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जो शोभा और सुन्दरता मिट्टी के दीयों में है वह चाइनीज लाइट मे नहीं : स्वामी सदानंद

राची, झारखण्ड  | अक्टूबर   29, 2024 ::

श्री कृष्ण प्रणामी सेवा समिति के संस्थापक एवं संरक्षक परमहंस संत शिरोमणी श्री श्री 1008 स्वामी सदानंद ने 108 दीपक जलाकर सभी भाईयों एवम बहनों को धनतेरस, रूप चौदस, दिपावली, गोवर्धन पुजा,भाई दुज एव छठ्ठ महापर्व की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाऐं दी।

गुरूजी ने कहा की सभी प्रेम और ज्ञान के दीपक जलाये। हम सभी दीपावली का अर्थ अक्सर यही लगाते हैं की घर में खूब रोशनी करना घर की सफाई करना और खाना और खिलाना पर सच में क्या दिवाली का यही अर्थ है? माना जाता है कि भगवान श्री राम 14 वर्ष का वनवास काटकर इस दिन अयोध्या वापस आए थे। तब सभी अयोध्या वासियों ने खूब खुशियां मनाई थी। घर-घर में दीपक जलाए गए थे और खूब आनंद का माहौल था परस्पर सभी में प्रेम भाव था। जितनी खुशियां वातावरण में थी उतनी उनके दिलों में भी थी क्योंकि उनके राज दुलारे उस दिन घर लौटे थे। पर आज इस त्यौहार का असली अर्थ आनंद उत्सव कहीं खो सा गया है। आज लोगों ने इस त्यौहार को सिर्फ अर्थ उपार्जन का त्यौहार बना दिया है। सभी की बस एक ही कामना रहती है खूब अच्छे से लक्ष्मी पूजन करें और लक्ष्मी जी धन के रूप में हमारे घर आए पर लक्ष्मी स्वरूप क्या सिर्फ धन का है लक्ष्मी जी तो प्रेम और संतोष की मूरत है। जहां प्रेम और संतोष होता है वहां लक्ष्मी जी खुद आती हैं और जहां दिलों में बैर होते हैं वहाँ लाख पूजन करे तो भी नहीं आती। असली धन तो संतोष को प्रेम ही है जिसके पास या धन होता है उसको कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होती। हम घर के कोने कोने की सफाई करते हैं पर अपने मन को साफ करना भूल जाते हैं।

आजकल के लोग मिट्टी के दिपक के बदले चाइनीज लाइटों का प्रयोग ज्यादा करने लगे हैं पर जो शोभा और सुन्दरता मिट्टी के दीयों में है वह किसी चाइनीज लाइट मे नहीं है। मिट्टी के दिपक मे हमारी संस्कृति की झलक मिलती है और दूसरी बात यह भी है कि है हमारे ऐसा करने से जो लोग मिट्टी के दीपक बनाते हैं और साल भर इस त्यौहार का इंतजार करते हैं उनकी आशा भी पूर्ण नहीं होती। हमारे द्वारा मिट्टी के दीपक खरीदने से उनके बच्चे भी त्योहार का आनंद उठा सकते हैं

कार्यक्रम में संस्था के अध्यक्ष डूंगरमल अग्रवाल उपाध्यक्ष निर्मल जालान, राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल, विजय अग्रवाल, नवल किशोर अग्रवाल, विशाल जालान
एवं गुरु जी के और भी बहुत से शिष्य और संस्था के भी बहुत से सदस्य उपस्थित थे।

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