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इतिहास में आज :: छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक [ 06 जून 1674 ]

जून | 06, 2017 ::  भारत की पावन धरती ने कई वीर पुत्रों को जन्म दिया। इनमें से एक थे शिवाजी जिनका जन्म मराठा परिवार में हुआ था। इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि महाराष्ट्र के इतिहास में वे आज तक के सबसे बड़े योद्धा हैं। शिवाजी महाराज भारत के स्वतंत्रता लड़ाई के बीज बोने वाले शूरवीर दिग्गजों में से भी एक माने जाते हैं।

छत्रपति शिवाजी को भारतीय इतिहास का सबसे पराक्रमी योद्धा माना जाता है। उनकी वीर गाथाएं आज भी हमारे लिए एक प्रेरणा स्रोत का कार्य करती हैं। वीर शिवाजी ने मराठा मानुष को एक ऐसा किरदार दिया है जिस पर वह चिरकाल तक गर्व कर सकते हैं। मुगलों से युद्ध और उन्हें अपने क्षेत्र से दूर रखने के लिए वीर शिवाजी ने कई अहम मौकों पर देश को संभाला और शक्ति प्रदान की है। वीर शिवाजी एक आदर्श वीर थे जिनके अंदर वीर होने का गर्व था घमंड नहीं।
1674 तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था, जो पुरन्दर की संधि के अन्तर्गत उन्हें मुग़लों को देने पड़े थे। पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु ब्राह्मणों ने उनका घोर विरोध किया।
लेकिन शिवाजी के निजी सचिव बालाजी आवजी ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और उन्होंने काशी में गंगाभ नामक एक ब्राह्मण के पास तीन दूतों को भेजा, किन्तु गंगाभ ने प्रस्ताव ठुकरा दिया, क्योंकि शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे। उसने कहा कि क्षत्रियता का प्रमाण लाओ तभी वह राज्याभिषेक करेगा। बालाजी आव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध  मेवाड़ के सिसोदिया वंश से समबंद्ध के प्रमाण भेजे, जिससे संतुष्ट होकर वह रायगढ़ आया ओर उसने राज्याभिषेक किया। राज्याभिषेक के बाद भी पूना के ब्राह्मणों ने शिवाजी को राजा मानने से मना कर दिया। विवश होकर शिवाजी को ‘अष्टप्रधान मंडल’ की स्थापना करनी पड़ी।
‘छत्रपति’ की उपाधि
विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया। शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। 06 जून 1674 को उनका राज्याभिषेक किया गया। काशी के पण्डित विशेश्वर जी भट्ट को इसमें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। इस कारण से 4 अक्टूबर, 1674 ई. को दूसरी बार उनका राज्याभिषेक हुआ। दो बार हुए इस समारोह में लाखों रुपये खर्च हुए। इस समारोह में हिन्दू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था। विजयनगर के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था। एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया। इसके बाद बीजापुर के सुल्तान ने कोंकण की विजय के लिए अपने दो सेनाधीशों को  शिवाजी के विरुद्ध भेजा, पर वे असफल रहे।

आलेख: कयूम खान, लोहरदगा।

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