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कोरोना वायरस से बचने के लिए सैनिटाइजर का कार्य करेगा योग और भाप :: योगाचार्य प्रहलाद भगत

रांची, झारखण्ड | अप्रैल  | 18, 2021 :: कोविड-19 या कोरोना वायरस से इस समय बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और हैंड वॉश बहुत जरूरी है।
इसके अलावा प्रिकॉशन के लिए आपको आयुर्वेदिक काड़ा, भाप और गरम पानी पीने के अलावा प्रतिदिन योग करना चाहिए जिससे आपकी इम्युनिटी बूस्ट होगी।
इस बार  कोरोना का द्वितीय चरण चल रहा है जिसमें देखा गया है  यह बहुत ही सक्रिय है और सीधे रक्त  और फेफड़ों पर अपना सक्रियता दिखा रहा है!
जिसे कारण युवा पीढ़ी को भी कोरोना के कारण  आक्सीजन की आवश्यकता पड़ रहा है, देखा गया है कि जिसमें इम्युनिटी पावर है वह इस बीमारी से बचा रहता है और यदि हो भी जाए बीमारी तो जल्द ही स्वस्थ हो जाता है।
इसमे  योग और  भाप को कोरोना वायरस को निष्क्रिय करने का कारगर उपचार माना  जा रहा है

जानतें है  कौन कौन से  योग हैं  कारगर

1. सूर्य नमस्कार : सूर्य नमस्कार इसलिए कि इसमें सभी आसनों का समावेश हैं और यह सभी रोगों में लाभदायक होता है। घर में ही आप अच्छे से योग करते रहेंगे तो आप स्वस्थ रहेंगे और आपका वजन भी नहीं बढ़ेंगा। योग में आप सूर्यनमस्कार की 12 स्टेप को 12 बार करें और दूसरा यह कि कम से कम 5 मिनट का अनुलोम विलोम प्रणायाम करें। उक्त संपूर्ण क्रिया को करने में मात्र 15 से 20 मिनट ही लगते हैं। आप नहीं जानते हैं कि यह आपके लिए कितनी फायदेमंद साबित होगी।

2. शौच : नकारात्मक भाव, भय और चिंता से प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।
शौच से नकारातमक भाव समाप्त हो जाते हैं।
मूलत: शौच का तात्पर्य है पाक और पवित्र हो जाओ, तो आधा संकट यूं ही कटा समझो।
शौच अर्थात शुचिता, शुद्धता, शुद्धि, विशुद्धता, पवित्रता और निर्मलता।
पवित्रता दो प्रकार की होती है- बाहरी और भीतरी।

बाहरी या शारीरिक शुद्धता भी दो प्रकार की होती है।
पहली में शरीर को बाहर से शुद्ध किया जाता है।
इसमें मिट्टी, उबटन, त्रिफला, नीम आदि लगाकर निर्मल जल से स्नान करने से त्वचा एवं अंगों की शुद्धि होती है।

दूसरी शरीर के अंतरिक अंगों को शुद्ध करने के लिए योग में कई उपाय बताए गए है- जैसे शंख प्रक्षालन, नेती, नौलि, धौती, गजकरणी, गणेश क्रिया, अंग संचालन आदि।
भीतरी या मानसिक शुद्धता प्राप्त करने के लिए दो तरीके हैं। पहला मन के भाव व विचारों को समझते रहने से।

जैसे- काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार को त्यागने से मन की शुद्धि होती है।
इससे सत्य आचरण का जन्म होता है।

3. ध्यान : ध्यान करने से हमारी खोई ऊर्जा फिर से संचित होने लगती है और साथ ही अतिरिक्त ऊर्जा का संचय होता है जो हमें हर तरह के रोग और शोक से लड़ने में मदद करता है।
ध्यान अनावश्यक कल्पना व विचारों को मन से हटाकर शुद्ध और निर्मल मौन में चले जाना है।
विचारों पर नियंत्रण है ध्यान।

निरोगी रहने के लिए ध्यान। ध्यान से उच्च रक्तचाप नियंत्रित होता है।
सिरदर्द दूर होता है। शरीर में प्रतिरक्षण क्षमता का विकास होता है।
ध्यान से शरीर में स्थिरता बढ़ती है। यह स्थिरता शरीर को मजबूत करती है।

