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ये कैसा उद्योग जो बेजुबान पेड़ों को काटकर बढ़ाया जाये : गुड़िया झा

ये कैसा उद्योग जो बेजुबान पेड़ों को काटकर बढ़ाया जाये?
गुड़िया झा।

झारखंड राज्य चारों ओर से हरे-भरे पौधों की खूबसूरती के लिए ही जाना जाता है।इससे लोगों को शुद्ध रूप से ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है।लेकिन यहां कुछ असामाजिक तत्वों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए इनकी अंधाधुंध कटाई कर अपना उद्योग विकसित करना चाहते हैं।इसके अलावा ये माफिया यहां की लकड़ी से फर्नीचर बनाकर लकड़ी की तस्करी भी कर रहे हैं।बेजुबान पेड़ों की कटाई कर वे इससे मोटी कमाई तो कर ही रहे हैं लेकिन पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं।ऐसा माना जा रहा है कि इतना बड़ा अवैध काम वन विभाग के अधिकारियों की सहमति के बिना संभव नहीं है।शहर के कई स्थानों पर इन कीमती लकड़ियों से बनाई गई अवैध फर्नीचर उद्योग बड़े पैमाने पर वर्षों से चलाये जा रहे हैं।यहां के विक्रेता बिना भय के बाहर से कारीगरों को बुलाकर फर्नीचर बना गलत कागजात के साथ उसकी तस्करी कर रहे हैं।पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से यहां के जंगलों का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है।यह गंभीरता से सोचने वाली बात है कि जब वन विभाग के पढ़ें- लिखे लोग इस गलत कामों के लिये आवाज नहीं उठाते या उन्हें इसके लिए रोकते भी नहीं हैं, तो फिर उन माफियाओं का इनमें क्या कसूर, जो उन जंगलों के महत्व को नहीं समझते और इसमें सबसे ज्यादा नुकसान उन पेड़ो का हो रहा है जो अपने लिए नहीं सिर्फ हमारे लिए खड़े हैं।एक ओर जहां पर्यावरण संरक्षण का संदेश पूरी दुनिया दे रही है, वहीं दूसरी ओर अपने ही राज्य में इस तरह की गतिविधियां कहीं न कहीं मानवता पर सवाल खड़ा करती हैं।पूरी दुनिया जानती है कि जब दो साल कोरोना महामारी ने पूरे विश्व में तांडव मचाया था और ऑक्सीजन की कमी होने पर लोगों को हरे-भरे पेड़ों को बचाने के लिए आंखें खुली थीं।हम बार-बार अपनी गलतियों को दोहराकर अपने आने वाले कल को ही खराब कर रहे हैं।पेड़ों की कटाई से बढ़ता प्रदूषण, गर्मी, बारिश का कम होना हमें सावधान कर रहे हैं आनें वाले कल के लिए।

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