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मत्स्य कृषकों की दशा और दिशा सुधारने में केज कल्चर काफी सहायक : डॉ.एच एन द्विवेदी

राची, झारखण्ड | अक्टूबर | 14, 2023 ::

त्रिपुरा राज्य से आए हुए 24 मत्स्य कृषकों का दल, गंडाट्वीशा तथा कारबोक जिले के ढलाई तथा गोमती प्रखण्डों के डुमबुर जलाशय के रहने वाले कृषकों का झारखंड दौरा सम्पन्न हुआ।
यह दौरा नौ से 15अक्टूबर तक तक निर्धारित था।

निदेशक मत्स्य झारखंड ने त्रिपुरा से आए मत्स्य कृषकों को संबोधित करते हुए कहा कि झारखणंड के केज कल्चर तकनीक को त्रिपुरा जैसे नार्थ इस्ट राज्य में भी फैलाने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि लोगों को अधिक से अधिक रोजगार मुहैया हो सके तथा मत्स्य उत्पादन में त्रिपुरा राज्य आगे बढ़ सके।
केज कल्चर में मत्स्य आहार महत्वपूर्ण घटक है।
जिसे राज्य में फीड मिल स्थापित करने की जरूरत है।
त्रिपुरा से आए जतन कुमार चकमा, वृहत कुमार त्रिपुर, देव कुमार दास, उदित जमातिया, संजीत कुमार साहा सहित अन्य ने अपने विचार व्यक्त किये।
मत्स्य कृषकों द्वारा झारखण्ड के केज कल्चर को सराहा गया तथा यहां के गुढ़ तथ्यों की जानकारी दी गई।
उन मत्स्य कृषकों के जीवन की दशा-दिशा सुधारने का काम त्रिपुरा सरकार द्वारा किया जा रहा है जो कबीले तारीफ है।
किसी भी योजना को प्रारंभ करने में दिक्कत आती है।
त्रिपुरा में पहली बार केज कल्चर द्वारा मछलीपालन प्रारंभ किया गया है, जिसमें प्रारंभ में थोड़ी बहुत दिक्कते आएगी।
परन्तु परेशानियो से हताश नहीं होना है।
त्रिपुरा से हमलोगों का रिश्ता बना रहे, यहाँ के किसान वहाँ जाए तथा वहाँ के किसान यहाँ आए इस तरह यह रिश्ता बना रहना चाहिए।
यहाँ के मत्स्य किसान वहाँ जाकर प्रॉउन, मांगुर, सिंघी, पबदा मछलियों का प्रजनन हेतु हैचरी देखने हेतु त्रिपुरा जाने तथा पालन कर कार्य को देखने हेतु निदेष दिया गया। केज के किसानों को विशेषकर ठंड में ध्यान देने की जरूरत है। केज में पालने हेतु मत्स्य बीज ज्यादा से ज्यादा संचयन करें।
मनोज कुमार, संयुक्त मत्स्य निदेषक ने झारखण्ड के केज कल्चर के इतिहास के बारे में बताया।
कोशिश यह रखना चाहिए कि मछली बिके तो पूरा पैसा खर्च ना करें आमदनी का कुछ हिस्सा बचा कर रखें।
केज में मछली पालकों को बताया गया कि बीमारी से कैसे बचाव करें।
जानकारी पहले से लेकर सजग रहेें।
त्रिपुरा से आये मत्स्य अधीक्षक श्री अघोर देव बर्मन ने बताया कि झारखण्ड में केज कल्चर हेतु मत्स्य कृषकों तथा विभाग के बीच coordination, stocking density, feeding practices आदि सीखने की जरूरत है। निदेशक महोदय ने CIFRI बैरकपुर के वैज्ञानिकों का आभार व्यक्त किया जिन्होंने केज कल्चर में तकनीकी जानकारी देकर झारखण्ड को इस मुकाम तक पहुचाया है।
केज कल्चर में झारखण्ड एक राज्य अग्रणी राज्य है।
इसलिए त्रिपुरा के किसान पहली बार स्थल भ्रमण करने हेतु हजारीबाग के तिलैया, सरायकेला के चांडिल जलाषय, रामगढ़ के पतरातु डैम में केज कल्चर का निरीक्षण किया। इसके साथ ही राँची जिले के खलारी में कोलपीट में केज कल्चर का अवलोकन करने के साथ साथ नगड़ी में बायोफ्लॉक तालाब तथा आर0ए0एस0 में मछली पालन को देखकर काफी प्रभावित हुए। यह तकनीक उनके लिये नई लगी जहाँ पर कम जगह तथा कम पानी में अधिक से अधिक मछली पालन किया जा रहा है। इसके साथ ही मत्स्य किसान प्रषिक्षण केन्द्र में रंगीन मछली पालन, मोती पालन, तथा बायोफ्लॉक टैंक में मछली पालन को देखा।
इस अवसर पर मनोज कुमार, संयुक्त मत्स्य निदेशक, मरियम मुर्मू, उप मत्स्य निदेशक, प्रदीप कुमार, जिला मत्स्य पदाधिकारी, हजारीबाग, अरूप कुमार, जिला मत्स्य पदाधिकारी, राँची, प्रशान्त कुमार दीपक मुख्य अनुदेशक सभी पदाधिकारी, कर्मचारी एवं राज्य के मत्स्य कृषक उपस्थित थे। मंच का संचालन रत्नदीप साहा, मत्स्य पदाधिकारी, त्रिपुरा द्वारा किया गया।

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