आलेख़

मातृ देवो भव : गुड़िया झा

मातृ देवो भव : गुड़िया झा

वो चीज कौन सी है जो यहां नहीं मिलती,
सबकुछ मिल जाता है लेकिन” मां” नहीं मिलती,
मां-बाप ऐसे होते हैं दोस्तों जो जिंदगी में फिर नहीं मिलते,
खुश रखा करो उनको फिर देखो जन्नत कहां नहीं मिलती।
वैसे तो मां किसी विशेष परिचय की मोहताज नहीं होती है। जीवन का हर दिन मां से शुरू होकर मां पर ही समाप्त होता है। फिर भी मां को विशेष सम्मान देने के उद्देश्य से पूरी दुनिया में हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को मातृदिवस मनाया जाता है
“किसी ने क्या खूब कहा है कि घर की ऊंचाइयों और चकाचौंध पर मत जाना, अगर घर के बुजुर्ग मुस्कुराते मिलें तो समझना कि आशियाना अमीरों का है।”
मां की महिमा को इसी से समझा जा सकता है कि नहीं रहने के बावजूद भी हमारी भारतीय संस्कृति में मातृनवमी की विशेष परम्परा है। जिसे लगभग हर वर्ग के लोग अपनी श्रद्धा और भक्ति से मां की याद में मनाते हैं और इतना ही नहीं घरों में मांगलिक कार्यों में भी किसी भी अनुष्ठान से पहले पूर्वजों की पूजा अर्चना और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर ही कोई भी शुभ कार्य शुरू किया जाता है।
आधुनिक युग में बदलते परिवेश के कारण रोजगार की तलाश में बच्चे दूसरे शहरों या विदेशों में अपना जीवन यापन करते हैं। समय के अभाव के कारण बच्चों का अपने माता-पिता से मिलना भी एक त्योहार की तरह ही होता है। लेकिन तकनीक के माध्यम से आज हम कहीं भी बैठे अपने परिजनों से आसानी से सम्पर्क में रहते हैं। हमारा यह स्नेह अपने माता-पिता के प्रति यूं ही बना रहे और उन्हें भी अपने अकेलेपन का एहसास ना हो इसके लिए कुछ छोटी लेकिन बेहद जरूरी बातों को हम अपने जीवन में लागू कर उनके प्रति इस सम्मान की भावना को बनाये रख सकते हैं।
1 महत्त्व।
यह एक शाश्वत सत्य है कि जिस घर में माता-पिता का आदर और सम्मान किया जाता है वहां देवताओं का निवास होता है। हम कितने ही आगे क्यों ना निकल जायें लेकिन हमें कभी यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी इस सफलता के पीछे हमारे माता-पिता की एक-एक दिन की मेहनत और ना जाने कितनी कुर्बानियां छिपी हुई हैं। मां की ममता की गहराई की दुनिया के किसी भी बेशकीमती चीजों से तुलना नहीं की जा सकती है। मां के शिक्षित होने की कोई विशेष प्रमाणिकता भी नहीं है। क्योंकि कम पढ़ी-लिखी होने के बावजूद भी वो अपनी जिंदगी हार कर हमें सोने की तरह निखारती है जो कि एक समाज और राष्ट्र के लिए वरदान साबित होता है। भगवान हर जगह नहीं होते है। इसलिए उन्होंने हमारे जन्म से लेकर अंतिम सांसें चलने तक देखभाल करने के लिए अपने दूसरे रूप में माता-पिता को बनाया। त्याग, ममता और समर्पण की ऐसी देवी जिनका कर्ज हम चाह कर भी नहीं चुका सकते हैं। हां, लेकिन उनके प्रति उचित सम्मान रख कर हम उनके इस बलिदान को अवश्य जीवित रख सकते हैं।
2, खुलकर बातें करें।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि हर दिन बहुत सारे कार्यों की एक बहुत बड़ी लिस्ट होती है हमारे पास। हम जिस प्रकार से सभी कार्यों को अपने जीवन में प्राथमिकता देते हैं और उसके लिए अपना समय भी निकालते हैं। ठीक उसी प्रकार से सभी कार्यों में से थोड़ा-थोड़ा समय बचाकर अपने माता-पिता के लिए निकालें, वो समय चाहें तो हम साथ रह रहे माता-पिता को दें या दूर रहें फोन के माध्यम से दें, तो निश्चय ही वे अपने आप जो उपेक्षित महसूस नहीं करेंगे। साथ ही हम उनकी बातों को गहराई से समझेंगे भी और उनके अपने अनुभवों के आधार पर हमें एक अच्छा मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा। घर में माता-पिता का होना उस विशाल पीपल और बरगद के पेड़ की तरह है जो खुद कष्ट में होते हुए भी अपने बच्चों को शीतल छाया प्रदान करते हैं।
जब कभी उनकी बातें उचित ना लगे तब भी आक्रोश ना दिखाकर शांत रहें और उन्हें अपनी पूरी बात कहने का अवसर दें। जरा सोचें कि जब हम छोटे में ठीक से बोल नहीं पाते थे तो मां हमारी हर बात समझ लेती थी और उसे पूरा भी करती थी। सबकुछ बदला रहने के तौर-तरीके, परिस्थितियां। लेकिन अंधी दौड़ में हम कहां और क्यों अपनी सभ्यता और संस्कृति को पीछे छोड़ रहे हैं? “ओल्ड इज गोल्ड” वाली बात कहीं ना कहीं सटीक होती है। हम चाहें तो आगे भी इसे बनाये रख सकते हैं तो आने वाली नई पीढ़ी भी इसे आदर्श मानकर जरूर बनाये रख सकती है। क्योंकि हम जो देंगे वही हमें वापस कभी ना कभी मिलेगा।

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