधी दौड़ में शामिल हैं। इससे तनाव, प्रतिस्पर्धा और बीमारियां पैदा हो रही हैं। साथ ही, इससे हम अपनी ऊर्जा को तितर बितर कर देते हैं और ध्यान केंद्रित नहीं करते हैं, इससे हमारे लक्ष्य को पूरा करना कठिन हो जाता है। प्रश्न यह भी उठता है, हम किस लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं?
क्या हमें पैसे कमाने के बारे में चिंता करना काफी है?
या हमें अपने एवं समाज के लिए ऐसी वस्तु और सेवा को पैदा करने को प्राथमिकता देनी चाहिए जिसे देश या समाज को जरूरत है। अगर हम उन “वस्तुओं और सेवाओं” को बनाने पर ध्यान दें और उन्हें समाज के लिए समाज सेवा के रूप में प्रस्तुत करें तो इससे हमें अच्छे परिणाम जरूर मिलेंगे। महाभारत के अर्जुन का उदाहरण यहां सबसे अधिक प्रासंगिक है। उन्हें पक्षी की आंखों की पुतली दिखी, जबकि दूसरे धनुर्धारी को जंगल, पेड़ उसकी शाखायें, पत्तियां आदि दिख रही थीं और इसलिए अर्जुन अपने समय के विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन सके।
संकल्प शक्ति- अगर हम अपनी इच्छा शक्ति को जानते हैं और उसे परमात्मा के साथ जोड़ते हैं, तो हमारे रास्ते में आने वाली चुनौतियों और आने वाली कठिनायों के बावजूद हमारी इच्छा शक्ति मजबूत और ऊर्जावान बनी रहती है। हम महात्मा गांधी का उदाहरण ले सकते हैं। वास्तव में उन्होंने अपने आपको परमात्मा से जोड़ कर अपने संकल्प को मूर्त रूप दिया। उन्होंने “सत्य” और “अहिंसा” के साथ कभी समझौता नहीं किया। लोगों को शक था कि क्या इन रास्तों पर चलकर उन ब्रिटिश से लड़ने में मदद मिलेगी। जो उस समय के सबसे घातक हथियारों से लैस थे?
लेकिन अंत में अंग्रेजों ने गांधी जी के संकल्प के सामने आत्मसमर्पण किया और भारत को आजादी मिली।
आकर्षक व्यक्तिव- यदि हमारी सोच या संदर्भ यह है कि हमारे पास एक आकर्षक व्यक्तित्व होगा , तो हमें वह मिलेगा और उस संदर्भ के निर्माण में निम्नलिखित चीजें भी मदद करेंगी।
सोच- अगर हमारा विचार और संदर्भ दूसरों की सेवा करना है, दूसरों को सहयोग देना है और दूसरों के उपयोग आना है और जैसा कि हम जानते हैं कि “संदर्भ निर्णायक है।” इसका अर्थ है कि हमारे संदर्भ (हमारी सोच, भावना और आशय) जैसा है वैसा ही हमें परिणाम के रूप में मिलना शुरू हो जाता है। इसलिए अगर इरादा दूसरों की सेवा करना है, तो लोग हमारे विचारों के प्रति आकर्षित होने लगते हैं और लोगों की सेवा शुरू हो जाती है।
आहार- कच्चे, कम तेल, कम मसालेदार भोजन, फलों और शाकाहारी भोजन की आदतों से हमें अपने आकर्षक शक्ति में सुधार लाने में सहायता मिलती है।
सत्संग- हमारा कीमती समय हमारे आदर्श व्यक्तियों के साथ गुजारने से हम में उसी तरह की गुणवत्ता आती है और इसलिए जो व्यक्ति सक्षम अधिकारी या समर्थ व्यक्ति के संपर्क में रहते हैं वे उसका पूरा लाभ उठाते हैं और अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने में सफल होते हैं।
वर्तमान में जीना- जब हम वर्तमान में प्रयत्नशील रहते हुए भी किसी स्थान पर पहुंचने की जल्दबाजी में नहीं हैं, जहां हम अपने पूरे वर्तमान को अपना 100% देते हैं। तब हमारा व्यक्तित्व आकर्षक होता है। ऐसे लोगों को पता है कि आध्यात्मिक एवं तमाम शक्ति उनके अंदर है और उनमें 100% महान बनने की क्षमता है, क्योंकि वे जन्मजात विजेता हैं। तो दूसरों को दोष क्यों देना या बाहरी दिखावा क्यों करना और अपने लक्ष्य प्राप्ति या उद्देश्य पर आज और अभी ही ध्यान केंद्रित क्यों नहीं करना?

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