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हारें नहीं बल्कि स्वीकार करें :: गुड़िया झा

हारें नहीं बल्कि स्वीकार करें :: गुड़िया झा

परिवर्तन संसार का एक शाश्वत सत्य है। हमारे जीवन में सबकुछ एक जैसा नहीं रहता है। जब भी हमारे जीवन में उतार-चढाव आता है, तो हम परेशान हो जाते हैं। जब हम इस सत्य को स्वीकार करते हैं, तो बिल्कुल ही सहजता का बोध होता है। परिस्थितियों के सामने हथियार डालने से अच्छा है कि उसका डटकर सामना किया जाये तथा उससे जो सीख मिलती है और आत्मविश्वास उत्पन्न होता है, वह दूसरों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत बनता है। ईश्वर भी चुनौतियां उसी को देते हैं जो सबसे अच्छा एक्टर होता है। थोड़ा सा धैर्य आने वाले कल के लिए और भी मजबूती प्रदान करता है।

1जिम्मेदारी लेना।
यह वो ईश्वरीय शक्ति है जो होती तो सबके पास है लेकिन हम इससे अधिकतर बचना चाहते हैं।100 % किसी भी कार्य की जिम्मेदारी जब हम अपने ऊपर लेते हैं, तो उसके अच्छे तरीके से सम्पन्न होने की संभावना भी बनी रहती है। कभी बाधाओं के कारण जब वह कार्य संपन्न नहीं होता है, तब हम उससे बचकर निकलना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में भी खुद को मजबूत बनाते हुए कार्य संपन्न नहीं होने की जिम्मेदारी भी अपने ऊपर लेना एक बहुत बड़ी कला है। इससे बहुत सी चीजें सीखने का भी अवसर प्राप्त होता है।

2 स्वीकार करने की कला।
कई बार हम जैसा चाहते हैं वैसा होता नहीं है। जैसे- कुछ परिस्थिति और रिश्ते। जो जिस रूप में है उसे उसी रूप में खुले दिल से स्वीकार करना हमारी खुशियों को बढ़ाता है। ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने बड़ी से बड़ी बाधाओं को पार कर सफलता की राह निकाली है। हम अपनी पसंद और नापसंद के बीच एक ही जगह पर अटके रहते हैं। अपनी मंजिल की ओर अग्रसर बढ़ते रहें।

3 कर्म की प्रधानता।
सफलता की राह में सबसे महत्वपूर्ण योगदान कर्मों का है।
प्रख्यात वैज्ञानिक अलबर्ट आइस्टीन की यह बात बहुत ही प्रेरणादायक है कि जीवन साइकिल की सवारी करने के समान है। अर्थात हमें प्रत्येक परिस्थितियों में अपने कर्मों और विचारों में गतिशीलता एवं संतुलन बनाये रखने की जरूरत है।

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