लॉकडाउन के एक वर्ष और भारतीय एकता की मिशाल।
गुड़िया झा।
बीते वर्ष इन्हीं दिनों जिस लॉकडाउन की शुरुआत हुई थी, उससे हम आज तक आजाद नहीं हुए हैं। सम्पूर्ण लॉकडाउन की अवधि चार बार बढ़ाई गई थी और उसके बाद से अब तक अनलॉक होने का सिलसिला चल रहा है। इस बीते हुए एक वर्ष की अवधि में यदि हम गौर से देखें, तो हम ये पायेंगे कि पूरा विश्व एक संक्रमण की मुट्ठी में कैद था। लोग काफी परेशान और चिंतित थे। भारतीय अर्थव्यवस्था को भी काफी नुकसान पहुंचा। लोगों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ा। इन सबके बावजूद भी आज हम सभी ईमानदारी और मेहनत के बल पर खड़े हैं।
यदि हम इस संक्रमण के आने से आहत हुए तो हर कदम पर मजबूत भी इसी के दम पर हुए।
इस दौरान हमनें यह भी सीखा कि चुनौतियां जब भी आती हैं, तो हमारे सामने सिर्फ समस्याओं को लेकर नहीं आती हैं, बल्कि उसके साथ बहुत सी सम्भावनाओं को भी लेकर आती हैं। तभी तो हम चुनौतियों में भी सम्भावनाओं को भी ढूंढ़ लेते हैं। यदि हम चुनातियों से घबरायेंगे तो सम्भावनाओं को ढूंढ नहीं पायेंगे। कुछ भी असंभव नहीं है। जब हम इतनी बड़ी महामारी के बीच भी एक साथ मिलकर खड़े हैं, तो कहीं न कहीं यह हमारी एकता की मिशाल है। हमें अपनी इसी दृढ़ता को कायम रख निरंतर जीवन पथ पर स्वयं के साथ-साथ दूसरों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
1, सकारात्मक सोचें।
जब हम सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर चलते हैं, तो बहुत सारी बाधाएं आती हैं। उस स्थिति में हम खुद को असहाय महसूस करने लगते हैं। जबकि इसके अनुकूल यदि हम यह सोचें कि उन विपरीत परिस्थितियों से निकलना कैसे है, तो धीरे-धीरे बहुत सारे रास्ते भी मिलने लगते हैं।
जीवन में जब सबकुछ अच्छे से चल रहा होता है, तब हमें बड़ा ही आरामदायक महसूस होता है। ज्यों हीं संघर्ष की घड़ी आती है तो हम विचलित हो जाते हैं । अपनी सोच को सकारात्मक रख कर हम जब विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए आगे बढ़ते हैं, तो बहुत सारे अनुभव भी हमें प्राप्त होते हैं। संघर्ष जितना बड़ा होगा, हमारी जीत भी उतनी ही बड़ी होगी। जीवन के हर पल में मजा है। अब ये हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम अपने जीवन को जीते कैसे हैं?
2, प्यार और स्नेह का साथ।
रिश्ते चाहें कोई भी हो इस लॉकडाउन की अवधि में इन रिश्तों ने भी भावनात्मक रूप से एक-दूसरे से जुड़ने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। हमारी भारतीय संस्कृति की बात ही कुछ और है। हमें उन परिस्थितियों को भी धन्यवाद देना चाहिए जिसने जीवन के उतार-चढ़ाव के बीच भी अपने रिश्तों को संभालने का अवसर दिया और हमें भरपूर हिम्मत दी कि हम अपने जीवन पथ पर निरन्तर आगे बढ़ते रहे।
इतना ही नहीं, जाति, धर्म और मजहबों से ऊपर उठकर सभी ने मानवीय संवेदनाओं का परिचय देते हुए एक-दूसरे को आगे बढ़ाने में जो मिशाल कायम की है वो बहुत ही सराहनीय है।
परिस्थितियां चाहे जो भी हो एक बात तो तय है कि समय अपनी गति से आगे बढ़ता है साथ ही नये-नये चुनौतियों को भी हमारे सामने लाकर खड़ा कर देता है। जितनी बड़ी चुनौतियों का सामना करने का हमें अवसर मिलता है हम उतने ही ज्यादा मजबूत होते हैं। प्यार और स्नेह को कायम रख कर हमें यूं ही एक नये भारत के निर्माण में अपना योगदान देकर आगे बढ़ना है।

