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परीक्षा के डर पर जीत की लहर :: गुड़िया झा

परीक्षा के डर पर जीत की लहर :: गुड़िया झा

फरवरी और मार्च के महीने में बच्चों की वार्षिक परीक्षा का समय होता है।तो स्वाभाविक बात है कि बच्चे मानसिक रूप से काफी परेशान भी होते हैं।ऐसे में हमारी भी यह जिम्मेदारी है कि हम उन पर अपना दबाव ना बनाकर अभिभावक होने के साथ-साथ एक अच्छे दोस्त और मार्गदर्शक बनकर उनका मनोबल बढायें,जिससे उनके मन में परीक्षा के प्रति जो डर है वह दूर हो सके तथा वे अपनी वास्तविक क्षमता को पहचान कर उल्लास के साथ परीक्षा की तैयारी पर ध्यान दें।
अधिकांश बच्चों में यह भावना होती है कि वे पढ़ाई में बहुत अच्छे तो नहीं हैं।इस बात को लेकर हाल ही में हुए परीक्षा पर चर्चा में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी यही कहा था कि सामान्य बच्चे ही बड़ा कार्य करते हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि समय का प्रबंधन बच्चे अपनी मां से सीखें।
हम सबकी एक छोटी सी पहल बच्चों में एक ऊर्जा का संचार कर सकती है।
1, खान-पान पर ध्यान।
इस समय बच्चों के खान-पान पर विशेष ध्यान देने से उनकी सेहत तन्दरूस्त बनी रहती है और वे अपनी पढ़ाई पर विशेष ध्यान भी देते हैं। सुबह समय पर नाश्ता जिसमें सभी तरह के पोषक तत्वों से भरपूर उनकी थाली हो।पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन, दोपहर के खाने में भी दालें, सलाद, हरी पत्तेदार सब्जियां दूध से बने पदार्थ आदि शामिल हों।ठीक इसी प्रकार रात का भोजन भी हल्का और सुपाच्य हो जिससे बच्चे को नींद भी अच्छी आये। रात को जल्दी सोने और सुबह उठने का एक निर्धारित समय हो जिसमें बच्चे अपनी दिनचर्या को अच्छी तरह से व्यवस्थित करें।
2, नंबरों का दबाव ना बनायें। अधिकतर बच्चे इस कारण भी डरे,सहमे रहते हैं कि कम नंबर आने से घर या स्कूल में उन्हें सबकी उपेक्षाओं का शिकार भी होना पड़ेगा।ऐसे में हमारा यह कर्तव्य है कि उन्हें यह बताया जाए कि वे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। अधिक नंबर जीवन का आधार नहीं है।प्रत्येक बच्चा जन्मजात विजेता है।वे अपनी मंजिल खुद तय करते हैं।बस हमें एक अच्छी सड़क का कार्य करना है उन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचाने के लिए।जिस तरह से हाथों की सभी उंगलियां एक जैसी नहीं होती हैं। ठीक उसी प्रकार से सभी बच्चों की योग्यता और क्षमता भी अलग-अलग होती है।अभिभावक होने के नाते हमारी यह इच्छा होती है कि बच्चे हमारा नाम रौशन करें और उनका भविष्य भी उज्जवल हो। यह बात भी सही है। लेकिन कभी-कभी अत्यधिक दबाव बनाकर हम यह भूल जाते हैं कि उनके भीतर के बचपन को हम आहत पहुंचा रहे हैं।
3, सही दिशा में मेहनत और गैजेट का सीमित उपयोग।
गिनकर लगातार कई घण्टों की पढ़ाई करने से बेहतर है कि समय के अनुसार किस विषय पर कितना पकड़ बनाया है इसका आकलन करें।बीच में ब्रेक लेना भी आवश्यक है जिसमें वो अपनी पसंद के कार्य करें।जहां तक संभव हो सके गैजेट का उपयोग कम से कम करें जिससे उनका कीमती समय भी बर्बाद ना हो और तैयारी भी अच्छी तरह से हो जाये। सप्ताह में कम से कम दो दिन इसका उपयोग बिना जरूरत बिल्कुल नहीं करें।

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