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र्प्यावरण मेले का चौथा दिन :: पर्यावरण एवं नीति- न्यायिक हस्तक्षेप’ विषय पर परिचर्चा

राची, झारखण्ड  | फरवरी | 25, 2023 ::  राँची के मोरहाबादी मैदान में चले रहे र्प्यावरण मेले के चौथे दिन ‘पर्यावरण एवं नीति- न्यायिक हस्तक्षेप’ विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।

परिचर्चा के मुख्य अतिथि-सह-अध्यक्ष, झारखण्ड उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति, श्री अंबुजनाथ ने परिचर्चा के दौरान कहा कि पर्यावरण में अंसतुलन के कारण राँची में पिछले अक्टूबर से अब तक एक बार भी बारिश नहीं देखा है।

राँची के एक बहुत बड़े आबादी को पेयजल उपलब्ध नहीं हो रहा है, भूगर्भ का स्तर काफी नीचे चला गया है। जंगलों के कटने से जंगली जानवरों के आश्रय स्थल में कमी आयी है, जिससे वे आबादी क्षेत्र में घूम रहे है और जान-माल की हानि कर रहे हैं।
पर्यावरण असंतुलन का सबसे बड़ा भुक्तभोगी आज यूरोप महाद्वीप है, वहाँ के ग्लेशियर पिघल कर समुद्र में समा रहा है, जिसके कारण झील सूख रहे है, स्वच्छ पेयजल में काफी कमी हुई है। ग्लोबल वार्मिंग से आज सारा विश्व त्रस्त है।

झारखण्ड के जनजाति सरहूल पर्व मनाते है, जिसमें विशुद्ध रूप् से प्रकृति की पूजा की जाती है।

आज हमें यह सोचने से की आवश्यकता है कि हम पर्यावरणीय समस्याओं का सामना क्यों कर रहे हैं।

ग्रीन हाउस गैस के कारण वायुमंडल का तापमान निरंतर बढ़ रहा है, जिससे पृथ्वी आज एक काँच का कटोरा बनता जा रहा है। गर्मी, सर्दी और बरसात की प्रचंडता काफी बढ़ गयी है, इन सब का मुख्य कारण प्रकृति एवं पर्यावरण पर मानवीय हस्तक्षेप है।

विकास एवं आधारभूत संरचना के नाम पर पेड़ कटने और वृक्षारोपन के अनुपात में काफी अंतर है। र्प्यावरण सरंक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी से सभी सरकारी संस्थान के साथ-साथ आम आदमी भी अपना मुँह मोड़ रहे है, जिसका खामियाजा आने वाले पीढ़ियों को सबसे ज्यादा भुगतना पड़ेगा।
मेले में 150 स्टॉल से अधिक लगाये गये है। जिनमें पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों के स्टॉलों में हैण्डमेड हर्बल उत्पाद बिक्री के लिए लगाये गये है।

अधिकांश स्टॉलों में महिलाओं एवं बच्चों की जरूरतों की सामग्री बिक्री के लिए रखे गये हैं, जिनमें सुन्दर हस्तकलाकारी युक्त हैण्ड मेड स्कूली बैग, वाटर बोटल, मटका बैग, पर्स, दिवान सेट, सोफा कवर, विभिन्न तरह के खादी एवं सिल्क के सूट, नक्काशीदार लकड़ी के सामग्रियाँ है तो वहीं घरेलू साफ-सफाई एवं दैनिक जरूरतों की सामग्रियाँ उचित मूल्य पर मिल रहा है। हस्तनिर्मित आर्टिफिशियल ज्वैलरी की प्रदर्शनी एवं बिक्री हो रही है।

छोटे बच्चों के लिए मिकी माउस, जंपिंग झूला और सुन्दर-सुन्दर खिलौनों के भी स्टॉल लगे है।

मेला घूमने आये लोग अपनी जरूरत के सामान खरीद रहे है।

खाने के स्टॉलों में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जा रहा है साथ ही यहाँ हर तरह का लजीज व्यंजन मिल रहा है।

मेले में भारत के सबसे बड़े लोक उपक्रम संस्थानों में से एक सेल ने भी अपना एक स्टॉल लगाया है।

इस स्टॉल पर पर्यावरण सरंक्षण एवं उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्टों से बनने वाले उत्पादों तथा सामग्रियों से संबंधित नवीनतम जानकारियाँ लोगों को दी जा रही है।

साथ ही प्रतिदिन शाम में मेला परिसर में ‘झारखण्ड फिल्म एंड थियेटर एकेडेमी’ के कलाकारों द्वारा सामाजिक सरोकार से संबंधित विषयों पर नाट्य मंचन किया जा रहा है, जिसका मेले में आये लोग एवं कलाप्रेमी भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे है। मेले में लगे सेल्फ ी प्वाईंट का युवाओं में जबरदस्त क्रेज है। मेला घूमने आये लोग सेल्फी प्वाईंट में भांति-भांति के मुद्रा में सेल्फी ले रहे है।
परिचर्चा के सम्मानित अतिथि एवं पर्यावरण संबंधी मामलों के विधि विशेषज्ञ और सर्वोच्च न्यायालय के वरीय अधिवक्ता, श्री संजय उपाध्याय ने बताया कि 1993 से र्प्यावरण और विकास का मुद्दा सबसे पहले प्रकाश में आया। देश के कई संेक्चुअरीज का क्षेत्रफल विकास के नाम पर घटाया गया। हमारे संविधान कुल कानून में से 11 प्रतिशत कानून र्प्यावरण संरक्षण के लिए बने है, लेकिन आम आदमी उससे परिचित नहीं है। समुद्री तटों का कानून मरूभूमि के लिए नहीं हो सकता उसी तरह से पहाड़ी क्षेत्रों का कानून मैदानी इलाकों के लिए समान नहीं हो सकता। भौगोलिक विविधता के अनुरूप् कानून में संशोधन होना चाहिए।
दिल्ली से इस परिचर्चा में भाग लेने के लिए विशेष रूप से आये लाईफ ट्रस्ट के संरक्षक, श्री रित्विक दत्ता ने बताया कि दिल्ली में 50 से अधिक प्रदूषण मानक मॉनिटर लगाये गये है।

बिहार में 35 मॉनिटर लगे हुए है, जबकि झारखण्ड में केवल एक ही मॉनिटर धनबाद में लगा हुआ है।

एक मॉनिटर का रेंज 2 वर्ग कि.मी. होता है। इससे आप समझ सकते है कि झारखण्ड में प्रदूषण के प्रति प्रदूषण नियंत्रक निकाय कितने गंभीर है। आज झारखण्ड में कोई भी पर्यावरण संबंधी समस्या हेतु अर्जी जमा करने के लिए आवेदक को कोलकाता के एनजीटी कार्यालय में जाना पड़ता है।

जबकि प. बंगाल से ज्यादा पर्यावरणीय समस्या झारखण्ड में है। ग्रीन बिल्डिंग के नाम पर आजकल बड़े-बड़े भवनों के अग्रभाग में काँच लगाये जा रहे है, जिससे तापमान में असर पड़ रहा है।
परिचर्चा के उपरांत पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए तपेश्वर केशरी, गौतम डे, मनोज महतो, सुरेश साहू को सम्मानित किया गया। इसके उपरांत संध्या 7 बजे से पुरूलिया छऊ नृत्य, रवीन्द्र संगीत एवं भोजपुरी गीत का सास्ंकृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसका मेले में आये हुए लोगों ने भरपूर आनन्द लिया।

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