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संस्कृति, जो हमें सिखाती है रिश्तों को निभाना : गुड़िया झा

संस्कृति, जो हमें सिखाती है रिश्तों को निभाना : गुड़िया झा

 

हमारा देश भारत अपनी संस्कृतियों के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहां की संस्कृति की बात ही कुछ अलग है। यहां मनाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के पर्व-त्योहारों की अपनी एक अलग ही विशेषता है। हर एक पर्व-त्योहार के माध्यम से हमें कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। रक्षा बंधन भी उन्हीं में से एक है। कभी ना टूटने वाले भाई-बहन के अपार स्नेह का पर्व रक्षा बंधन हमें यह सिखाता है कि समय चाहे कितना भी बदल जाये, तकनीक चाहे जितनी भी प्रगति कर ले, हम चाहे कितने ही आधुनिक युग में क्यों न हों। हमें अपने रिश्ते की डोर को मजबूती से थामे रखना है। प्रत्येक रिश्ते की अपनी एक अलग ही एहमियत होती है। आज बदलते परिवेश के कारण हमारी व्यस्तता के बीच भी इन संस्कृतियों के माध्यम से ही हम समझ पाते हैं कि हमारे पास सब कुछ होते हुए भी इन रिश्तों के बिना हम अधूरे हैं।
जीवन के किसी भी मोड़ पर परिस्थिति चाहे अनुकूल हो या प्रतिकूल, ये रिश्ते ही समय-समय पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। रिश्ते और पौधे एक जैसे होते हैं। इन्हें जितना सींचा जाये इनकी जड़ें उतनी हीं ज्यादा मजबूत होती हैं। हमारे रिश्ते की बागडोर यूं हीं हमेशा आपस में जुड़ी रहें और हम इसे आजीवन अपने प्यार और विश्वास से बाधें रखें। इसके लिए हमें स्वयं ही जागरूक रह कर कुछ बातों को अपने जीवन में अमल करना होगा।
1, विश्वास बनाये रखें।
किसी भी रिश्ते को हमेशा जुड़े रहने के लिए विश्वास एक कड़ी की तरह काम करता है। किसी पर विश्वास करना और पूरी तरह ईमानदारी से सामने वाले को भी अपने विश्वास में रखना बहुत मुश्किल नहीं है। इसके लिए हमें सच्चाई के दामन को मजबूती से थामे रखना है।
आमतौर पर होता यह है कि हम कभी भी किसी गलती की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने से हमेशा बचते हैं। जबकि इसके अनुकूल यदि हम सबसे पहले आगे आकर खुद ही 100 प्रतिशत जिम्मेदारी अपने ऊपर लें, तो कहीं भी और कभी भी सामने वाले कि भावना को ठेस नहीं पहुंचेगी।

2, शिकायतें छोड़, बड़ी सोच रखना।
कई बार हमारे रिश्ते की डोर इसलिए भी कमजोर हो जाती है कि हम बेवजह ही अपने मन में शिकायतें पाल रखते हैं। ये शिकायतें एक तरह से विष का काम करती हैं। जो हमारे रिश्तों की जड़ों को धीरे-धीरे खोखला कर देती है। इसका नतीजा यह होता है कि हम दूसरों की परिस्थितियों को बिना जाने-समझें अपने मन में एक भ्रम बना लेते हैं। यह हर हाल में हमारे खुद के लिए ही नुकसानदायक होता है।
इन सबके ऊपर हम बड़ी सोच रख कर अपने रिश्तों की बागडोर को मजबूत बना कर आने वाले भविष्य में अपनी संस्कृति और रिश्ते दोनों की गरिमा को बनाये रखते हुए आने वाली भावी पीढ़ी को भी प्रेरित कर सकते हैं।

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