आलेख़

नदियों को भी चाहिए विशेष सुरक्षा :  गुड़िया झा

हमारे जीवन में नदियों के महत्त्व को इसी से समझा जा सकता है कि धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक, पर्यटन, कृषि, शैक्षिक, औषधि, पर्यावरण और ना जाने कितने क्षेत्र हैं जो हमारी नदियों से सीधे-सीधे जुड़े हुए हैं। वर्तमान समय में यह एक विडंबना है कि दिन-प्रतिदिन इसके दूषित होने से मानव जीवन पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव हुआ है। भारतीय संस्कृति में आस्था से परिपूर्ण नदियों की पूजा की जाती है। लेकिन आधुनिक युग में शिक्षित मानव भी इसके दूषित होने में कहीं न कहीं जिम्मेदार है। नदियों को स्वच्छ और पवित्र बनाये रखना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।

1, कचरे का प्रबंधन जरूरी।
सबसे पहले तो नदियों में कचरे के प्रवाह पर रोक जरूरी है। पूजन सामग्री या अन्य प्रकार के कचरे को हम नदियों में प्रवाहित कर देते हैं। इसके अलावा औद्योगिक क्षेत्र से निकलने वाले रासायनिक पदार्थ, पशुओं को नदियों में नहाने, कपड़े धोने, कई छोटे-बड़े नाले जो नदियों में आकर मिलते हैं, इन सबके कारण नदियां प्रदूषित होती हैं।
सभी प्रकार के कचरे का एक नियमित प्रबन्धन बहुत ही आवश्यक है जिससे कि नदियों को स्वच्छ और पवित्र रखा जा सके। क्योंकि आमतौर पर देखा गया है कि सिर्फ त्योहारों के समय ही हम नदियों की साफ-सफाई पर ज्यादा ध्यान देते हैं और बाकी समय में हमारा ध्यान उस तरफ नहीं जाता है। जबकि हमेशा उसकी सफाई पर हमारा ध्यान केंद्रित हो, तो नदियों को काफी हद तक प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। इसके अलावा जलीय जीवों के शिकार पर भी रोक लगनी चाहिए क्योंकि वे नदियों को प्रदूषित होने से बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
नदियों के किनारे अधिक से अधिक पौधे लगाकर कटाव और दूषित होने से इसे बचाया जा सकता है।

2, समाज और सरकार की सक्रियता जरूरी।
नदियों को बचाने में हम सभी और सरकार को भी जागरूक होना पड़ेगा। क्योंकि कई बार ये सब केवल एक घोषणायें तक ही सीमित होकर रह जाती हैं। सरकार को भी चाहिए कि नदियों को दूषित करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही का प्रावधान रखे ताकि लोगों में इस बात का डर भी बना रहे कि नदियों को दूषित करने पर उन्हें कड़ी सजा भुगतनी पड़ेगी साथ ही वे इसके महत्त्व को समझेंगे भी।
त्योहारों के समय जिस प्रकार से हम एकजुट होकर नदियों की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देते हैं, अगर उसी प्रकार का विशेष ध्यान सामान्य दिनों में भी दी जाये तो हमारे देश में कहीं भी और कोई भी नदी प्रदूषित नहीं होगी। क्योंकि आस्था केवल विशेष दिनों के लिए ही नहीं बल्कि प्रत्येक दिनों को विशेष बनाने के उद्देश्य का पाठ भी हमें पढ़ाती है।

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