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ज्ञान प्राप्ति की माध्यम हैं इन्द्रियां: आचार्यश्री महाश्रमण

*ज्ञान प्राप्ति की माध्यम हैं इन्द्रियां: आचार्यश्री महाश्रमण*

*-तपती गर्मी के बीच भी निरंतर गतिमान हैं महातपस्वी महाश्रमण

*-लगभग 12 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे खरावड़

*-आपके दर्शन और स्वागत का अवसर पाकर हो गया धन्य: रोहतक विधायक

*01.04.2022, खरावड़, रोहतक (हरियाणा):
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य की ज्ञान रश्मियों से वर्तमान में भारत का हरियाणा राज्य आलोकित हो रहा है। हरियाणा भारत का वह राज्य जो हरित क्रांति और श्वेत क्रांति में अग्रणी रहा है। यह प्रदेश एक समृद्ध प्रदेश है। प्रति व्यक्ति सबसे अधिक आय के मामले में हरियाणा भारत में दूसरा स्थान रखता है। भारत में सबसे ज्यादा एथलेटिक्स भी हरियाणा से ही हैं। कृषी क्षेत्र में अग्रणी ऐसे हरियाणा प्रदेश में गतिमान आचार्यश्री लोगों को आध्यात्मिक रूप से उन्नत बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं।

शुक्रवार को प्रातःकाल आचार्यश्री अपनी धवल सेना संग सांपला स्थित श्री छोटूराम गवर्नमेंट कॉलेज फार वुमेन से प्रस्थित हुए। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 10 पर गतिमान आचार्यश्री जैसे-जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे, वैसे-वैसे सूर्य की तीखी किरणें धरती को तप्त बना रही थीं। हालांकि खेतों से होकर बहने वाली हवा शीतलता लिए हुए तो थी, किन्तु सूर्य के आतप के सामने वह नाकाफी साबित हो रही थी। तीव्र धूप और गर्मी में लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री खरावड़ स्थित श्री साईं मंदिर परिसर में पधारे। मंदिर से संबंधित लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।

मंदिर परिसर के पीछे बने हॉल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी के पास पांच इन्द्रियां हैं, जिन्हें ज्ञानेन्द्रियां भी कहा जाता है। कान, नाक, आंख, जिह्वा और त्वचा। ये पांचों इन्द्रियां आदमी के जीवन में ज्ञान का माध्यम भी बनती हैं और भोग का माध्यम भी बनती हैं। आदमी को अपने इन्द्रियों को ज्ञानेन्द्रिय बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।

कान से सुना जा सकता है, आंख से देखा जा सकता हैं, नाक से सुगंध/दुर्गंध का पता चलता है, जिह्वा स्वाद और त्वचा स्पर्श की अनुभूति कराने वाला है। साधु-संतों के लिए इन इन्द्रियों का संयम तो आवश्यक है ही, गृहस्थों को भी अपने इन्द्रियों का संयम करने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ भी इन्द्रिय संयम कर इस जन्म के साथ आगे वाले जन्म की गति को भी सुधार सकता है। इन्द्रिय का असंयम होता है तो उसका परिणाम भी आदमी को भोगना होता है। भाव ही बंधन और मोक्ष का कारण बनता है। आदमी इन्द्रियों का संयम कर अपने भावों को विशुद्ध बनाने का प्रयास करे तो मोक्ष की दिशा में गति कर सकता है। आदमी बाह्य आभूषणों को धारण करे अथवा न करे किन्तु गुण रूपी आभूषण जीवन में होते हैं तो वह सभी जगह शोभायमान होता है। हाथ से किसी भी पवित्र सेवा हो, आंख से आध्यात्मिक ग्रंथों को देखने और पढ़ने का प्रयास हो। कानों से गुरुओं व आचार्यों के प्रवचन का श्रवण हो, आगमवाणी श्रवण का प्रयास हो तो इन्द्रिय संयम के साथ जीवन भी संयमित हो सकता है।

आचार्यश्री के स्वागतर्थ उपस्थित रोहतक के विधायक श्री भारत भूषण बत्रा ने कहा कि मैं रोहतक की धरती पर परम पूज्य राष्ट्र संत आचार्यश्री महाश्रमणजी का हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन करता हूं। यह हम सभी का सौभाग्य है जो आज मुझे आपश्री के दर्शन करने का ही नहीं, बल्कि स्वागत करने का सुअवसर प्राप्त हो गया। आपश्री के दर्शन और प्रवचन से प्राप्त पथदर्शन मानव जीवन का कल्याण करने वाले हैं। आपका आशीर्वाद निरंतर मिलता रहे। तदुपरान्त कार्यक्रम में साईं मंदिर के अध्यक्ष श्री नवीन जैन, मंत्री श्री संजय जैन, श्री सुरेन्द्र जैन व श्री चन्द्रसेन जैन ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी।

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