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सामंजस्य भी जरूरी है रिश्तों में : गुड़िया झा

सामंजस्य भी जरूरी है रिश्तों में : गुड़िया झा

“जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते”। ये पंक्तियां हम सभी ने कहीं न कहीं जरूर सुनी होगी। हर दिन का एक-एक पल बड़ी ही आसानी से अपनी तेज गति से आगे बीत रहा है और हम सोचते हैं कि ये कल फिर से आयेगा। बस इसी सोच में सिर्फ भागदौड़ के बीच हम रिश्तों को नजरअंदाज करते हैं। क्या हमने कभी सोचा है कि हम इन रिश्तों को नजरअंदाज कर बहुत दूर तक अकेले नहीं जा सकते हैं। थोड़ी सी सजगता और धैर्य हमारे और सबके लिए ही फायदेमंद है।
1, धैर्य।
धैर्य वह औषधि है जो बड़ी से बड़ी चुनौतियों में भी हमें सही रास्ता ही दिखाती है। रिश्तों को बचाने में धैर्य की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी की भी बातों को जब हम बहुत ही धैर्यपूर्वक सुनते हैं, तो इससे हमें पता चलता है कि सामने वाले को क्या परेशानी है और हम अपनी ओर से मदद का हाथ भी आगे बढ़ाते हैं। ये भी रिश्तों में सामंजस्य स्थापित करने का बहुत बड़ा हिस्सा है। अपने मन को विचलित और क्रोधित कर लेने से समाधान की जगह समस्या बढ़ने का ज्यादा खतरा बना रहता है। रिश्तों के बारे में कहा जाता है कि रिश्ते और पौधे एक जैसे होते हैं। इन्हें जितना अधिक सींचा जाये इनकी जड़ें उतनी ही ज्यादा मजबूत होती हैं। दूसरों के पहल के इंतजार में रिश्ते नहीं बनते हैं बल्कि खुद की तरफ से ही पहल करने से ही प्रगति आती है।
हमारे बड़े- बुजुर्गों ने ठीक ही कहा है कि तुनकमिजाज बनने से अच्छा है कि थोड़ी देर मौन हो जाना। मौन होना अपने आप में सबसे बड़ी दवा है। कब, कहां और क्या बोलना है, अगर ये बात थोड़ी सी ध्यान में रख ली जाये तो हमारे रिश्तों की बागडोर खूद ब खुद मजबुत होगी। शब्द भी एक तरह का भोजन ही है। कब, कौन सा शब्द परोसना है, अगर यह बात समझ में आ गयी तो इससे अच्छा रसोईया और क्या हो सकता है।
2, अहंकार का त्याग।
रिश्तों में आपसी सामंजस्य स्थापित करने के लिए यह अति आवश्यक है कि अपने अहंकार की भावना का त्याग किया जाये। “मैं ” की भावना से ऊपर भी बहुत कुछ है। क्योंकि जहां “मैं वहां हरि नहीं और जहां हरि वहां मैं नहीं “। तेरा, मेरा, ऊंच और नीच का भेदभाव ही रिश्तों में दरार का सबसे प्रमुख कारण है। आज एकल परिवार का चलन ज्यादा है। इसके पीछे सबसे प्रमुख कारणों में एक कारण इगो भी है। जहां कहीं भी गलतफहमी हो, वहां अपनी तरफ से पहल कर शालीनता से जानने का प्रयास करें कि कहीं हमारे विचारों में ही दोष तो नहीं है जिसके कारण हमारे बीच अवरोध उत्पन्न हो रहा है। दुनिया में हर समस्या का समाधान है, लेकिन शांति और आपसी बातचीत से। शांति से किये हुए फैसले लम्बे समय तक के लिए लाभदायक होते हैं और हमारे रिश्तों में भी मजबूती बनी रहती है। निष्पक्ष और बेफिक्र होकर अपनी बातें कहने का अधिकार सभी को है। लेकिन साथ ही अपनी मर्यादा को ध्यान में रखते हुए अगर हम आगे बढ़ें, तो इसमें कोई शक नहीं कि हमारे रिश्ते मजबूत ना हों।
3, एकात्मता।
एकात्मता के बिना तो किसी चीज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। परिवार, समाज हो या राष्ट्र हर जगह इसके बिना अधूरापन ही है। दूसरे के सुख-दुख को अपना सुख-दुख समझ कर जब हम आगे बढ़ते हैं, तो हमारी एकात्मता का विकास और भी ज्यादा होता है। जहां एकात्मता होगी वहां प्यार भी होगा और जहां प्यार होगा वहां रिश्तों में मजबूती अपने आप ही आयेगी।

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