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प्रेम और करूणा से मिलेगी कोरोना से मुक्ति – प्रसांता दास, यूनिसेफ प्रमुख, झारखंड

रांची, झारखण्ड | अप्रैल | 22, 2020 :: कोरोनावायरस महामारी के कारण एक ऐसा संकट उत्पन्न हुआ है, जिसका अनुभव इससे पहले हममें से किसी ने शायद नहीं किया था। सुनसान सड़कें, बंद बाज़्ाार, बंद स्कूल तथा घरांें में बंद जीवन अपने आपमें इसकी कहानी बयां करती हैं।
कोरोनावायरस के कारण उत्पन्न हुई आपात स्थितियों का भार सबसे अधिक गरीब एवं वंचित लोगों पर पड़ा है, जिसमें महिलाएं, बच्चे और दिव्यांगजन भी शामिल हैं।

हम सभी स्वच्छता, सोशल डिस्टेंसिंग तथा हैंडवाशिंग उपायों के बारे में अवगत हैं, जो संकट की इस घड़ी में हमें संक्रमण से बचाएगा। इन सावधानियों को हमें आने वाले हफ्तों में भी जारी रखना चाहिए। यह हमें तथा हमारे परिवार के साथ-साथ अन्य लोगों की भी कोरोना बीमारी से रक्षा करेगा।

संकट के समय आपस में प्रेम एवं करूणा के व्यवहार की अपेक्षा की जाती है।
कोरानावायरस के खिलाफ भारत की लड़ाई की कहानी, उन लोगों की कर्तव्यनिष्ठा और मानव सेवा की कहानी है, जिन्होंने अपने कर्तव्यों का पालन करने हेतु संक्रमित व्यक्तियों, आम लोगों, पड़ोसियों तथा दोस्तों की सेवा के लिए काफी दर्द सहा है एवं जोखिम उठाया है।
हालांकि, इसके अलावा, कोरोनावायरस संक्रमण के संदिग्ध रोगियों, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, डाॅक्टरों, नर्सों तथा धार्मिक एवं जातीय समूहों के खिलाफ भेदभाव की भी कहानियां हैं।
कोरोनावायरस का डर स्वाभाविक है, क्योंकि यह हमारे लिए नया है। हम इसे पूरी तरह से नहीं समझते हैं।
दुनिया के बेहतरीन मस्तिष्क इस बीमारी का उपचार ढ़ूंढने के लिए लगातार कार्य कर रहे हैं।
लेकिन जैसे-जैसे कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई चिन्हित हाॅटस्पाॅट की ओर बढ़ रही है, उन इलाकों के निवासियों के खिलाफ भेदभाव की संभावना बढ़ गई है।
यह कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई को प्रभावित कर सकता है। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि कोरोनावायरस एक ऐसी चुनौती है, जिसका धर्म, जाति, सामाजिक समूह या किसी विशेष स्थान से कोई लेना-देना नहीं है।
कोई भी जातीय, धार्मिक और सामाजिक समूह इसके प्रभाव से अछूता नहीं है।
यह वायरस हम सबके लिए खतरा है और हम सभी को इसके खिलाफ एकजूट होकर लड़ना चाहिए।
कोरोनावायरस पर सफलतापूर्वक काबू पाने के लिए यह आवश्यक है कि हम सहयोग और करूणा का वातावरण बनाएं, ताकि कोरोनावायरस के लक्षण दिखने पर लोग जांच करवाने से नहीं डरें तथा स्वास्थ्यकर्मियों को लक्षणों के परीक्षण तथा संपर्क में आए लोगों के बारे में पता लगाने में मदद कर सकें।

संकट की इस घड़ी में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए करूणापूर्ण तरीके से किया जाने वाला एक छोटा सा कार्य सभी दूरियों को मिटा देगा।
हमें उन लोगों के लिए आवाज़ उठाना चाहिए, जो भेदभाव से जूझ रहे हैं। हमें बुर्जुगों तक आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति एवं उनके लिए दवाओं की खरीद आदि में मदद करना चाहिए।
हमें यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि जब हम कोरोनावायरस से संबंधित सूचनाओं को साझा करें तो हमें इसकी प्रमाणिकता की पुष्टि जरूर करनी चाहिए।
स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान तथ्यों की जांच करना एक जीवन-रक्षक अभ्यास है।
यह भी महत्वपूर्ण है कि वर्तमान चुनौती का सामना करने के लिए हम अपने स्वयं के मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें।
लाॅकडाउन उन लोगों से जुड़ने का एक अच्छा समय है, जिनसे हमने लंबे समय से संपर्क नहीं किया है।
मैं यहां दोहराना चाहता हूं कि सतर्क और सावधान रहकर हम स्वास्थ्यकर्मियों को उनके कार्य बेहतर तरीके से करने में मदद कर सकते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि स्वास्थ्यकर्मी ही कोरोनावायरस बीमारी की पहचान और इसका उपचार कर सकते हैं।
इसिलिए लक्षण देखकर खुद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से परहेज करना चाहिए। यदि हमें खुद के और दूसरों के अंदर कोरोनावायरस का लक्षण दिखता है तो हमें तुरंत मदद लेनी चाहिए। यह भी याद रखना चाहिए कि कोरोनावायरस को किसी चमत्कारिक उपायों से ठीक नहीं किया जा सकता। हैंडवाशिंग और सोशल डिस्टेंसिंग सबसे बड़े सुरक्षात्मक उपाय हैं।

अंत में यही कहूंगा कि कोरोनावायरस भेदभाव नहीं करता है, लेकिन रोगियों एवं संदिग्धों के साथ भेदभाव इसके प्रसार की संभावना को और बढ़ाता है।
यह मुश्किल समय है, लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है कि हम एकजुट रहकर ही इससे बाहर आएंगे और आगे बढ़ेंगे!

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