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“वसुधैव कुटुम्बकम” : पूरा विश्व ही हमारा परिवार है :: गुड़िया झा

 

फिलहाल पूरी दुनिया जिस दौर से गुजर रही है, ऐसे में परिवार की अहमियत और भी बढ़ जाती है। अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस हमें परिवार का महत्त्व, नये संकल्प और उसके प्रति जागरूकता के बारे में बताने का एक अच्छा माध्यम है। संयुक्त राष्ट्र जनरल एसेंबली ने 9 दिसम्बर 1989 के प्रस्ताव में हर साल 15 मई को परिवार दिवस मनाये जाने की घोषणा की थी। संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य दुनिया भर में परिवारों के बेहतर जीवन स्तर और सामाजिक प्रगति के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना है। यह दिन आर्थिक और सामाजिक संरचनाओं को संशोधित करने पर केंद्रित है जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पारिवारिक इकाईयों की स्थिरता और संरचना को प्रभावित करते हैं। हर व्यक्ति के जीवन में उसके परिवार का काफी महत्त्व होता है जो हमारे सुख-दुख में हमेशा साथ खड़ा रहता है। हम चाहें कितनी भी तरक्की कर लें, लेकिन परिवार के बिना भी हम अधूरे ही हैं। पहले संयुक्त परिवार का अधिक चलन था। फिर धीरे-धीरे काम की तलाश में एकल परिवार का चलन जोरों पर आ गया। यह परिवार और भी ज्यादा मजबूत और स्थायी हो इसके लिए हमें भी थोड़ी सी सूझबूझ और धैर्य के साथ कुछ बातों को अपने जीवन में लागू करना होगा।
1, एकात्मता।
एकात्मता के बिना दुनिया का कोई भी काम संभव नहीं है। जब हमारे हाथों की उंगलियां भी एक साथ मिलती हैं तभी मुट्ठी भी बनती है। अभी बदलते परिवेश के साथ पूरी दुनिया छोटे-छोटे टुकड़ों में अलग है। इसको एकता के सूत्र में बांधना तभी संभव है जब एकात्मता की शुरूआत सबसे पहले हम अपने परिवार से करें। अब सवाल उठता है कि एकात्मता है क्या?
जैसे-हम खुद को और दूसरों को एक रूप में देखते हैं, हम और पर्यावरण एक जैसे हैं और यहां तक कि एक व्यक्ति के भीतर भी (हमारे शरीर, मन और आत्मा के बीच का तालमेल)। इसका मतलब जो भी हम कहते हैं, सोचते हैं या करते हैं, वह एक है।यह एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व बनाता है।
अगर हमारी शिक्षा प्रणाली इस तरह की एकात्मता को प्रोत्साहित करती है, तो भारतीय अधिक मजबूत और कामयाब होंगे। यदि इसे पूरी दुनिया में फैलाया जाए , तो यह पृथ्वी ग्रह पूरी तरह से कार्यात्मक संगठित विश्व बन सकता है किसी भी व्यक्ति के लिए यह एक सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य हो सकता है। एकात्मता कार्यशीलता भी प्रदान करती है। यह एक दमदार मंच प्रदान करती है जिस पर महान उपलब्धियों को ईमानदारी से प्रमाणित किया जा सकता है। इस मंच के बिना किसी भी स्तर की कड़ी मेहनत संतोषप्रद सफलता नहीं देती है। एकात्मता की ओर जाने के तीन मार्ग हैं।
1अपने शब्दों का सम्मान करना।
2 शक्तिदायी अर्थ देना।
3 अपने कार्य की योजना बनाना और अपनी योजना के अनुसार कार्य करना।
2, सत्य और प्रेम।
परिवार, समाज, देश और विदेश सभी के बीच संबंधों को मजबूत बनाने का यह एक महत्त्वपूर्ण आधार है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि जिम्मेदार होने से ताकत, यश और कृति आती है। यदि हम एक भारतीय के रूप में सच्चाई और ईमानदारी को महत्त्व देते हैं तो हम दुनिया में जहां भी जाएंगे वहां हर जगह हम भारतीयों को सम्मान मिलेगा। हमारा व्यापारिक लेन देन निर्विवाद होगा और हमारे समय का सदुपयोग होगा जो कि विवादों के कारण अनावश्यक नष्ट होता है । विश्व के राष्ट्रों के बीच भी यह सम्भव है। एक-दूसरे से नफरत करने के लिए कई कारण है, लेकिन क्या हम इन कारणों के बावजूद एक-दूसरे के लिए “बिना शर्त प्यार” का माहौल बना सकते हैं?
बिना शर्त प्यार भारत को विकासशील देशों से विकसित देशों में परिवर्तित करने का सर्वश्रेष्ठ साधन है। इससे विदेशों से भी हमारे संबंध अच्छे बनेंगे।
3, सेवा और दानशीलता का भाव।
परिवार को और भी अधिक मजबूत बनाने के लिए अपने भीतर हमें सेवा और दानशीलता के भाव को जगह देनी होगी। जीवन में हम पाते हैं कि जो लोग मूल्य का भुगतान करने को तैयार हैं वे हमेशा जीतते हैं। जो कीमत का भुगतान किये बिना सफलता चाहते हैं वे जीवन में कभी भी विकास नहीं करते हैं और उनकी सफलता कभी भी टिकाऊ नहीं रहती है। हमारा परिवार और भी मजबूत तभी होगा जब हम निःस्वार्थ भावना से लोगों की मदद करेंगे। चाहे वह मदद, मानसिक, आर्थिक या शारीरिक रूप से ही क्यों न हो।
4, कृतज्ञता की आदत।
“मैजिक” नामक एक पुस्तक है, जिसमें बार-बार और लगभग हर पेज पर यह कहा गया है कि यदि हम अपनी जिंदगी में लगातार चमत्कारी फल चाहते हैं, तो अपने एवं अपने करीबी लोगों के प्रति कृतज्ञता का भाव लायें और बतायें। यदि हम अपने जीवन में पैसा चाहते हैं, तो हम उन सभी लोगों को धन्यवाद देना शुरू कर दें जिन्होंने पैसे बनाने में हमारी सहायता की थी या कुछ ज्ञान दिया था। अगर हम स्वस्थ रहना चाहते हैं, तो हमें अपने रसोईये, खाद्य विक्रेता, दूध वाले, किसान और योग शिक्षक आदि का शुक्रिया करना होगा। यदि हम शांति पूर्वक रहना चाहते हैं तो हमें उन लोगों को धन्यवाद देना चाहिए जिन्होंने हमें ध्यान, योग सिखाया और उन सबको भी जिन लोगों ने हमें उकसाया और फिर भी हम उत्तेजित नहीं हुए।
यदि हम उन लोगों का आभार व्यक्त करेंगे तो उनसे हमारे संबंध बहुत ही अच्छे बन जायेंगे और हो सकता है कि वे लोग हमारे लिए और भी ऐसे कार्य करें जिससे हमारे संबंधों, हमारे जीवन को समृद्ध और सुखी बनाने में मदद मिले।

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