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ना हो दबाव में जीवन : गुड़िया झा

ना हो दबाव में जीवन : गुड़िया झा

ईश्वर ने हम सभी को अद्वितीय रूप से नवाजा है और स्वतंत्र रूप से सभी को जीने का अधिकार भी दिया है। लेकन हमारी विडम्बना है कि हम ना तो खुद ही स्वतंत्र रूप से जीना चाहते हैं और ना ही दूसरों को रहने देना चाहते हैं। कभी किसी से आगे निकलने की होड़ में, कभी किसी को नीचा दिखाने की जिद में, कभी किसी से बदले की भावना तो कभी अपनी शान की खातिर दबाव अपने ऊपर लेना और दूसरों को भी उसी दबाव में रहने को मजबूर करना।
हमारे संविधान में भी सभी को स्वतंत्र रूप से जीवन जीने का अधिकार दिया गया है। लेकिन हम इंसान तो अपना एक अलग ही कानून बनाकर जीवन जीने में अपनी खुशी समझते हैं। यह हमारे अपने भीतर की कमजोरी है कि हमने अपनी सोच को इतना संकुचित कर लिया है कि मस्तिष्क से संकुचित सोच को निकालने का ना तो हमारे पास समय है और ना ही स्वतंत्र विचारों को भरने की जगह। हम खुद के साथ-साथ दूसरों के लिए भी कई बार बाधक बन जाते हैं। जीवन जीने का यह तरीका हमेशा हमारे मस्तिष्क को तनाव से भर देता है जिसके कारण हमारे मन में डर, दबाव तो कभी मजबूरी अपना घर बनाकर स्थायी रूप से रहता है। जरा सोचें कि जब हम दूसरों को आगे बढ़ाने के रास्ते दिखाते हैं तो इसके साथ ही हमें भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इससे मन में एक अजीब सी खुशी का अनुभव होता है और यह खुशी हमारी सेहत को दुरूस्त रखने का एक महत्त्वपूर्ण कार्य भी करती है। तो क्यों न हम जीवन को दबाव में नहीं बल्कि खुशहाल तरीके से जियें।
1, खुद के साथ दूसरों के अधिकारों को भी समझें।
जिस व्यवहार से हम खुद दुखी होते हैं, ठीक वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ कभी ना करें। जरा सोचें कि जब कोई हमारे अधिकारों का हनन कर हमें दबाव में किसी कार्य को करने के लिए बाध्य करता है, तो हमारे ऊपर क्या असर होता है। फिर वही गलती हम दूसरों पर क्यों दोहराएं?
अपने अधिकारों को अवश्य ही पहचाने और दूसरों को भी इसके लिए स्वतंत्र रखें। हम जो दूसरों के साथ करेंगे कभी न कभी प्रकृति हमें भी वही लौटायेगी। अपने अधिकारों को पहचानने का मतलब यह नहीं कि सिर्फ विरोध करना। बल्कि समझना कि यह जिंदगी हमारी है। हमें भी खुलकर जीने का अधिकार है और अपने सपनों की मंजिल तक पहुंचने का भी। स्वास्थ्य, खुशी, बेहतर दिनचर्या और खुले दिल से लोगों से मिलना, साथ ही अपनी पसंद के कार्य करने का अधिकार भी आदि। लोगों द्वारा दिये गये सर्टिफिकेट के आधार पर अपनी जिंदगी का आकलन ना करें। याद रखें आप जैसा ईश्वर ने दूसरा किसी को नहीं बनाया होगा। अपने भीतर ईश्वरीय शक्ति को पहचाने और खुशनुमा जीवन जियें।
2, ना भी कहना सीखें।
कभी-कभी होता यह है कि न चाहते हुए भी हम दूसरों के दबाव में कार्य कर रहे होते हैं। हम इतने मजबूर होते हैं कि सोचते हैं कि मना करने से सामने वाला बुरा ना मान जाये जिससे कि हमारे संबंधों पर इसका बुरा प्रभाव हो। तो यकीन मानिये कि दबाव में जीने से कोई फायदा नहीं है। इससे हमारा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बहुत ही प्रभावित होता है। जहां हमें लगें कि हम बहुत ज्यादा परेशान हो रहे हैं तो शिष्टतापूर्वक अपनी परेशानियां दूसरों को बतायें। अगर हमारे कहने के तरीके और नियत अच्छी होगी तो सामने वाले पर भी इसका अनुकूल प्रभाव होगा। ठीक इसी प्रकार की परेशानियों को हमें खुद भी दूसरों के लिए समझना होगा और उनकी मदद करने से जो खुशी मिलेगी उसका एक अलग ही आनंद है। यह जीवन चक्र ऐसे ही चलता है। हमने कई बार पढ़ा भी है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और एक-दूसरे की मदद कर भी हम अपनी मानवता को बचाये रख सकते हैं।

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