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हर बात कही नहीं जाती इसलिए जज्बात समझना भी जरूरी है :: गुड़िया झा

हर बात कही नहीं जाती इसलिए जज्बात समझना भी जरूरी है :: गुड़िया झा

हमारे देश भारत की यही तो विशेषता है कि यहां साल के बारह महीने तक कुछ न कुछ छोटे हो या बड़े विशेष दिनों का आयोजन होता रहता है।

उन्हीं में से एक है “वेलेंनटाइन डे”।

पूरे एक सप्ताह तक मनाने वाले इस आयोजन को बड़े ही खुशियों के साथ मनाया जाता है।

रिश्तों के बीच यह खुशहाली यूं ही हमेशा बनी रहे और जीवन का हर दिन वेलेंनटाइन डे हो।

1, सामंजस्य की डोर- अक्सर हम अपने जीवन में रिश्तों से खुश नहीं होते हैं। यह कोई जरूरी भी तो नहीं कि एक ही विचारों वाले दो लोग हों।

जहां हमारा आपसी सामंजस्य होगा वहां हम प्रतिकूल स्वभाव वाले लोगों के साथ भी सहज महसूस करेंगे।

अपने कार्यों से थोड़ा समय निकाल कर परिवार के सदस्यों के साथ बिताने से भी हमारा मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। इगो हर रिश्ते का अंत है।

इससे दूरी बनाये रखना रिश्तों की डोर को मजबूती प्रदान करती है। यहां जीत और हार नहीं बल्कि भावनाएं अहम हैं। क्योंकि हर बात कही नहीं जाती इसलिए जज्बात समझना भी जरूरी है।

2, स्वीकार करना।
जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार करना अपनी खुशियों को बढ़ाना है। स्वीकारना एक ऐसी कला है जो कहीं बाहर नहीं मिलती बल्कि खुद हमारे भीतर मौजूद है। बस इसे अपने जीवन में लागू करना है।

जब हम इसे पूरी तरह से अपनाते हैं, तो कुछ भी कठिन नहीं लगता।

अपनी खुशियों को बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि रिश्तों में कमियों को छोड़कर अच्छाइयों पर विशेष ध्यान दें तो हमारे लिए यह ज्यादा आसान हो जाता है समझना कि हमें क्या करना है? गुण और दोष तो सभी में होते हैं। सिर्फ दोष की ओर देखना नकारात्मकता को बढ़ाना है।

3, नजरअंदाज करना भी जरूरी।
हमेशा सभी की बात अच्छी लगे यह कोई जरूरी तो नहीं। फिर भी जब भी लगे कि कोई बात पसंद नहीं आ रही है तो ऐसी स्थिति में गैर जरूरी बातों को शालीनता से नजरअंदाज करना ही बेहतर है।

प्रतिक्रिया में बहस करने से ऊर्जा और समय दोनों की बर्बादी होती है तथा मन भी अशांत रहता है। दूसरों की भावनाओं को भी समझना उतना ही जरूरी है जितना कि अपनी।

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