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लड़कों से कहीं बेहतर नाम रोशन कर रही है पापा की परियां 

आपके घर लङकी पैदा हुई है

ये शब्द सुनते ही कभी एक सन्नाटा सा छा जाता था उस घर में जिसमे बच्चे के जनम में लड़का होने का बेसब्री से इंतज़ार किया जा रहा होता था।
न सिर्फ सन्नाटा बल्कि इसके साथ और भी जो अमानवीय कर्म जुड़े होते थे उनको तो याद करते है रूह तक काँप जाती थी। कहीं कहीं तो ऐसा भी सुनने में आता था कि लड़की के जनम के बाद उसकी अमानवीय रूप से हत्या तक कर दी जाती थी।
फिर एक जमाना ऐसा आया जब भूर्ण परिक्षण का वक़्त आया। बस फिर क्या था लड़के की चाह रखने वालो को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गयी और शुरू हुआ हर गर्भावस्था में भूर्ण परीक्षण का दौर। जैसे ही परीक्षण में पता चला की लड़की होगी, बस करवा दिए गर्भपात। ये गर्भपात एक बार न होकर बार बार होता था। जितनी बार लड़की होगी पता चलता, उतनी बार गर्भपात। चाहे माँ की जान पर ही क्यों न बन आये । परन्तु कुंठित मानसिकता वाले लोगों को तो सिर्फ लड़का ही चाहिए होता था। लड़का, जो उनका वंश आगे बढ़ाएगा। उनका नाम रोशन करेगा एवं बुढ़ापे में उनका सहारा बनेगा। कुछ ऐसे लॉजिक होते थे इन लोगों के पास भूर्ण परिक्षण वाले अमानवीय काम के लिए।
भूर्ण परिक्षण को इल्लीगल घोषित करने पर भी ये काम चोरी छुपे होता रहा बहुत समय तक। जब कहीं न चली और लड़की हो ही गयी तो उस बेचारी निर्दोष लड़की की जिंदगी नरक से भी बदतर बना देते थे ये कुंठित मानसिकता वाले लोग। नौकरानी से भी बदतर जिंदगी जीती थी ये लडकियां एवं उन्हें एक बोझ के रूप में लड़कियों को पाला जाता था। जो थोड़े बहुत लोग मान भी लेते थे कि चलो लड़की हो गयी तो हो गयी , उनमे भी कहीं न कहीं ये दिमाग में रहता था कि इन लड़कियों को घर के काम काज सिखाओ, ये तो पराया धन है। दूसरे की अमानत है एवं उस घर जाके वहां के काम ही तो करने हैं। इन्हे पढ़ाने की कोई जरुरत नहीं। एक ऐसी सोच समाज में बहुत लम्बे समय तक रही । जिस वजह से चाहकर भी ये लड़कियां पढ़ लिख नहीं पाती थी एवं उन्ही जिंदगी घर में चूल्हे चौके में ही गुजर जाती थी।

समाज में उक्त मानसिकता से परे कुछ ऐसे लोग भी थे जिनके लिए लडकियां अभिशाप नहीं थी, न ही वो नौकरानी होती थी। इन लोगों के लिए लड़का एवं लड़की में कोई फ़र्क़ नहीं होता था बल्कि वो तो पापा की परी होती थी। एवं पापा उनको बिलकुल परियों जैसे ही पालते थे। यही वो लोग थे जिनके कारण लड़कियों न सिर्फ पड़ने का मौका मिला बल्कि उन्होंने अपने साबित करके दिखाया कि वो किसी भी तरह से लड़कों से काम नहीं हैं। आज हर क्षेत्र एवं हर विभाग में लडकियां पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलकर काम कर रही है। यह कहना गलत नहीं होगी कि न सिर्फ ये पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलाकर काम कर रही हैं बल्कि उन्हें कहीं बेहतर काम कर रही हैं। आज हर क्षेत्र में लड़कियों ने खुद को साबित किया है। बड़े बड़े ओहदों में लड़कियां विराजमान हैं। पहाड़ पर चढ़ने की बात हो या वाइल्डलाइफ के क्षेत्र में खुद को साबित करना हो, लड़कियां किसी भी मामले में काम नहीं लड़कों से। वो खुद लड़कियों का ग्रुप बनाकर न सिर्फ घूमती हैं अपने खाली वक़्त में, बल्कि अपने शौंक को पूरा करने के लिए भी भरसक प्रयत्न करती हैं।

हाल में ही निखत ज़रीन का ही उदाहरण ले लीजिये जिन्होंने विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीती है। टोकियो पैरालिम्पिक्स में भी अपना नाम कमाया लड़कियों ने। अब ज्यादा पीछे न जाकर हाल में ही UPSC के रिजल्ट की बात करें तो सीधा सीधा बोला जा सकता है कि कुड़ियों का है ज़माना। मतलब लड़कियों ने न सिर्फ यह साबित कर दिया कि वो किसी भी मामले में लड़कों से कम नहीं , बल्कि सीधा सीधा साबित कर दिया कि पापा की परियां सबसे उत्तम हैं एवं ज़माना अब उन्ही का है। न सिर्फ आज बल्कि आने वाला कल भी उन्ही का है।
ये उन सबके मुंह पर तमाचा है जो सर झुककर कहते थे एवं कहते हैं कि लड़की हुई हैं। उनको सिर्फ UPSC का परीक्षा फल देखना है। आज लड़कों से कहीं बेहतर पापा का नाम रोशन किया है पापा की परियों नें ।।।

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