आलेख़

निःस्वार्थ सेवा शांति का आधार :: गुड़िया झा

निःस्वार्थ सेवा शांति का आधार :: गुड़िया झा

हम अपने जीवन में प्रतिदिन कई काम करते हैं। इनमें कई अपनी और अपनों की खुशी के लिए तो कई दूसरों की खुशी के लिए। दूसरों की सेवा करने से जो खुशी मिलती है, उसकी एक अलग ही अहमियत है।

दूसरों की मदद हमें सार्थक तरीके से दूसरों से जोड़ती है, जिसके लिये दिल में केवल प्यार होना जरूरी है। ‘ सेवा सुंदर होती है, पर तभी जब निःस्वार्थ भावना से की जाए ‘।
कई बार हम सोचते हैं कि हमें दूसरों से क्या लेना-देना। जब हम किसी की मदद निःस्वार्थ भावना से करते हैं, तो जीवन में कभी न कभी हमें उसके अच्छे परिणाम भी मिलते हैं। हमारे द्वारा किये गये सही कर्मों का एकाउंट जमा होता जाता है। जब कभी भी हमें जरूरत पड़ती है, तो ईश्वर अपने माध्यम से हमारे जीवन में हाथ बढ़ाने वाले शख्स को अवश्य ही हमारी मदद के लिए भेज देते हैं। हमारे बड़े बुजुर्गों ने भी कहा है कि ‘नेकी कर और दरिया में डाल’।

सेवा का कोई निश्चित मापदंड नहीं होता है। कभी-कभी हम सोचते हैं कि हमारे पास तो कुछ भी नहीं है, तो हम कैसे दूसरों की मदद कर सकते हैं? जब हम अपनी स्थिति के अनुकूल चाहे वह मानसिक, आर्थिक, शारीरिक आदि किसी भी तरीके से लोगों की मदद निःस्वार्थ भावना से करते हैं, तो इसकी एक अलग ही आत्मसंतुष्टि हमें मिलती है। हमारे द्वारा किये गये सभी नेक कार्यों का एकाउंट ईश्वर के पास जमा होता जाता है। कोई भी सेवा छोटी या बड़ी नहीं होती है। इसके तार हमारे दिल से जुड़े होते हैं। किसी भी तरह की सेवा के लिये हमारा दिल बड़ा होना चाहिए। हमारे द्वारा बोले गये सांत्वना के दो बोल भी किसी औषधि से कम नहीं होते हैं।

आमतौर पर हम कभी-कभी सेवा को पैसों के लेनदेन को ही समझते हैं। जबकि इसके विपरीत हम यह सोचें कि सेवा यज्ञ कुंड है। सेवा कार्य हेतु व्यक्ति को यज्ञ कुंड के समान हमेशा जलते रहना पड़ता है। इस कार्य के लिए ऊंच-नीच का भेद भूलना होता है। आपस में बंधुत्व भावना रखनी होती है और राग द्वेष का त्याग करना पड़ता है। सेवा करते वक्त इस बात का ध्यान रखना होता है कि जिसकी हम सेवा करना चाहते हैं उसकी आवश्कयता क्या है? अपनी मर्जी से दिखावे के लिये कुछ भी करते रहना सेवा नहीं है।

सामान्यतः सेवा करते समय इस बात का ध्यान रखना होता है कि हमारी सेवा से किसी निराश हो चुके व्यक्ति में आशा का संचार हो। उसका जीवन स्तर ऊंचा उठे, निष्क्रिय सक्रिय हो जाये और असीम सम्भावनाओं से भरा संसार दिखने लगे। अतः आवश्कयता अनुसार धन, शब्द, श्रम का व्यय कर हम सेवा कर सकते हैं।

Leave a Reply