राची, झारखण्ड | अक्टूबर | 21, 2022 :: माइनिंग इंजीनियरिंग के जिस सेक्टर में लड़कियों के लिए दरवाजे लगभग बंद थे, वहां अब नये चैप्टर की शुरुआत हो चुकी है। माइंस एक्ट 1952 और कोल माइंस रेगुलेशन 1957 के प्रावधानों में अंकित सुरक्षा कारणों से इस सेक्टर में लड़कियों की एंट्री न के बराबर थी। इससे देश के इंजीनियरिंग कालेजों में माइनिंग इंजीनियरिंग में लड़कियों का एडमिशन नहीं हो पता था। माइनिंग से जुड़े कानूनों में हुए बदलाव के बाद 2018 से बंद दरवाजें खुल चुके हैं। माइनिंग इंजीनियरिग की पढ़ाई करने को आतुर लड़कियां अब पाताल की खुदाई को भी तैयार हैं।
सोनभद्र (उत्तर प्रदेश) से रांची आकर माइनिंग इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही प्रियंका मिश्रा की कहानी भी कुछ इसी तरह कि है। माइनिंग इंजीनियरिंग कि पढ़ाई करना प्रियंका के लिए एक जूनून की तरह है। यह कुछ इस कदर हावी था कि इसके लिए उन्होंने एक साल तक इंतजार किया। पहले एनआईटी दुर्गापुर और फिर मथुरा के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में पेट्रोकेमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए चयनित होने के बाद भी उसने एडमिशन नहीं लिया और एक साल का इंतजार किया और फिर नियमों में हुए बदलाव के बाद रांची के झारखण्ड राय यूनिवर्सिटी में बीटेक माइनिंग इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया ।
प्रियंका के शब्दों में “पिताजी और चाचा जी ने मुझे इस क्षेत्र में जाने के लिए प्रोत्साहित किया। बचपन से ही मुझे हमेशा कुछ अलग करने का हौसला घर के सदस्यों से मिला है। सरहदों पर लड़कियां तैनात, तो खदान में क्यों नहीं’ जब दुनिया के दूसरे देशों में लड़कियां खदान के अंदर काम कर सकती हैं , तो फिर भारत में यह क्यों नहीं हो सकता। जमाना बदल गया है, अब लड़कियां अब पाताल की खुदाई को भी तैयार हैं।
(डॉ. प्रशांत जयवर्धन)