आंखें बंद करके श्वास की गति और मानसिक हलचल पर ध्यान दें तो तो आप ध्यान करना सीख जाएंगे।
बस यही करते रहें। श्वास की गति अर्थात छोड़ने और लेने पर ही ध्यान दें।
इस दौरान आप अपने मानसिक हलचल पर भी ध्यान दें कि जैसे एक खयाल या विचार आया दो गया और ‍फिर दूसरा विचार आया और गया।
आप पर देखें और समझें कि क्यों में व्यर्थ के विचार कर रहा हूं?
इसके अभ्यास से मन में शांति और ऊर्जा का संचार होगा।

4. भस्त्रिका प्राणायाम : भस्त्रिका का शब्दिक अर्थ है धौंकनी अर्थात एक ऐसा प्राणायाम जिसमें लोहार की धौंकनी की तरह आवाज करते हुए वेगपूर्वक शुद्ध प्राणवायु को अन्दर ले जाते हैं और अशुद्ध वायु को बाहर फेंकते हैं।
इसे करने के पहले अनुलोम विलोम में परारंगत हो जाएं और फिर ही इसे करें।

विधि : सिद्धासन या सुखासन में बैठकर कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर रखें। आंखें बंद कर दें। फिर तेज गति से श्वास लें और तेज गति से ही श्वास बाहर निकालें। श्वास लेते समय पेट फूलना चाहिए और श्वास छोड़ते समय पेट पिचकना चाहिए। इससे नाभि स्थल पर दबाव पड़ता है।

इस प्राणायाम को करते समय श्वास की गति पहले धीरे रखें, अर्थात दो सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर मध्यम गति से श्वास भरें और छोड़ें, अर्थात एक सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर श्वास की गति तेज कर दें अर्थात एक सेकंड में दो बार श्वास भरना और श्वास निकालना। श्वास लेते और छोड़ते समय एक जैसी गति बनाकर रखें।

वापस सामान्य अवस्था में आने के लिए श्वास की गति धीरे-धीरे कम करते जाएँ और अंत में एक गहरी श्वास लेकर फिर श्वास निकालते हुए पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। इसके बाद योगाचार्य पाँच बार कपालभाती प्राणायाम करने की सलाह देते हैं।

5. क्रियाएं : योग की क्रियाएं बहुत कठिन होती है।
इसे तो किसी योग में  उच्च शिक्षाप्राप्त योग शिक्षक से सीख कर ही कर सकते हैं।
इसमें खासकर धौति क्रिया, नेती क्रिया और बाधी क्रिया खास होती है।

धौति : महीन कपड़े की चार अंगुल चौड़ी और सोलह हाथ लंबी पट्टी तैयार कर उसे गरम पानी में उबाल कर धीरे-धीरे खाना चाहिए।
खाते-खाते जब पंद्रह हाथ कपड़ा कण्ठ मार्ग से पेट में चला जाए, मात्र एक हाथ बाहर रहे, तब पेट को थोड़ा चलाकर, पुनः धीरे-धीरे उसे पेट से निकाल देना चाहिए।

इसका लाभ : इस क्रिया का प्रतिदिन अभ्यास करने से किसी भी प्रकार का चर्म रोग कभी नहीं होता।
पित और कफ संबंधी सभी रोग दूर हो जाते हैं तथा संपूर्ण शरीर शुद्ध हो जाता है।
गले और छाती में जमा गंदगी बाहर निकल जाती है।
लेकिन इस क्रिया को अच्‍छे से सिखकर ही करें अन्यथा नुकसान हो सकता है।

भाप कैसे लें – सादे पानी के साथ उसमें नींबू वा संतरे के छिलके, विक्स, काली मिर्च, अदरक, नीम की पत्ती इत्यादि मिला सकते हैं।
इस तरह से रोजाना 5 मिनट तक भाप लेने से वायरस को मार दिया जा सकता है इसे भी करोना को निष्क्रिय करने के लिए वैज्ञानिकों की शोध ने बहुत ही महत्वपूर्ण बताया हैं।

योगाचार्य प्रहलाद भगत, रांची

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