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खरमास का समापन : अब किये जा सकेंगे, विवाह लग्न के साथ सभी शुभ कार्य :: डॉ स्वामी दिव्यानंद जी महाराज ( प्रख्यात ज्योतिषी )

रांची, झारखण्ड । जनवरी | 15, 2020 :: प्रख्यात ज्योतिषी डॉ. स्वामी दिव्यानंद जी महाराज ने बताया, मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाया जाएगा। सूर्य देव 15 जनवरी को प्रातः 8 बजकर 24 मिनट पर उत्तरायण होंगे यानि सूर्य चाल बदलकर धनु से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे।
ज्योतिषीय भाषा में संक्रांति का अर्थ – ग्रहों का एक राशि से दूसरे राशि में जाना, यानी संक्रमण, और मकर यानी – 12 राशियों में 10वें ग्रह का नाम है, यानी मकर संक्रांति।
साथ ही खरमास का भी समापन हो जाएगा, 9 जनवरी को गुरु भी उदय हो चुके हैं, अब विवाह लग्न के साथ सभी शुभ कार्य किये जा सकेंगे,
स्वामी जी ने बताया, कि शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को नकारात्मकता तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है| इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक कर्मों का विशेष महत्व है| ऐसी धारणा है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है| इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है,
मकर संक्रांति से जुड़ी कई प्रचलित पौराणिक कथाएं हैं| ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भानु अपने पुत्र शनिदेव से मिलने उनके लोक जाते हैं| शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति के नाम से जाना जाता है|
श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण के मुताबिक, शनि महाराज का अपने पिता से वैर भाव था क्योंकि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया था, इस बात से नाराज होकर सूर्य देव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था। पिता सूर्यदेव को कुष्ट रोग से पीड़ित देखकर यमराज काफी दुखी हुए। यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए तपस्या की। लेकिन सूर्य ने क्रोधित होकर शनि महाराज के घर कुंभ जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जला दिया। इससे शनि और उनकी माता छाया को कष्ठ भोगना पड़ रहा था। यमराज ने अपनी सौतली माता और भाई शनि को कष्ट में देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को काफी समझाया। तब जाकर सूर्य देव शनि के घर कुंभ में पहुंचे।
यह भी माना जाता है मकर संक्रांति के ही दिन भागीरथ के पीछे पीछे माँ गंगा मुनि कपिल के आश्रम से होकर सागर में मिली थीं| अन्य मान्यता है कि माँ गंगा को धरती पर लाने वाले भागीरथ ने अपने पूर्वजों का इस दिन तर्पण किया था| मान्यता यह भी है कि तीरों की सैय्या पर लेटे हुए पितामह भीष्म ने प्राण त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था, यह विश्वास किया जाता है कि इस अवधि में देहत्याग करने वाला व्यक्ति जन्म मरण के चक्र से पूर्णत: मुक्त हो जाता है|

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