आलेख़

डरें नहीं, सावधानी बरतें : गुड़िया झा

रांची , झारखण्ड | अगस्त | 07, 2020 :: इस समय पूरा विश्व महामारी से जूझ रहा है। ये वो समय है जब हमें एक साथ मिल कर इससे लड़ना है। इस महामारी नें लोगों के दिलों में इतना डर बना दिया है कि सभी काफी भयभीत हैं। डरना भी स्वभाविक है क्योंकि ये इतनी संक्रामक बीमारी है कि जरा सी लापरवाही जानलेवा हो सकती है। बस हमें इस बात का अधिक ध्यान रखना होगा कि डर के कारण हम भ्रमित ना हों। भ्रमित होने की वजह से कई बार हम सही जानकारी के अभाव में उचित कदम नहीं उठा पाते हैं,
जिससे हमें कई बार भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। इसके प्रति थोड़ी सी जागरूकता से हम डर की जगह सावधानी बरतेंगे,तो अपने साथ साथ परिवार, समाज और देश को भी इस महामारी से मुक्त होने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकेंगे।

1, खान-पान।
सबसे पहले निरोगी काया रखने के लिए हमें खान-पान की आदतों में सुधार लाना होगा। सुबह की शुरूआत में हल्के गर्म पानी में नींबू का रस डालकर पीयें। बाहर टहलने की आदतों को कुछ दिन अभी छोड़ कर घर पर ही कुछ व्यायाम करें। जहां तक संभव हो घर का बना हुआ ताजे भोजन का ही सेवन करें। एक बात हमेशा ध्यान रखें कि अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती है। इसलिए खाने में तेल और मसालों का उपयोग सीमित मात्रा में ही करें। जिससे भोजन को पचने में आसानी हो और हमें गैस तथा अन्य पाचन संबंधी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़े।

2, साफ-सफाई।
खुद की साफ सफाई के साथ साथ घर तथा आस पास का भी ध्यान रखें। घरों के आसपास कचड़े का नियमित सफाई हो, इसका पूरी तरह से ध्यान रखा जाना अति आवश्यक है। क्योंकि अभी इस समय मच्छरों से पनपने वाली गन्दगी भी कई प्रकार की बीमारियों को आमंत्रित करती हैं।
समय समय पर ब्लीचिंग पाउडर तथा अन्य किटाणु नाशक का उपयोग अति आवश्यक है।
थोड़ी थोड़ी देर पर अपने हाथों को साबुन, हैंडवॉश या सैनिटाइजर से अच्छी तरह से सफाई करें। जब भी बाहर निकलें मास्क का उपयोग जरूर करें। बाहर से घर आते ही अपने हाथ, मुंह,और मास्क की अच्छी तरह से सफाई करें। अपने कपड़ों को भी बदल कर दूसरे कपड़े पहनें। जब कभी अति आवश्यक हो, तभी घर से बाहर निकलें।
ये सभी उपाय ऐसे हैं जिसे अपना कर हम खुद की सुरक्षा के साथ साथ परिवार को भी सुरक्षित रख सकते हैं।

3, संक्रमित व्यक्ति से घृणा ना करें।
आमतौर पर देखा गया है कि जब भी हमारे समाज में कोई व्यक्ति संक्रमित होते है, तो उनके स्वस्थ होने के बाद भी उनके साथ भेदभाव वाली नीति अपनाई जाती है। जो कि गलत है। ऐसे व्यक्ति पहले से ही शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं। ऐसे में अगर हम उनके साथ ठीक से पेश नहीं आएंगे, तो वे मानसिक रूप से अपने आप को टूटा हुआ महसूस करेंगे। हमें चाहिए कि ऐसे व्यक्ति और उनके परिवार वालों के साथ दुःख की इस घड़ी में खड़े हों। सही मायने में यही सच्ची मानवता है। कहा भी गया है कि ” नर सेवा, नारायण सेवा”।

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